कोरोना इफेक्ट : आत्महत्या की प्रवृत्ति बड़ी चुनौती

Last Updated 21 Apr 2020 12:30:21 AM IST

एक ओर जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी से लड़ रही है वहीं इससे डर की वजह से कुछ खतरनाक प्रवृत्तियां भी परेशान करने वाली है।


कोरोना इफेक्ट : आत्महत्या की प्रवृत्ति बड़ी चुनौती

खासकर लोगों में कोरोना की दहशत के कारण खुदकुशी करना देश-दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। नि:संदेह इस महामारी ने मानसिक रूप से लोगों को बीमार बनाना शुरू कर दिया है।
पिछले कई दिनों से खुदकुशी करने के समाचार लगातार आ रहे हैं। यहां तक कि इनमें से कुछ लोगों ने जांच रिपोर्ट आने का इंतजार तक नहीं किया और हिम्मत हार गए। साइकोलॉजिस्ट का भी मानना है कि कोरोना और लॉकडाउन ऐसे लोगों के लिए ज्यादा घातक हो गया है, जो पहले से ही डिप्रेशन में हैं उनके मन में अब आत्महत्या के विचार ज्यादा आ रहे हैं। हालांकि सुसाइड करने का यह सिलसिला सिर्फ  अपने देश तक ही सीमित नहीं है।

सम्पन्न और समृद्ध देशों में लोग यह घातक कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। कुछ दिन पहले ही जर्मनी में वित्त मंत्री थॉमस शाफर ने कोरोना वायरस से देश की अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान से चिंतित होकर खुदकुशी कर ली। दरअसल, वह इस बात से अंदर ही अंदर घुट रहे थे कि कोरोना से देश की अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हो रहा है, उससे कैसे निपटा जाएगा। उधर, इटली जहां इस महामारी से हजारों लोग मारे गए हैं वहां मरीजों का इलाज कर रही एक नर्स ने आत्महत्या कर ली। उसे डर था कि उसके चलते कोई और कोरोना की चपेट में न आ जाए।

दरअसल, कोरोना को लेकर लोगों में हद से ज्यादा डर बैठ गया है, जिसके कारण ज्यादा-से-ज्यादा लोग कोरोना स्ट्रेस की चपेट में आ रहे हैं और इसका सीधा असर पड़ रहा है उनकी मानसिक हालत पर। आम सर्दी, जुकाम और बुखार हो जाने पर भी लोगों के मन में यह भय समा गया है कि कहीं उन्हें कोरोना तो नहीं हो गया। कहीं उसके परिवारवालों और दोस्तों को हो गया तो क्या होगा? यह सोच-सोच कर लोग अपना जीवन खत्म करने लगे हैं। ऐसे लोगों का का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हालांकि समाज को भी ऐसे मामलों में समझदार और संवेदनशील होना होगा। ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आई है, जहां कोरोना संदिग्धों के प्रति लोगों में हेय भावना देखी गई। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के बनगढ़ गांव में एक ऐसा मामला सामने आया, जहां 5 अप्रैल को एक आदमी ने आत्महत्या कर ली। क्योंकि गांव वाले उसे लगातार ताना दे रहे थे।

उसका कोरोना टेस्ट भी हुआ था जो निगेटिव आया था। उसके बाद भी उसे सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा। लिहाजा सरकार और इस पर काम करने वाले संगठनों को इसका निदान ढूंढने के लिए आगे आना होगा।  पीड़ितों और संदिग्ध मरीजों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ समाज के प्रबुद्ध लोगों को भी यह जिम्मेदारी निभानी होगी। हो सके तो अस्पतालों और क्वारंटीन सेंटरों में मनोवैज्ञानिकों (साइकोलॉजिस्ट) को नियुक्त किया जाना चाहिए। अस्पतालों में पीड़ितों का इलाज और संदिग्धों की जांच कर रहे डॉक्टर भी उनको समझाकर उनका मनोबल बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा संदिग्धों व इससे भयभीत लोगों को स्ट्रेस फ्री करने के लिए हेल्पलाइन नंबर और एप भी शुरू किया जा सकता है। इन हेल्पलाइन नंबर पर साइकोलॉजिस्ट लोगों की मदद कर सकते हैं। वैसे अच्छी बात है कि सरकार ने इस महामारी से लड़ने और लोगों के मार्गदर्शन के लिए ‘आरोग्य सेतु एप’ शुरू किया है।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि कोरोना पीड़ित मरीजों के ठीक होने के बाद भी उनकी पहचान को गुप्त रखा जाए, जिससे वह सामाजिक भेदभाव का शिकार न हों। इसके अलावा वे तमाम तरीके अपनाए जा सकते हैं जो तनाव दूर करने में मदद करें। दरअसल, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें लॉक-डाउन के कारण मुश्किल आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है। वे इसके चलते तनाव में हैं। उन्हें तनाव मुक्त करने के लिए आने वाले दिनों में सरकार क्या रोडमैप ला रही है; इसके बारे में बताना होगा।

हालांकि व्यवसाय करने वाले और कोर्ट में जिनके मामले चल रहे हैं; उन लोगों के लिए मुफ्त परामर्श सेवाएं मुहैया कराई जा रही हैं, जहां चार्टेड अकाउटेंट और वकील उन्हें  सलाह दे रहे हैं।  मेडिटेशन, प्राणायाम, व्यायाम और मॉर्निग वॉक भी स्ट्रेस कम करने में मददगार है। ताजी हवा में सांस लेने से दिमाग सही दिशा में दौड़ेगा। दोस्तों-रिश्तेदारों से बात करना भी स्ट्रेस फ्री रहने का अच्छा तरीका है। इसके अलावा हेल्दी डाइट लेना होगा, नींद पूरी करना, गाने सुनना, किताबें पढ़ना ये सारे तमाम तरीके अवसाद दूर भगाने में कारगर हथियार हैं और इन्हें अमल में लाया जाना चाहिए। इसके साथ ही नकारात्मकता कंटेंट वाले सोशल मीडिया के समाचारों और वायरल वीडियो को भी देखने से बचना चाहिए।

ज्योति सिंह


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