विश्लेषण : निशाचरी प्रवृत्ति है कोरोना

Last Updated 29 Apr 2020 12:21:17 AM IST

जानलेवा महामारी कोरोना वायरस के जनक चमगादड़ और प्रच्छन्न रूप से इस बवाल में शामिल चीन की चर्चा आज विश्व में हो रही है।


विश्लेषण : निशाचरी प्रवृत्ति है कोरोना

महामारी से बचाव और सुरक्षा के तमाम उपायों के बावजूद कोरोना का दुष्प्रभाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस संबंध में तमाम तर्क और विवेचना सुनने-पढ़ने को मिल रहे हैं। इसी क्रम में गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस में व्याधियों के संदर्भ में उल्लेखित तथ्यों की ओर बरबस ध्यान आकृष्ट हो गया है।
करीब 525 साल पहले गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की थी। इसमें लोक नायक, लोक स्वामी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के उदात्त चरित्र का वर्णन करते हुए अनेक मनोवृत्तियों को भी स्पर्श किया है। मसलन सुर-असुर, मानव-दानव, सज्जन- दुर्जन, ज्ञानी- अज्ञानी, मूढ़-मायावी आदि का प्रसंगवश मार्मिंक विवेचन दर्शाया है। गोस्वामीजी यहीं नहीं रुकते, बल्कि मानस के अंतिम अध्याय ‘उत्तर काण्ड’ में जहां रामराज्य का वर्णन करते हुए ‘हर्षित भए गए सब सोका’ कहते हैं, वहीं निशाचरी प्रवृत्तियों का विस्तार से वर्णन करते हुए मन के रोगों के अनेक पक्षों को उकेरते हैं और समाज को स्वस्थ रहने के लिए मंत्र देते हैं।

