कोरोना : खाद्यान्न भंडार से उम्मीदें

Last Updated 24 Apr 2020 01:35:06 AM IST

इन दिनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना की चुनौतियों से संबंधित रिपोर्टों में यह कहा जा रहा है कि कोरोना से छाई निराशा के बीच भारत के लिए बेहतर कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था आशा की सबसे उजली किरण बनकर दिखाई दे रही है।


कोरोना : खाद्यान्न भंडार से उम्मीदें

ऐसे में कोरोना संकट के बीच भारत का सबसे मजबूत पक्ष यह है कि देश के सामने 135 करोड़ लोगों की भोजन संबंधी चिंता नहीं है। नवीनतम स्थिति के अनुसार अप्रैल, 2020 के अंत तक देश के पास करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार सुनिश्चित हो जाएगा जिससे करीब डेढ़ वर्ष तक देश के लोगों की खाद्यान्न संबंधी जरूरतों को सरलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है।
निश्चित रूप से 2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम प्रभावित हुआ था। इसका प्रमुख कारण देश के ग्रामीण बाजार की जोरदार शक्ति को भी माना गया था। यद्यपि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान करीब 17 फीसदी है, लेकिन देश के 60 फीसदी लोग खेती पर आश्रित हैं। एक बार फिर कोरोना संकट और लॉक डाउन के बीच देश की सबसे बड़ी अनुकूलता देश के सरकारी गोदामों में खाद्यान्न, दलहन और तिलहन का पर्याप्त भंडार बन गई है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि देश में चल रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और राशन कार्ड रखने वाले लोगों को वर्ष में करीब 6 करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है। यकीनन कोविड-19 महामारी के कारण देश भर में छाई गहरी निराशा के बीच हाल ही में 16 अप्रैल को कृषि मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किए  फसल वर्ष 2019-20 के दूसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े सुकून भरा संकेत दे रहे हैं।

आंकड़े बता रहे हैं कि देश में खाद्यान्न उत्पादन  29.19 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों के 3.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की बात कही गई है। यह भी बताया गया है कि आगामी फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्नों का उत्पादन लक्ष्य 29.83 करोड़ टन रखा गया है। देश में पहली बार इतना बड़ा खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य रखा गया है। इस बड़े लक्ष्य के पूरे होने की संभावना इसलिए है कि भारतीय मौसम विज्ञान (आईएमडी) ने इस वर्ष मानसून के अच्छा रहने की भविष्यवाणी की है। निस्संदेह भारतीय मौसम विज्ञान की अच्छे मानसून की यह संभावना न केवल देश के कृषि जगत के लिए अपितु पूरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है। अच्छा मानसून जल विद्युत उत्पादन और पानी का उपयोग करने वाले विभिन्न उद्योगों के लिए भी लाभप्रद है। इतना ही नहीं अच्छे मानसून से पानी के मौजूदा भंडार में और वृद्धि हो सकती है। इस समय देश के करीब 123 बड़े जलाशयों में पानी का मौजूदा भंडार पिछले वर्ष के जल स्तर से करीब 63 प्रतिशत अधिक है। अच्छे मानसून से आने वाले गर्मी के मौसम में कृषि और घरेलू क्षेत्र के लिए पानी की जरूरत पूरी करने में मदद मिलेगी। बेहतर कृषि से ग्रामीण क्षेत्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग में वृद्धि होगी तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन-2 में  सरकार की कृषि क्षेत्र के मोर्चे पर सराहनीय सक्रियता दिखाई दे रही है। देश की कृषि अर्थव्यवस्था को काफी हद तक अपनी हानि कम करने में मदद मिलेगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के सबसे बड़े स्त्रोत मनरेगा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। इसके तहत जल संरक्षण और सिंचाई कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है। साथ ही अधिक लोगों को रोजगार मिल सके, इसके लिए केंद्र  और राज्य सरकारों ने मौजूदा सिंचाई और जल संरक्षण योजनाओं को भी मनरेगा से जोड़ दिया  है। निस्संदेह मनरेगा की नई मजदूरी दर से भी ग्रामीण श्रमिक लाभान्वित होंगे। वर्ष 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट के तहत 60000 करोड़ रु पये का बजट निर्धारित किया हुआ है। सरकार ने वर्ष 2020-21 में ग्रामीण सड़क कार्यक्रम के लिए 19000 करोड रु पये का आवंटन किया है।
ऐसे विभिन्न प्रावधान बेहतर कृषि और बेहतर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद हैं। निश्चित रूप से लॉकडाउन-2 के तहत सरकार द्वारा 20 अप्रैल से खेती और ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी हुई गतिविधियों को शुरू किए जाने से उर्वरक, बीज, कृषि रसायन जैसे कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई कंपनियां और ट्रैक्टर निर्माताओं को इसका बड़ा फायदा मिलेगा। कृषि गतिविधियों में दी गई राहत से उपभोग की मांग बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
चूंकि इस समय कोरोना की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए कृषि क्षेत्र की अहमियत बढ़ गई है, ऐसे में किसानों के साथ पूरे देश को खड़ा होना पड़ेगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार ने लॉकडाउन के बीच कृषि कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। कृषि कार्यों के लिए लॉकडाउन से छूट दी गई है। सरकार ने किसानों को उनकी उपज मंडियों के अलावा सीधे भी बेचने की इजाजत दी है।
लेकिन अब किसानों को कुछ विशेष राहत देना भी जरूरी है। लॉकडाउन से कृषि और गांव को बचाने के लिए पीएम किसान की राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाया जाना चाहिए। किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा दोगुनी की जाए, ब्याज दर कम की जाए, किसानों के सभी कर्ज और किस्तों की अदायगी एक वर्ष के लिए निलंबित हो। किसानों को डीजल, पोटाश और डीएपी खाद पर छूट मिले। रबी फसलों पर अतिरिक्त बोनस मिले। कृषि यंत्रों, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और खाद पर छह माह तक के लिए जीएसटी समाप्त हो। सरकार द्वारा किसानों से सीधे खरीद को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए।
हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमारा देश कुशल नेतृत्व और सभी देशवासियों की एकजुटता के साथ अपनी बेहतर कृषि और अपने अनुकूल बुनियादी आर्थिक घटकों की शक्ति से कोरोना के खिलाफ जंग में अवश्य सफल होगा। हम उम्मीद करें कि कोरोना के बाद की नई दुनिया बेहतर कृषि और खाद्यान्न उत्पादन के प्रमुख देश के रूप में भारत की आर्थिक अहमियत बढ़ेगी।

डा. जयंतीलाल भंडारी


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