सामयिक : आत्मनिर्भरता का आगाज
हिंदुस्तान में वर्षो से जड़ें जमा चुकी समस्याओं का निदान करने में सिद्धहस्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘स्वदेशी’ अर्थव्यवस्था की अवधारणा को वापस पटरी पर लाने के लिए पहल कर दी है।
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देश में सुविज्ञ अर्थशास्त्री बीते सत्तर साल से ‘स्वदेशी’ के माध्यम से सुदृढ़ अर्थव्यवस्था और सुशिक्षित बेरोजगारी पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे थे। लेकिन इस आशय की पहल और आंदोलन को बड़ी निर्ममता से दबाया जाता रहा, बल्कि कह सकते हैं कि पूरे वेग से कुचला जाता रहा है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अदृश्य ताकतों के दबाव मे आकर मिश्रित अर्थव्यवस्था, भारी उद्योग और विदेशी औद्योगिक नीति के ऊपर लघु और कुटीर उद्योग का पुच्छला जोड़ा और उसे साम्यवादी-समाजवादी आर्थिक नीतियों के आवरण से ढंक कर देश की जनता को हसीन सपने दिखाए। हालांकि उस समय देश की पारंपरिक अर्थव्यवस्था और जीवन दशर्न के जानकारों और हामियों ने ‘स्वदेशी’ के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को संचालित करने के लिए आवाज बुलंद की थी। एक तरह से पूरा आंदोलन ही छेड़ दिया था। वह आंदोलन आज भी सांसें ले रहा है। कहने की जरूरत नहीं है यानी सर्वविदित है कि भारत वर्ष कृषि प्रधान देश है, गांवों में करीब अस्सी के दशक तक कृषि के अतिरिक्त किसी बाहरी पैसे की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती थी। गांव के लोग जरूरत पड़ने पर अल्पकालिक उधार लेते और चुकता करते थे यानी कहें कि स्वाभिमानपूर्वक अपना सुखमय जीवन व्यतीत करते थे! लेकिन वर्तमान समय में परिस्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं, गांव से बड़ी संख्या में पलायन हुआ, लोगों की जीवन शैली बदल गई, आवश्यकताएं बढ़ गई, गांवों के प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई की स्थिति बद से बदतर हो गई। कहना यह कि गांव में रहकर जीवन यापन करना कठिन हो गया, आवश्यकताएं बदल गई। लोग बाहर निकले जीवन को अच्छा बनाने के लिए, बड़े लोन लिए ताकि अच्छे से जीवन को सु़विधा-संपन्न बना सकें।
उनको इस तरह के कठिन दौर में ज्यादा कठिनाइयां आई। यदि हम महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ या दीनदयाल उपाध्याय के ‘अंत्योदय’ पर अमल करके अपने जीवन को ढाले होते तो इस समय में इतना बड़ा पलायन या इतनी कठिनाइयां नहीं आतीं। कहा गया है कि जब जागो तभी सवेरा होता है, लेकिन अब जागना ही होगा। हमारा देश 130 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाला देश है, इतनी आबादी देश के लिए समस्या भी है तो उसकी अपनी ताकत भी है। जनसांख्यिकीय लाभ भी हैं। विश्व का सबसे बड़ा बाजार भारत है, कह सकते हैं कि इस विशेषता को अपनी ताकत बनाकर हम आत्मनिर्भर बने, स्वदेशी अपनाओ का केवल नारा ही ना रहे अपितु जरूरी है कि इस पर अमल भी हो। स्वदेशी के क्षेत्र में स्वामी रामदेव के पतंजलि ने बड़ा कार्य किया है तो वही सहारा समूह ने गांव, छोटे कस्बे और शहरों में पैराबैंकिंग द्वारा बड़ी संख्या में रोजगार देकर पलायन को रोका था। यदि लोग छोटे शहर यानी अपने शहर या गांव में रोजगार पाएंगे तो खर्चे भी कम होंगे तथा अपने अभिभावक का भी ख्याल रख पाएंगे। हमारी संस्कृति में जहां बच्चों को भविष्य की धरोहर के रूप में तैयार किया जाता है वहीं बुजुगरे से उनके अनुभव तथा आशीर्वाद लेने के लिए सेवा करने का निर्देश है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस प्रकार का जीवन यदि जिया जाए तो कठिन से भी कठिन परिस्थिति से निपटा जा सकता है। आज जब संपूर्ण विश्व कोरोना जैसी महामारी के संकट से जूझ रहा है तो हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भरता की बात की है।
आत्मनिर्भरता का मंत्र देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभों का उल्लेख किया है , पहला भारतीय अर्थव्यवस्था में लंबी छलांग लगाने की, इसके लिए हमें अपनी रिसर्च बढ़ाकर अपनी टेक्नॉलजी को बढ़ाना होगा, उसमें सुधार करना होगा। दूसरा स्तंभ है इन्फ्रस्ट्रक्चर जो आधुनिक भारत की पहचान बनी बुलेट ट्रेन या प्लेन बनाकर ज्यादा प्रभावी तरीके के क्रियान्वित किया जा सकता है। तीसरा स्तंभ है टेक्नॉलोजी द्वारा परिचालित कार्य जो हैं, बाहर की कंपनी भारत आने में या आप स्वयं कोई व्यवसाय करना चाह रही हैं, और उसमें कई प्रकार की अड़चनें आती थीं, उनकों नई व्यवस्था द्वारा पारदर्शिता लाकर 21वीं सदी का भारत बनाने में सहयोग किया जा सके। चौथा स्तंभ युवा जनसंख्या की ताकत है, जो सकारात्मक दिशा में कुछ भी करने की ताकत है, यह ताकत विश्व में किसी के पास नहीं है! पांचवां स्तंभ डिमांड है, भारत में मध्यम वर्ग जो सबसे बड़ा खरीददार है, हम अपना खुद बनाएं और अपने देश में ही बेचें तो यकीनन अपना देश और शक्तिशाली होगा। यदि हम अपनी ताकत को पहचानें और उस पर कार्य करें तो विश्व के सभी देश को पीछे छोड़ सकते हैं। गौरतलब है कि भारत में पीपीई किट और एन-95 मास्क नहीं बनता था, आज भरपूर मात्रा में बन रहा है, यह हमारी ताकत है। हमें मजबूत इच्छाशक्ति वाला प्रधानमंत्री मिला है जो देश को स्वावलंबी बनाना चाहता है, इसके लिए बीस लाख करोड़ रुपये का पैकेज भी दिया है, हमारे यहां प्रतिभा भी है और इसका सदुपयोग होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने पहले ही मेक इन इंडिया का नारा दिया था, उस पर कार्य भी तेजी से हुए। कुटीर उद्योग, लघु उद्योग का भी प्रधानमंत्री ने जिक्र किया, लोकल के लिए वोकल बनें भी बोला, कृषि को मजबूत करने की बात की तथा खेती से जुड़ी सप्लाई चेन में सुधार करने की योजना की भी जानकारी दी। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया यह कदम स्वदेशी से राष्ट्र स्वाभिमान जगाने वाला होगा। भारत वर्ष ने तो हमेशा से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात कही है, हमने हमेशा विश्व को दिया है, आज फिर अवसर है देने का।
(लेखक ‘एस्ट्रोलॉजी टूडे’ के संपादक हैं)
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