संस्थान बंद हैं पर योद्धा डटे हैं
कोविड-19 महामारी के वैश्विक आपातकाल ने हम सभी को अप्रत्याशित अनिश्चितता के दौर में धकेल दिया है जिससे हमारा दैनिक जीवन, हमारे क्रियाकलाप, हमारी आर्थिक गतिविधियां सब प्रभावित हुई हैं।
![]() केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ |
इस संक्रमण ने हमारे शिक्षा जगत के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। विश्व की आबादी के एक तिहाई से अधिक लोग किसी न किसी प्रतिबंध के तहत अपने घरों में हैं।
महामारी की विकरालता को देखते हुए 11 मार्च, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने कोविड-19 के प्रकोप को महामारी घोषित किया। आज देश की 130 करोड़ आबादी अपने जीवन की सुरक्षा के दृष्टिगत अपने-अपने घरों में रहने के लिए मजबूर है। जाहिर है, आपदा की इस घड़ी ने सबको झकझोर कर रख दिया है। देश भर में लोगों का दैनिक जीवन ठहर सा गया मालूम होता है। हवाई, रेलमार्ग और सड़क मागरे पर सामान्य आवाजाही बंद है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 के मामलों की रिपोर्टंिग करने वाले देशों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वृद्ध लोगों और कमजोर प्रतिरक्षा पण्राली या अंतर्निहित चिकित्सा स्थिति वाले लोग गंभीर बीमारी के विकास के एक उच्च जोखिम में हैं।
संकट के इन पलों में उम्मीद की किरण के रूप में हमारे शैक्षणिक संस्थान, विश्वविद्यालय, शैक्षिक एवं शोध संस्थान उभर कर आ रहे हैं जो विपत्ति की इस घड़ी में धैर्यपूर्वक समाधान ढूंढ़ने के लिए संकल्पित हैं। भारत समेत दुनिया भर के देशों के शीर्ष विश्वविद्यालय, शोध संस्थान कोरोनवायरस या कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। सर्वत्र इस विषय पर चर्चा है कि पोस्ट-कोरोनावायरस हमारे शैक्षणिक संस्थाओं में परिदृश्य कैसा दिख सकता है?
इन सभी अनिश्चितताओं और अवरोधों के बीच, हमारे शिक्षक अपने मूल मूल्यों और नैतिक जिम्मेदारियों का कुशलता से निर्वहन कर रहे हैं जो उनके समर्पण और संकट के समय उनकी विश्वसनीयता का निरंतर एहसास दिलाते हैं। अनुसंधान निष्कषरे, सामान्य जानकारी और संसाधन केंद्रों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करते हमारे संस्थान सार्वजनिक कल्याण में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। कठिनता के इस दौर में भारत की शीर्ष शिक्षण संस्थाएं अपने सामथ्र्य अनुसार आगे आकर पूरी तन्मयता से इस चुनौती से मुकाबला करने में जुटी हैं। हमारे शैक्षणिक संस्थान बंद हैं, पर शिक्षण की गतिविधियां अनवरत चल रही है-हमारे शिक्षक और अन्य कर्मचारी पूरी तन्मयता से अपने कर्तव्य पालन में जुटे हैं। चाहे ऑनलाइन शिक्षा हो, शोध अनुसंधान का विषय हो या कोरोना अस्पतालों के रूप में हमारे विश्वविद्यालयों के मेडिकल कॉलेज हों, आइसोलेशन वार्ड के रूप में हमारे हॉस्टल या विद्यालय हों या फिर अन्य सामाजिक गतिविधियां हो हमारे शिक्षक, शोधार्थी, वैज्ञानिक अन्य कर्मचारी समर्पित भाव से इस आपातकाल में कार्य कर रहे हैं।
इन विषम परिस्थितियों में देश के शैक्षिक परिवार के सदस्य के रूप में शिक्षा जगत से जुड़े हर व्यक्ति का मैं हार्दिक अभिनन्दन करता हूं। आपने अभी तक जिस धैर्य, जिस नेतृत्व क्षमता का, समर्पण का परिचय दिया है उसके लिए आप सब बधाई के पात्र हैं। मुश्किल की इस घड़ी में आपने विद्यार्थियों की शिक्षा में कोई व्यवधान नहीं आने दिया। आप पूरे उत्साह के साथ अपने कर्तव्य पालन में जुटे हैं जो सबके लिए अनुकरणीय है।
