वर्चुअल हियरिंग : न्यायपालिका में नया आयाम

Last Updated 24 Apr 2020 01:30:15 AM IST

केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इक्कीस दिनों की पूर्ण बंदी (लॉकडाउन) लागू की थी, जिसे अब बढ़ाकर तीन मई तक कर दिया गया है।


वर्चुअल हियरिंग : न्यायपालिका में नया आयाम

यह  लॉकडाउन देश के लोगों को न्याय पाने में अवरोध बन गया और न्यायपालिका के सुचारु कामकाज के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को एक आदेश दिया जिसके तहत वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लंबित मामलों की वचरुअल सुनवाई की जाएगी।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 में निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए तमाम उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई की व्यवस्था कराएं। पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेर शामिल थे। शीर्ष अदालत ने लॉकडाउन के दौरान 25 मार्च के बाद से बेहद जरूरी मामलों की सुनवाई तक ही स्वयं को सीमित कर लिया है। अदालत इन मामलों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से कर रही है। अदालत ने इस बात पर बल दिया है कि ‘तकनीक का अच्छे से उपयोग किया जाना चाहिए’। वचरुअल सुनवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार की जाएंगी। शीर्ष अदालत ने नेशनल इंफॉरमेटिक्स सेंटर (एनआईसी) के विभिन्न राज्य अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयें से संपर्क करके अदालतों में वचरुअल कामकाज के लिए योजना तैयार करें। शीर्ष अदालत ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिए अदालतों हेतु दिशा-निर्देश तैयार करने संबंधी स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के दौरान किसी गवाह को पेश करने की अनुमति नहीं होगी और जरूरी ही हुआ तो अदालत का पीठासीन अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि अदालत के कक्ष में सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंगिंक) बनी रहे। शीर्ष अदालत द्वारा जारी कार्यालय आदेश में कहा गया है, ‘छोटे मामले, मौत की सजा वाले मामले और पारिवारिक कानून संबंधी मामले वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुने जा सकते  हैं। शर्त यह होगी कि सुनवाई के लिए संबद्ध पीठ तैयार हो तथा प्रधान न्यायाधीश से इस बाबत अनुमति हासिल कर ली गई हो।’

अदालतों में तीन करोड़ सत्तर लाख मामले लंबित हैं, और लॉकडाउन के दौरान वचरुअल सुनवाई ही एकमात्र उपाय न्यायपालिका के सामने दिखलाई पड़ता है। लॉकडाउन हटने के बाद अदालत का सामान्य कामकाज आरंभ होने पर घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और तलाक से जुड़े तमाम मामलों का अंबार लग जाने वाला है। बहरहाल, वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से वचरुअल सुनवाई करने में अदातलों के सामने अनेक चुनौतियां हैं। व्यावहारिक तौर पर देखें तो इंटरनेट संपर्क की खराब स्थिति, पुराने पड़ चुके ऑडियो और वीडियो उपकरण, बिजली की अनियमित आपूर्ति, तय समय पर संपर्क नहीं साध पाना, संबद्ध अनेक पक्षों गवाह, वकील आदि का सुनवाई के दौरान पेश न हो पाना आदि तमाम मुश्किलें हैं। इसलिए प्रभावी और सफल सुनवाई के लिए ऑडियो-वीडियो संबंधी ढांचागत सुविधाओं का अच्छी स्थिति में होना जरूरी है। इसके लिए आवश्यक है कि अदालतों और आईटी ढांचागत सुविधाओं में खासा निवेश किया जाए। फिर, गवाह की पहचान, प्रमाणों की विश्वसनीयता और स्वीकार्यता के साथ ही सुनवाई की गोपनीयता जैसी वैधानिक चुनौतियां भी होंगी।
वचरुअल सुनवाई के फायदों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत में अदालतें सालाना लगभग ग्यारह मिलियन कागज इस्तेमाल करती हैं। वचरुअल सुनवाई होने से कागज के इस्तेमाल में खासी कमी आएगी। इससे न केवल वृक्षों का संरक्षण होगा, बल्कि देश में कार्बन का फैलाव भी रुक सकेगा। साथ ही, अदालतों में इमारत, स्टाफ, ढांचागत, सुरक्षा, परिवहन पर लागतें भी कम होंगी। अदालती कार्यवाहियों खासकर जेलों से कैदियों को अदालत में पेशी के लिए लाने-वापस जेल पहुंचाने जैसी बातों पर खर्च भी  कम हो जाएगा। यदि इस तरीके का उपयोग करने में संबद्ध पक्ष या वकीलों को दिक्कत दरपेश है तो शिकायत दर्ज कराने की समुचित व्यवस्था बनाई  जानी चाहिए और इस मामले में न केवल वैधानिक पक्ष के लोग, बल्कि स्थानीय सरकार और एनजीओ को आगे बढ़कर लोगों की मदद करनी चाहिए।
पीड़ित पक्ष को त्वरित और तत्काल राहत दिलाने के लिए ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजोल्यूशन (ओडीआर) प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है। यह प्रणाली तकनीक और ऑल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेजोल्यूशन (एडीआर) से वजूद में आई है। दोनों पक्ष सुलह चाहें और मध्यस्थों की नियुक्ति पर सहमत हों तो ई-मेल, व्हाट्सअप या एसएमएस की मदद से इस बाबत व्यवस्था की जा सकती है। लॉकडाउन के बाद भी ओडीआर या वचरुअल सुनवाई जारी रखी जानी चाहिए। इससे न केवल पारंपरिक अदालतों पर कार्य का दबाव कम होगा, बल्कि लंबित मामलों की संख्या भी कम हो सकेगी। नतीजतन, समय से पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाना संभव हो सकेगा। यदि न्यायपालिका आने वाले समय में इस तौर-तरीके या व्यवस्था को जारी रखना चाहती है, तो जरूरी है कि एक समुचित प्रणाली तैयार की जाए और इस प्रणाली की निगरानी के लिए एक कानून भी बनाया जाना चाहिए।

दीक्षा


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