कोरोना से लड़ाई : कैसे चलें उद्योग-व्यापार?

Last Updated 27 Apr 2020 12:20:33 AM IST

कोरोना महामारी के कारण अगर हमारे जीवन की रफ्तार पर गतिरोध लगा है तो जाहिर है इससे सभी खुश नहीं हैं।


कोरोना से लड़ाई : कैसे चलें उद्योग-व्यापार?

लेकिन सोचने वाली बात है कि लॉक-डाउन जैसे कठिन निर्णय लेने से पहले सरकार ने इसके हर पहलू पर सोचा जरूर होगा। जानकारों की मानें तो फिलहाल लॉक-डाउन से जल्द राहत मिलना सम्भव नहीं है। ऐसे में जहां सरकार इस लॉक-डाउन के एग्जिट प्लान के बारे में विचार कर रही है, वहीं समाज के कई वगोर्ं से भी इसके लिए कई सुझाव भी आ रहे हैं।
भारत में लॉक-डाउन को अब एक महीने से ज्यादा हो चला है। व्यापार और उद्योग जगत, चाहे लघु हो या विशाल, इस लॉक-डाउन के अंत की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है। ऐसे में सरकार की ओर से जो हिदायत और रियायतें आई हैं; वो मध्यम और लघु उद्योगपतियों को नाकाफी लग रहीं हैं। देश में एक लघु उद्योग चलाने वाले उद्यमी को उद्योग ठप होने और नियमित खचरे की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक ओर जहां उस उद्योगपति की फैक्टरी बंद पड़ी है वहीं उसे कर्मचारियों के वेतन के साथ-साथ फैक्टरी के किराए और बिजली के बिलों पर लगने वाले फिक्स्ड चार्ज को भी भरना पड़ रहा है। अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा दी गई रियायतों में इन खचरे का कोई जिक्र नहीं किया गया। केवल बड़े उद्योगों को कुछ जरूरी हिदायतों के साथ चलाने की अनुमति दी गई है। उधर सोशल मीडिया में भी कई तरह के सुझाव आते हैं कि किस तरह हमें अपनी गाड़ियों को सप्ताह में एक बार स्टार्ट कर लेना चाहिए, या किस तरह हमें कुछ व्यायाम रोज कर लेने चाहिए, जिससे गाड़ी और शरीर दोनों चलते रहें। ऐसे में अर्थव्यवस्था को बिल्कुल ठप होने से रोकने के लिए भी कुछ ठोस कदम उठाने की आवयश्कता है।

