कोरोना संकट : उभरती व्यवस्था में भारत-चीन
दुनिया चीन के शहर वुहान की गतिविधियां सामान्य पटरी पर लौटती देख रही है। धारणा यह है कि चीन दुनिया के संकट का व्यापारिक-आर्थिक लाभ लेने की योजना पर काम करते हुए उत्पादन पर फोकस कर रहा है।
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उसकी नजर प्रमुख देशों की उन कंपनियों पर भी है, जिनकी वित्तीय हालत खराब हो चुकी है। उसमें निवेश कर वह अपने आर्थिक विस्तार की योजना पर काम करने लगा है। ये संभावनाएं भय पैदा करतीं हैं कि कहीं कोरोना संकट दुनिया में चीन के सर्वशक्तिमान देश बन जाने में परिणत न हो जाए। निश्चित रूप से यह पक्ष भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए चिंताजनक है। लेकिन चीन को इसमें सफलता मिलने की संभानवा कम हैं।
चीन के खिलाफ ज्यादातर देश खुलकर बोल रहे हैं। सारे प्रमुख देश उसे कोरोना कोविड 19 के प्रसार का दोष घोषित कर चुके हैं। एकमात्र भारत ही है जो इस मामले में संयत रुख अपनाते हुए किसी तरह का आरोप लगाने से बच रहा है। जी 20 के वीडियो कॉन्फ्रेंस से आयोजित सम्मेलन में, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनिपंग भी उपस्थित थे, इस बात की पूरी संभावना थी कि कुछ देश चीन से नाराजगी व्यक्त करें, पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्धिमता से ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने अपने भाषण के आरंभ में कहा कि यह समय किसी को दोष देने या वायरस कहां से आया इस पर बात करने का नहीं बल्कि मिलकर इसका मुकाबला करने का है। इसका असर हुआ और सकारात्मक परिणामों के साथ वर्चुअल शिखर बैठक खत्म हुआ। किंतु न बोलने का अर्थ यह नहीं है कि भारत चीन का अपराध को समझ नहीं रहा।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस वैश्विक संकट के दौरान भारत की भूमिका का निर्वहन इस तरह किया है, जिसमें इभी चीन या किसी की आलोचना फिट नहीं बैठती। वास्तव में इस पूरे संकट के दौरान चीन और भारत की भूमिका में ऐसा मौलिक अंतर दुनिया ने अनुभव किया है, जिसका प्रभाव भावी विश्व व्यवस्था पर पड़ना निश्चित है। भारत ने कोविड-19 प्रकोप में अपने अंदर के संकट से लड़ते और बचने का उपाय करते हुए दुनियाई बिरादरी की चिंता, आवश्यकतानुसार सहयोग, मदद आदि का जैसा व्यवहार किया है, उसकी प्रशंसा चारों ओर हो रही है। पत्रकार वार्ता में हाइड्रोक्लोरोक्विन को लेकर एक बार रिटैलिएशन शब्द प्रयोग करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी की फिर प्रशंसा करने लगे हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने तो कह दिया कि मोदी ने हनुमान जी की संजीवनी बूटी की तरह हमारी मदद की है। वह दवा कितना कारगर है यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन मूल बात है संकट के समय दिल बड़ा करके दुनिया की मांग को पूरा करने के लिए आगे आना। भारत का यह चरित्र पूरी दुनिया को आकर्षित कर रहा है। कई नेताओं ने कहा है कि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की जगह चीन स्वास्थ्य संगठन बन गया है। इसकी चर्चा का उद्देश्य केवल यह बताना है कि चीन को लेकर किस तरह का गुस्सा दुनिया में है। इसके विपरीत भारत ने एक परिपक्व, संवेदनशील, मतभेदों को भुलाकर मानवता का ध्यान रखते हुए कोरोना संकट का सामना करने के लिए दुनिया को एकजुट करने के लिए प्रभावी कदम उठाने वाले देश की छवि बनाई है।