हमारे करोड़ों विद्यार्थी जहां लोगों की जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं वहीं हमारे वैज्ञानिक, शोधार्थी, इंजीनियर अपनी प्रतिभा और क्षमताओं के अनुसार कोविड-19 महामारी से उत्पन्न तत्काल सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए वेंटीलेटर, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट, टेस्टिंग किट, औषधियों, प्रतिरोधक क्षमता बढाने के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। इस कठिन समय में यह अत्यंत उत्साहजनक है कि देश के शैक्षिक संस्थानों में इस चुनौती से निपटने के लिए एक सकारात्मक माहौल है, संस्थान बढ़ चढ़कर इस संक्रमण से निपटने के लिए आगे आ रहे हैं।
मैंने अपनी समीक्षा बैठकों में इस बात को पूरी शिद्दत से महसूस किया है कि पिछले कुछ वर्षो से देश के शैक्षिक जगत में रणनीतिक परिवर्तन / सुधार गतिमान थे उसके प्रभाव उजागर होने लगे हैं। इस दौरान सबसे अच्छी बात यह लगी कि हम नई शोध संस्कृति विकसित करने में सफल हुए हैं। भारत विशेष क्षेत्रों में अनुसंधान आयोजित करने एवं बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देने के एक मॉडल को स्थापित करने के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहा है। गुणवत्तापरक और नवचारयुक्त शिक्षा को हम अपने प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक ले जाने हेतु प्रतिबद्ध हैं। इसके अलावा, प्रत्यक्ष धन और संसाधनों के प्रवाह को आसान बनाने के लिए उद्योग और नवाचार को अनुसंधान गतिविधियों के साथ जुड़े रहने के विशेष प्रयास किये गए हैं। अनुसंधान संस्कृति में सुधार को निर्देशित करने वाली नीतियों के साथ-साथ निवेश को मदद की जा रही है। मेरा मानना है कि भारत के लोगों में अद्भुत क्षमता है अगर हम सब मिलकर इस संकट का सफलता पूर्वक मुकाबला कर सकने का संकल्प लें तो कोई मुश्किल नहीं है। संकट के समाधान की प्रक्रिया में शिक्षा जगत उत्प्रेरक की भूमिका में सदैव अग्रणी रहेगा। आज भी जब कोरोना संकट आया तो चिंता व्यक्त की जा रही थी कि हम अपनी हर आवश्यकता के लिए विदेशों पर निर्भर थे। पर दो महीने से कम समय में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई), कम लागत वाले वेंटिलेटर, टेस्टिंग तकनीक और विश्लेषणात्मक उपकरणों की बात हो तो हमारे शीर्ष संस्थानों के स्टार्ट-अप और संकाय/ विद्यार्थी नई-नई सफलता अर्जित कर रहें हैं।
पिछले दो महीनों से हमारे आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी या फिर विश्वविद्यालय से लगभग हर हफ्ते, एक नई पहल, नई तकनीक, नवाचार या समाधान सामने आ रहा है। कोविड-19 महामारी के वैश्विक आपातकाल ने हम सभी को अप्रत्याशित, विघटनकारी स्थितियों के साथ सामना करने के लिए तैयार रहने का सन्देश दिया है। आज हमारे दैनिक जीवन, अर्थव्यवस्थाओं, प्रशासनिक निर्णयों और संस्थानों में बदलाव देखने को मिल रहा है। ऑनलाइन शिक्षण और प्रवेश और परीक्षा शेड्यूल के संदर्भ में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं और इस बारे में चर्चा की है कि पोस्ट-कोरोनावायरस विश्वविद्यालय परिदृश्य कैसा दिख सकता है।
सभी अनिश्चितता और आघात के बीच, विश्वविद्यालय अपने मूल मूल्यों और नैतिक जिम्मेदारियों का सफलता पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं, जो शिक्षाविदों की कर्तव्य परायणता और विश्वसनीयता की कहानी बयां करता है।