सरकार ने ऐसी हिदायत दे दी हैं कि हर उद्योगपति को अपने किसी भी कर्मी के वेतन का नहीं काटना है और उसे पूरा वेतन देना है। यह भी कहा गया है कि अगर फैक्टरी को सरकारी हिदायतों के साथ चलाया जाएगा तो उसमें काम करने वाले सीमित कर्मियों के रहने खाने की व्यवस्था साफ सुथरे वातावरण में, फैक्टरी परिसर में ही करनी होगी। यदि किसी कर्मी को किसी भी कारण से कोरोना का संक्रमण हुआ तो उस उद्योग को दो दिन के लिए बंद करके संक्रमण मुक्त किया जाएगा और तभी दोबारा चलने की अनुमति मिलेगी। अगर हमें देश की अर्थव्यवस्था को वापस र्ढे पर लाना है तो हर उस उद्योग को खुलने की छूट देना अनिवार्य होगा, जो इन बड़े उद्यमियों पर निर्भर हैं। केवल ट्रांसपोर्ट ही नहीं, उन सभी छोटी बड़ी दुकानों को भी सशर्त खुलने की छूट मिलनी चाहिए। अगर सामान की बिक्री नहीं होगी तो बड़ी-बड़ी फैक्टरी में बनने वाली वस्तुएं किस काम की? आज अगर सरकार ने कुछ सेवाकार्य करने वाले कारीगरों, जैसे कि इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर आदि को छूट दी है तो उनसे जुड़े दुकानदारों को छूट क्यों नहीं दी गई? अगर किसी के घर में कुछ बिगड़ गया है और उसकी मरम्मत करने वाला उपलब्ध है, लेकिन मरम्मत के लिए जरूरी सामान की दुकानें बंद है तो इस छूट का क्या फायदा? अगर सभी को सशर्त छूट मिलेगी तो आहिस्ता-आहिस्ता ही सही, पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी तो चलती रहेगी।
आज जब विश्व में कच्चे तेल कीमतों में भारी गिरावट आ चुकी है या कहें कि उसके दाम शून्य तक पहुंच गए हैं फिर इसका लाभ अगर जनता को क्यों नहीं मिल रहा? तो इसका कारण ये है कि देश में महंगे दर से खरीदे हुए तेल के भंडार अभी भरे हुए हैं। लॉक-डाउन के चलते पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर भी विपरीत असर पड़ा है। अगर लॉक-डाउन के एग्जिट प्लान में सशर्त छूट दी जाए तो उपभोक्ताओं को न सिर्फ सस्ते दर पर पेट्रोल और डीजल जल्द उपलब्ध होगा बल्कि सरकार को मिलने वाले कर में भी बढ़ोतरी होगी। वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक को भी इस दिशा में ऐसे ठोस कदम उठा कर देश में मुद्रा की वृद्धि कर उसका लाभ जनता तक पहुंचाना चाहिए। आज सरकार द्वारा मुफ्त में राशन बांटने से कहीं अच्छा ये होगा कि सरकार द्वारा इस पर होने वाले खर्च को स्वास्थ्य योजनाओं में लगाया जाए। मुफ्त में राशन वितरण का कार्य तो कई स्वयंसेवी संस्थाएं और व्यापारी वर्ग कर ही रहे हैं। सभी कारीगरों को काम में वापस लेकर उनके वेतन दिए जाएं, जिससे वो अपनी कमाई से राशन लें और अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर लाएं। 
गौरतलब है कि अगर पेट्रोल व डीजल के दामों में कटौती होती है तो इसका सीधा असर माल की ढुलाई की लागत में होगा और जरूरी वस्तुएं भी सस्ती होंगी। ऐसा ठीक उसी तरह से है जैसे कि मधु की पैदावार में फूल, माली, तितली और मधुमक्खी का योगदान होता है। परिवार के मुखिया को परिवार के सभी सदस्यों की बेहतरी के लिए सोचना होता है, तभी सबका भला होता है। इतिहास गवाह है कि चाहे वो गांव और मोहल्ले के स्तर पर रामलीला का आयोजन हो, दशहरा में रावण बनना हो या फिर देश में किसी संकट का समय हो तो मध्य और लघु उद्यमी और व्यापारी जितना बढ़-चढ़कर सहयोग करते हैं; उसकी तुलना किसी भी बड़े अनलाइन मार्केट कम्पनी या उद्यमी से नहीं की जा सकती। ऑनलाइन मार्केटिंग को बढ़ावा देकर तो इन सबका कारोबार समाप्त हो जाएगा, जिससे देश में बेरोजगारी द्रुत गति से बढ़ेगी। लॉक-डाउन में ये लोग ही आम जनता के लिए जीवन रक्षक बनकर सामने आए हैं। कोई ऑनलाइन पोर्टल नहीं आया। हां, यह जरूर है कि बड़े उद्यमी समाज के कल्याण के लिए उच्च स्तर पर कार्य करते हैं। फिर वो चाहे कोई विशाल मंदिर का निर्माण हो, स्कूल हो या फिर अस्पताल हो। वो ऐसे समाज कल्याण के कार्यों से पीछे नहीं हटते। 
‘रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार ।।
तो फिर लघु और मध्य उद्यमियों से सौतेला व्यवहार क्यों ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को देश के मुखिया होने के कारण इस दिशा में ठीक उसी तरह के ठोस कदम उठाने की जरूरत है जैसा उन्होंने अतीत में किया है। तभी ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा सच होगा।

विनीत नारायण


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