आखिर चीन को आलोचना से बचाने के लिए भी खुलकर भारत के प्रधानमंत्री ही सामने आए। यह वही चीन है, जो मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के रास्ते लगातार बाधा खड़ी करता रहा, जो कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के साथ रहता है, भारत के न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में प्रवेश की एकमात्र बड़ी बाधा है तथा सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी भी। भारत के पास भी मौका था चीन विरोधी भावनाओं को हवा देकर उसके खिलाफ माहौल मजबूत करने का। भारत ने इसके विपरीत प्रतिशोध की भावना से परे संयम एवं करु णा से भरे देश की भूमिका निभाई। चीन ने अपने यहां फंसे भारतीयों को निकालने की अनुमति देने में देर की थी। उस समय भी भारत ने धैर्य बनाए रखा। अनुमति मिलने के बाद वुहान से अपने और कुछ दूसरे देशों के लोगों को निकाला। दुनिया ने यह प्रकरण भी देखा है। इस समय एक दूसरी स्थिति भी पैदा हुई है। चीन ने कई देशों का मेडिकल सामग्रियां भेजनी शुरू की। पर ज्यादातर देशों में उसने ऐसी सामग्रियां भेजीं जो मानक पर खरे नहीं उतरते। कई देशों ने शेष ऑर्डर भी रद्द कर दिए हैं। चीन द्वारा निर्यात किए गए पीपीई के पूरी तरह अनुपयोगी होने की शिकायतें हैं। भारत में भी उसके रैपिड टेस्ट किट विफल हो गए। एक तो चीन द्वारा समय पर दुनिया को कोरोना वायरस में सूचना न देने को लेकर गहरी नाराजगी और उस पर घटिया सामग्रियों की आपूर्ति को लेकन दुनिया का मनोविज्ञान कैसा निर्मिंत हो रहा होगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। नेताओं से ज्यादा गहरी नाराजगी और असंतोष पूरी दुनिया की जनता के अंदर है।
मीडिया में अलग-अलग देशों के आ रहे सर्वेक्षणों से इसकी पुष्टि भी होती है। कई देशों में चीन पर मुकदमा कर हर्जाना वसूलने की भी मांग हो रही है। कोरोना महामारी से निकलने के बाद अनेक देश चीन से संबंधों पर पुनर्विचार करेंगे। इसमें दुनिया पर बढ़ता चीन का दबदबा कमजोर भी हो सकता है। दूसरी ओर भारत को देखिए। भारत पहला देश था, जिसने चीन में सहायता सामग्री भेजी। अपनी समस्या में उलझे हुए भी अनेक देशों में भारत आज भी सहायता सामग्रियों के साथ स्वास्थ्यकर्मी भेज रहा है। मदद भेजने वालों में सार्क सदस्यों के साथ मलयेशिया जैसे देश भी शामिल है; जिसने अनुच्छेद 370 एवं नागरिकता कानून पर भारत के खिलाफ बयान दिया। इसमें ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब भी हैं। चीन ने तो कोरोना संकट के दौरान बाहर की सुध तक नहीं ली। इसके समानांतर भारत एकमात्र देश है, जिसने पहले अपने पड़ोसी देशों के संगठन सार्क तथा बाद में दुनिया के प्रमुख देशों के संगठन जी 20 की बैठक बुलाने की पहल की।
निर्गुट देशों की वर्चुअल शिखर बैठक में भी इसकी प्रमुख भूमिका थी। संकट में फंसे एक-एक देश के नेता से मोदी लगातार बातचीत कर न केवल उनका आत्मबल बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि साथ मिलकर सामना करने की भी बात कर रहे हैं। इससे संबंध के नये सिरे से विकसित होने का आधार भी बन रहा है। भारत विश्व के अगुआ देश के रूप में उभरा है। दुनिया के हित की चिंता और उस दिशा में आगे बढ़कर काम करने का भारत का चरित्र ज्यादा खिला है। ये कारक अवश्य ही कोरोना के बाद उभरने वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को ठोस रूप में प्रभावित करेंगे।
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