मुझे आपसे यह साझा करते हुए हर्ष है कि देश में 20 से अधिक शोध संस्थान उच्च संक्रामक उपन्यास कोरोनवायरस के उपचार के लिए टीके विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं। इसमें हमारे श्रेष्ठ शैक्षणिक और शोध संस्थाओं के अतिरिक्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणो और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) भी एक हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग का कहना है कि सरकार को कोविड -19 से लड़ने के लिए निजी कंपनियों और व्यक्तियों से 7,000 से अधिक तकनीक-आधारित प्रस्ताव मिले हैं। आईआईटी-इनक्यूबेटरों को पोर्टेबल वेंटिलेटर के अनुसंधान और विकास पर ध्यान देने के लिए कहा गया है, जीनोम अनुक्रमण पर और रक्त के नमूनों से कोरोनोवायरस के स्ट्रेन के पृथकीकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्ताओं ने यहां कोविड-19 का पता लगाने के लिए एक विधि विकसित की है जो परीक्षण लागत को काफी कम कर सकती है। इस दिशा में कोविड- टास्क फोर्स का गठन महत्वपूर्ण है जिसके अंतर्गत कोविड-19 संबंधित प्रौद्योगिकी क्षमताओं को स्टार्ट-अप, शिक्षा, अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं और उद्योग में मैप किया जा रहा है। अब तक इसने देश में व्याप्त मौजूदा स्थिति के समाधान के रूप में 500 संस्थाओं की पहचान की है जिसमें एआई और आईओटी आधारित समाधान भी शामिल हैं। हमारे कई विश्वविद्यालय अपनी 3डी प्रिंटिंग प्रयोगशाला का उपयोग वेंटिलेटर के महत्वपूर्ण हिस्से बनाने में कर रहें हैं। देश विदेश की संस्थाओं के साथ कोरोना संकट से निपटने हेतु सहयोगात्मक शोध बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाये जा रहे हैं, अत्यंत कम समय में कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों ने करोना मरीजों के लिए विशिष्ट अस्पतालों का निर्माण किया है।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में इन कठिन परिस्थितियों में हमारे देश के शात मूल्यों की रक्षा करते हुए गुरु शिष्य परंपरा का उत्कृष्ट निर्वहन किया है, वह सराहनीय है। मुझे इस बात का संतोष है कि इस विकट संकट से उबरने के लिए हमारे 1000 विश्वविद्यालयों और 45000 महाविद्यालयों, 1 करोड़ अध्यापकों के नेटवर्क प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा है। हमारा प्रयास है कि हम सरकार, समाज और व्यापार के साथ सार्थक भागीदारी और सहयोग सुनिश्चित कर देश और समाज को इस महामारी से बचाएं। सभी संस्थानों के नेतृत्व से मेरा आग्रह है कि परिवार के मुखिया होने के नाते यह सुनिश्चित किया जाए कोई भी किसी प्रकार के डिप्रेशन, तनाव, अवसाद में न जाए। मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना हमारी प्राथमिकता है। अधिक संवेदनशील बनें, विद्यार्थियों की समस्या को निदान कर एक उत्साहपूर्ण वातावरण का सृजन आपका उद्देश्य होना चाहिए। देश और दुनिया के संस्थानों के द्वारा कोविड का निदान/उपचार ढूंढ़ने के अथक प्रयासों के मध्य उम्मीद और प्रार्थना है कि वायरस शीघ्र नियंत्रित हो जाएगा और जीवन जल्द ही सामान्य हो जाएगा। संकट के इन दिनों में एक आपसी सहयोग का, परोपकार का सकारात्मक परिवर्तन अवश्य दिखाई दिया है। मानवता के मूल्यों से ओत-प्रोत होकर समाज, पूरा देश एकजुट होकर परोपकार की भावना समाज में प्रेरित होकर कार्य कर रहा है। कमोबेश यही परिवर्तन शिक्षण और शोध जगत में दृष्टिगोचर होता है। संकट के इन क्षणों में हमारे शोध संस्थान, शैक्षणिक संस्थान अपनी सामथ्र्य अनुसार दिन रात जुटे हैं। आपसी सहयोगात्मक प्रयासों से हम समाज, देश, विश्व कल्याण के लिए बेहतर कर पाएं, अपने प्रयासों से समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति की मदद कर पाएं तभी जीवन की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। हां यह जरूर है कि कोविड-19 के संकट ने हमारे भीतर की मानवीय संवेदना को झकझोरने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
(लेखक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं)
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