कोरोना : जो मुझ पर बीती..

Last Updated 22 Apr 2020 01:00:11 AM IST

वैश्विक महामारी कोरोना को खत्म करने में सरकार ने अपने सभी संसाधन झोंक दिए हैं, मगर कई घटनाएं ऐसी हैं जो न केवल सरकार की तैयारियों को झुठलाती हैं बल्कि उसकी सत्ता को भी चुनौती देती है।


कोरोना : जो मुझ पर बीती..

देश में संक्रमण के अब तक करीब 19000 मामले सामने आ चुके हैं जबकि मौतों का आंकड़ा 600 के पार चला गया है। हालांकि कुछ जगहों से अच्छी खबरें भी आ रही हैं, मगर हालात काबू में हैं ये कहना न्यायसंगत नहीं होगा। खासकर आइसोलेशन वार्ड, जहां कोरोना संदिग्धों को टेस्ट के बाद रखा जाता है; वहां बहुत कुछ करने की अच्छी-खासी जरूरत है।

मेरा खुद का अनुभव काफी भयावह रहा है। इसकी कहानी शुरू होती है, पिछले सोमवार (13 अप्रैल) से। पिछले सोमवार से पहले मेरी पत्नी को पिछले एक हफ्ते से फीवर आ रहा था। मेरे घर के पास के ही अस्पताल में उसका ट्रीटमेंट चल रहा था। अचानक से उसे कफ की प्रॉब्लम भी होने लगी। फिजीशियन ने सलाह दी कि आप सेफ साइड के लिए कोरोना का टेस्ट करा लो। चूंकि टीवी और अखबारों में पढ़कर यह लगा था कि सरकार की कोरोना से लड़ाई की तैयारियां दुरुस्त है, लिहाजा मैंने कोरोना का टेस्ट कराने की बात मान ली। लेकिन यह उतना आसान नहीं था, जितना मैंने सोच रखा था। थक-हार कर मैंने सरकार की हेल्पलाइन से मदद लेने का फैसला लिया। सरकार का सेंट्रल हेल्पलाइन, स्टेट हेल्पलाइन और टोल फ्री नम्बर तीनों पर मैं, मेरा भाई और मेरी वाइफ, तीनों ने लगातार फोन मिलाया मगर अफसोस किसी ने हमारा फोन नहीं उठाया। तकरीबन एक घंटे बाद मेरे भाई के फोन से स्टेट हेल्पलाइन का नंबर मिला। उस हेल्पलाइन से किसी सामान्य कॉल सेंटर की तरह रटा-रटाया जवाब देकर कि कल शाम यानी 14 अप्रैल की शाम तक फोन आने की बात कहकर फोन काटने की कोशिश की, लेकिन मैंने बोला कि सिचुएशन क्रिटिकल है, अगर किसी पेशेंट को कोरोना है तो उसे जल्द-से-जल्द ट्रीटमेंट देना चाहिए, ऐसी सिचुएशन में हम आपकी कॉल का कब तक इंतजार करेंगे? इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। मेरा आशय कहीं से भी सरकार को कोसना या उनके खिलाफ दुष्प्रचार करना कतई नहीं है। सरकार की कई मामलों में तैयारियां या सुविधाएं बेहतरीन हैं। किंतु प्राथमिक स्तर पर अगर चीजों को सुधारा नहीं जाएगा तो आगे की राह काफी कठिन हो जाएगी। खासकर सीएमओ कार्यालय का पूरे मामले में जवाबदेही से बचना या ऐसे मामलों में गंभीर न होना सरकार के उस प्रयास को पलीता लगा रहे हैं, जिसकी कल्पना शायद सरकार के उच्चाधिकारी भी नहीं किए होंगे। खैर सीएमओ कार्यालय से जब 108 नंबर पर खुद फोन कर एंबुलेंस मंगाने की सलाह दी गई तो मैंने यही किया। और रात 10 बजे मुझे फोन आया कि एंबुलेंस तैयार है। चूंकि मेरी 15 माह की बेटी है, सो हमने उसे अपने भाई के पास छोड़कर पत्नी के साथ एंबुलेंस में बैठ गया। घंटों चक्कर लगाने के बाद ड्राइवर हमें लेकर गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पहुंचा। वहां हमसे यह कहा गया कि आप दोनों का टेस्ट होगा और रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी। और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आइसोलेट होना पड़ेगा। बेटी का हवाला देने के बावजूद उन्होंने मेरी बातों की अनदेखी की और रात 2 बजे सैंपलिंग की प्रक्रिया खत्म होने के बाद पांच संदिग्ध मरीजों के साथ हमें भी एंबुलेंस में बिठाकर एससीएसटी हॉस्टल में आइसोलेशन में ले जाया गया।
रात किसी तरह गुजारने के बाद जब सुबह मैंने साबुन मांगा तो यह कहा गया कि पानी से हाथ धो लो। आइसोलेशन सेंटर सैनिटाइजेशन के नाम पर कुछ भी नहीं था। चारों तरफ कूड़ा फैला पड़ा था। मेरे साथ ही एक और लड़का आइसोलेट हुआ था, गंदगी और गर्मी के कारण वो कल मेरे सामने बेहोश हो गया। कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था। कुल मिलाकर इस केंद्र में सुविधा मुहैया कराने के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई जा रही थी। बड़े अधिकारी जो वहां विजिट कर रहे थे वो बाहर से ही बाहर निकल जा रहे थे। संक्षेप में कहूं तो सरकारी मुलजिमों का व्यवहार काफी आपत्तिजनक था। सरकार से बस इतना आग्रह है कि कोरोना से लड़ाई में जो अधिकारी, डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं उनकी काउंसलिंग करे। ऐसे मुश्किल समय में हर कोई तनाव में है; फिर भी सब कुछ मुहैया कराकर सरकार कठघरे में आए; यह अच्छी बात नहीं है। मेरा नरेन्द्र मोदी सरकार से कोई बैर नहीं है न योगी सरकार से है। मगर यह जरूर कहना चाहूंगा कि सरकार सिर्फ प्रचार पर ध्यान न दे बल्कि जमीनी हकीकत को जानने-समझने का भी प्रयास करे।

मृत्युंजय शर्मा


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