गोस्वामी तुलसीदासजी रचित श्रीरामचरितमानस के पावन प्रसंगों में उठे प्रत्येक जिज्ञासाओं (प्रश्नों) का आध्यात्मिक तौर पर उत्तर है, उत्तरकांड। जिसमें पक्षीराज गरु ड़ एवं श्रीराम कथा कर रहे काकभुशुण्डि जी के बीच का संवाद है, चूंकि दोनों ही ‘खग’ अर्थात पक्षी हैं ‘खग जाने खग ही की भाषा’ इसलिए प्रसंगवश भुसुण्डि जी द्वारा जीव, जन्तु एवं पक्षियों का उदाहरण देते हुए..मनुष्य की मनोवृत्तियों का उल्लेख किया है। वे कहते हैं
‘हर गुर निंदक दादुर होई ।
जन्म सहस पाव तन सोई ।।
द्विज निंदक बहु नरक भोग करि।
जग जनमई बायस सरीर धरि।।
 - उत्तरकाण्ड 120 ख/12 ।
अर्थात शंकरजी और गुरु की निंदा करने वाला मनुष्य (अगले जन्म में) मेंढक होता है और वह हजार जन्म तक वही मेंढक शरीर पाता है। ब्राह्मणों की निंदा करने वाले अनेक नरक को भोग कर ‘कौवा’ शरीर धारण करते हैं।
‘सब कै निंदा जे जड़ करहीं।
ते चमगादुर होई अवतरहीं ।।120 ख/14
जो मूर्ख मनुष्य सबकी निंदा करते हैं। वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं।
इसी क्रम में गोस्वामी जी मनुष्य  के मनोवैज्ञानिक (मानस रोगों) दशाओं का जिक्र करते हुए लिखा है--
मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला ।
तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु शूला ।।
काम वात कफ लोभ अपारा ।
क्रोध पित्त निज छाती जारा ।। 120 ख/ 15  अर्थात सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान)  है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न हैं। वर्तमान में कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में तब्लीग जमात और अन्य लोग ‘आवास वास’ (क्वारंटीन) और  ‘एकांत वास’ (आइशोलेशन) की जो अवहेलना कर रहे हैं, उस ओर ही उक्त चौपाई का संकेत है। दूसरी ध्यान से चिंतन करें तो पता चलता है कि, कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में वात, कफ और पित्त तीनों की प्रबलता है। यह सन्नीपात यानी महामारी जानलेवा स्थिति है। दार्शनिक आश्रय लेकर गोस्वामी जी  कहते हैं कि ‘काम’ ही वात है, लोभ-लालच  अपार ( बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है। जो सदा छाती जलाता (एसीडीटी) रहता है। स्पष्ट है गोस्वामी जी यह संकेत दे रहे हैं कि मनुष्य अपनी प्रवृत्तियों के चलते जैसा आचरण करता है, उसी के अनुरूप दंडित होता है। मनुष्य के अच्छे-बुरे आचरण का समय और समाज पर गहरा प्रभाव होता है। लोग अक्सर बुराइयों की ओर आकर्षित होते हैं और तरह- तरह के भौतिक तापों (राज दंड, व्याधि व सामाजिक निरादर आदि) से परेशान होते हैं। उदाहरण के तौर पर गोस्वामीजी कहते हैं कि, पर निंदा (आलोचना और निंदा में तात्विक फर्क है) करने वाले अगले जन्म में ‘चमगादड़’ होते हैं। कोरोना वायरस का जनक यह चमगादड़ कौन है? यह पक्षियों के बीच में एकमेव स्तनधारी पक्षी है। इसकी करीब एक हजार प्रजातियां है।
उल्लेखनीय है कि सभी प्रजाति के चमगादड़ निशाचर हैं। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ये रात में ही विचरण करते हैं। पूर्व जन्म में निंदक होने के कारण मिली सजा के अनुसार पेड़ों की डाली पर या संकरी गुफाओं में जीवन भर उल्टे लटकना इनकी नियति है। ये दो वगरे में विभक्त हैं। एक वर्ग फलाहारी तो दूसरा वर्ग मांसाहारी है। हालत यह कि स्तनधारी और पैर अपेक्षाकृत छोटा होने के कारण जमीन पर ठीक से नहीं चल पाते और न उड़ान भर पाते हैं।
निशाचर प्रवृत्ति का आशय ही है, जो प्राणीमात्र को संकट में डालता रहता है। इसका प्रमाण चमगादड़ भी है। इसके शरीर में व्याप्त कोरोना वायरस ने आज दुनिया को हिलाकर रख दिया है। हालांकि यह माना जा रहा है कि, रहस्यमयी आचरण में लिप्त रहने वाला और स्वार्थ के वशीभूत, बेहिचक कुटिल नीतियों का इस्तेमाल करने वाला ‘चीन’ ही कोरोना वायरस संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चीन के शासक भी चमगादड़ के निशाचरी डीएनए से प्रभावित हैं। इसीलिए गुपचुप निशाचरी तरीकों से दुनियां को तबाह कर अपना वर्चस्व कायम करने का सपना देख रहे हैं। दूसरी ओर चीन की शैली से हटकर भारतीय नेतृत्व अपने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा का परिचय देते हुए कोरोना से बचाव का अभियान दुनिया के अनेक देशों के साथ मिलकर चला रहा है।
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ दुनिया भर में हो रही है। तथापि अपने देश में मेंढक प्रवृत्ति वाली जमात अपने कथित आचरण से कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में खलल डाल रही है। उनकी इस चाल पर भी लगाम लगेगा ही, इसमें कोई शक नहीं है। भारत सही मायने में मानवतावादी दृष्टिकोण को लेकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। निश्चित ही यथाशीघ्र निशाचरी मनोवृत्ति और प्रवृत्ति का शमन होकर रहेगा। सनातनी जीवनचर्या अपनाने से ही कोरोना रूपी निशाचरी शत्रु से बचाव हो सकता है, इसलिए अब वक्त आ गया है वैदिक युगीन जीवनचर्या अपनाने की।

आचार्य पवन त्रिपाठी
एस्ट्रोलॉजी टुडे के संपादक


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