मुद्दा : कोरोना काल में ‘लंगर’
समूची दुनिया इस वक्त कोरोना वायरस की जद में है। महासंकट तथा महामारी की इस विपदा के दौरान हर देश में अल्पसंख्यक माने जाने वाला सिख समुदाय बेहद मुफीद अलहदा भूमिका निभा रहा है।
![]() मुद्दा : कोरोना काल में ‘लंगर’ |
एकबारगी फिर शिद्दत के साथ साबित कर रहा है कि नि:स्वार्थ सेवा भावना और मानवता के लिए संपूर्ण समर्पण सिखी के बुनियादी बड़े सिद्धांतों में है।
भारत से लेकर अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, इटली, कनाडा, जर्मन तथा तमाम यूरोपियन देशों से लेकर दुबई तक-गोया जहां भी गुरु द्वारे और सिख हैं, वहां दिन-रात लंगर सेवा हो रही है। यहां तक कि उस अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी जहां गाहे-बगाहे कट्टरपंथी, सिखों और हिंदुओं को बेरहमी के साथ निशाना बनाते रहते हैं। ‘लंगर’ सिखी की महान प्राथमिक परंपरा है। प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी के समय काल से इसका निर्वाह हो रहा है और आज तक विस्तार जारी है। प्रथम गुरु ने इस पावन परंपरा को इस संदेश के साथ शुरू किया था कि पृथ्वी का कोई जीव भूखा नहीं रहना चाहिए और लंगर-सेवा में मजहब, वर्ग तथा जात-पात कतई आड़े नहीं आनी चाहिए। कटु अपवादों को छोड़ दें तो लंगर की यह रिवायत बदस्तूर कायम रही है।
हिंदुस्तान का कोई राज्य हो, प्राकृतिक आपदा या अतीत में हुए युद्धों के दौरान जरूरतमंदों तक लंगर पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। विभाजन के वक्त हिजरत करने वालों से लदी रेलगाड़ियों और अन्य वाहनों को हिंदुस्तान प्रवेश करते ही लंगर दिया जाता था तथा आगे के सफर के लिए साथ भी बांध दिया जाता था।
पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को, जब तक उनकी रोजी-रोटी का स्थाई इंतजाम नहीं हुआ, लगातार लंगर खिलाया जाता रहा। तब का यह मंजर आज भी लोगों को याद है और बंटवारे पर लिखे गए बेशुमार उपन्यासों तथा कहानियों में दर्ज है। आजादी के बाद हुए युद्धों में भी फौजियों के लिए चौबीसों घंटों की लंगर सेवा की जाती रही है। फौज के कई जनरल तक ने खुले दिल से इसकी सराहना की है। खैर, फिलवक्त मनुष्यता कोरोना वायरस के खिलाफ बाकायदा जंग लड़ रही है और सिखों की लंगर परंपरा इसमें बेहद अहम भूमिका अदा कर रही है। अमेरिकी प्रशासन ने विधिवत अपने नागरिकों से कहा कि जरूरतमंद लोग खाने तथा अन्य सेवाओं के लिए मान्यता प्राप्त सिख संस्थाओं का सहयोग लें।
कनाडा और ब्रिटेन में खुद प्रधानमंत्रियों ने लंगर सेवा के लिए बार-बार सिखों का धन्यवाद किया। इटली और ऑस्ट्रेलिया में भी शासन प्रमुखों ने भी सिख सेवादारों की जमकर तारीफ की। इन तमाम देशों के रेडियो स्टेशन, टेलीविजन और अन्य मीडिया सिखों की लंगर परंपरा और अन्य सेवा पर कई विशेष प्रस्तुतियां दे चुका है। बीबीसी ने भी रिपोर्ट किया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सविस्तार बताया जा चुका है कि अमेरिका और कनाडा में पंजाबी ट्रांसपोर्टरों ने किस तरह सेवा के लिए अपने वाहन लगा दिए। कनाडा में तो रातों-रात लंगर के लिए ट्रक-ट्रालों में पंजाबियों ने अपने खर्चे पर, लंगर पैकेजिंग करने और महफूज रखने के लिए अत्याधुनिक मशीनरी के साथ विशेष फ्रीजर तक फिट कर दिए। सीएनएन के मुताबिक कई अन्य यूरोपियन देशों में भी ऐसा किया गया। यह बेमिसाल है।
कोरोना वायरस के पंजाब और शेष भारत में पैर पसारते ही सर्वोच्च सिख धार्मिंक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब से हुकमनामा जारी हो गया कि गुरु घर की गोलकों के मुंह गरीबों के लिए खोल दिए जाएं। शिरोमणि गुरु द्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने तमाम गुरु द्वारों के लिए त्वरित आदेश जारी किए कि जरूरत के हिसाब से लंगर लगाए और पहुंचाए जाएं। सूखे राशन के वितरण का भी प्रबंध किया गया। दरपेश कोरोना संकट में लाखों लोगों को बतौर लंगर देकर राहत पहुंचाई जा रही है। पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में।
किसी एक समुदाय द्वारा अपनी मानवतावादी व पावन धार्मिंक परंपराओं का इतनी शिद्दत तथा प्रतिबद्धता के साथ पालन करने का यह विलक्षण उदाहरण है। भविष्य में जब कभी कोरोना की काल कथा लिखी जाएगी (जोकि यकीनन बेहिसाब अवधि और तादाद में लिखी जाएगी), सिखों की लंगर प्रथा का जिक्र भी पूरे ऐहतराम के साथ प्रमुखता के साथ आएगा। प्रसंगवश, सिखधारा से निकली कतिपय अन्य संस्थाएं (डेरे) भी मौजूदा वक्त में अति उल्लेखनीय लंगर सेवा कर रही हैं। उन्हें भी सलाम..!
| Tweet![]() |