कोविड-19 : असर और सबक

Last Updated 14 May 2020 04:01:27 AM IST

लॉकडाउन। घर पर ही रहें। ट्रेनें नहीं, टैक्सी बंदी, उड़ानें स्थगित। आखिर, इस सबका अभिप्राय क्या है?


कोविड-19 : असर और सबक

क्या होमो स्पेनियस के तौर पर ज्ञान-विज्ञान और हर तरह के सामथ्र्य के रहते कभी सपने में भी हमने इतने खतरे और डरावनी परिस्थिति के बारे में सोचा होगा? क्या हमने सोचा था कि 2020 से शुरू हुआ नया दशक इस तरह संकटों से घिरा होगा? पूरी दुनिया आज एक दुविधा के चौराहे पर खड़ी है। कोविड-19 के कारण जिस तरह के संकट का सामना दुनिया कर रही है, उसमें सब कुछ अलग-थलग पड़ गए हैं। वैश्विक गतिशीलता में ठहराव का असर पूरी सप्लाई चेन, तमाम आर्थिक गतिविधियों और यहां तक कि आदमी की आजीविका से जुड़े कार्यों और उसके जीने के तौर-तरीकों पर भी साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है। तो क्या कोविड-19 के संकट के पीछे पारिस्थितिकी तंत्र की गड़बड़ियां हैं, क्या हमारी जीवनशैली है? सवाल यह भी है कि क्या यह सब एक जैविक युद्ध के बहाने विश्व अर्थव्यवस्था में खुद को सर्वशक्तिमान बनाने की होड़ का या लालचा का नतीजा है?

आज बहस इन तमाम सवालों को लेकर जारी है पर इनका कोई ठोस और प्रामाणिक नतीजा सामने नहीं आ पा रहा है। जिस तरह एक मामूली सा विराम चिह्न एक पूरे वाक्य के समापन की घोषणा है, उसके आगे के विकास का घोषित खंडन है, ठीस उसी तरह एक अति सूक्ष्म वायरस ने धरती पर तमाम जीव प्रजातियों की सहजता को रोक दिया है। अब सब कुछ खतरे के नीचे आ गया है। और तो और प्रति-पलायन और सामाजिक अशांति के नये-नये आयाम तक सामने आ रहे हैं। अलबत्ता, इस दौरान एक सुखद बदलाव यह जरूर दिखा है कि हमारी नदियां स्वच्छ हो गई हैं। हम आज ज्यादा साफ हवा में सांस ले पा रहे हैं। शहरों में सालों बाद नीलेपन में धुला आकाश दिख रहा है।

हम एक साथ बहुत सारे तारों का चमकना देख पा रहे हैं। आंखों के आगे प्रकृति की इतनी स्वच्छता है कि हम दूर से ही हिमाच्छादित पहाड़ों को निहार पा रहे हैं। पशु-पक्षियों की आवाज और उनकी निकटता को हम साफ-साफ महसूस कर सकते हैं। शहरों और गांवों तक पसरा शोरशराबा आज काफूर हो चुका है। ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण का स्तर बेहद कम हो चुका है। दिलचस्प यह है कि प्रकृति की इतनी स्वच्छता और सुंदरता जिस कोविड-19 के कारण संभव हुई है, हम अब भी उसके दूर होने और किसी दवा या टीके के जरिए उसके समापन की बाट जोह रहे हैं। इस काम में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता रात-दिन जुटे भी हैं।

अब तक के सारे खतरों, कठिनाइयों और प्रकृति में स्पष्ट दिखे बदलावों के बीच अब हमें यह सोचना चाहिए कि हम कैसा भविष्य चाह रहे हैं? इस संकट या बदलाव का अंतिम सबक क्या है? क्या यह हमारे लिए सबसे विचारणीय मुद्दा नहीं होना चाहिए कि कोविड-19 के खतरों के लिए धरती की कोई एक जीवित प्रजाति जिम्मेदार है तो वह सिर्फ  मनुष्य है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव सीके मिश्र ने कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को एक अहम पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि कोविड-19 हो या उससे पहले नेपाह, एवियन इंफ्लूएंजा, जिका वायरस के तौर पर सामने आए महामारी के खतरे हों, सबके बीच एक सामान्य बात यह है कि इनके पीछे बड़ी वजह वन क्षेत्रों का कम होना और जैविक विविधता में आई बड़ी कमी है।

मिश्र ने अपने पत्र में इस दरकार को रेखांकित किया है कि अब वक्त आ गया है कि हम कॉरपोरेट जगत को कहें कि वह जैव विविधता के क्षेत्र में निवेश करने के प्रति आगे बढ़े। कहना न होगा कि आज हम उस मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, जहां से आगे बढ़ने के लिए हमें वन्य जीवों के अवैध व्यापार, अवैध खनन और प्राकृतिक क्षेत्रों में बढ़े मानवीय दखल पर नीतिगत तरीके से और कारगर ढंग रोक लगानी ही होगी। प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का सबक सीखने और व्यापार की नई नैतिकता को अमल में लाने का यह वक्त है, यह बात हम जितनी शीघ्रता से समझ जाएं हमारे लिए यह उतना ही अच्छा होगा। कोरोना का यह संकट हमें इस बाबत स्पष्ट चेता रहा है।
(लेखक भारतीय वन सेवा के अधिकारी एवं आइयूसीएएन में भारत के प्रतिनिधि हैं)

डॉ. विवेक सक्सेना


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