वैश्विकी : आगे आर्थिक चुनौती
कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया के राजनीतिक और आर्थिक तंत्र को युद्ध की मुद्रा में ला खड़ा किया है।
![]() वैश्विकी : आगे आर्थिक चुनौती |
यह युद्ध एक अदृश्य वायरस के खिलाफ है तथा यह कहना मुश्किल है कि इसे कब और किस सीमा तक हराया जा सकेगा। विभिन्न देशों के नेता और विशेषज्ञ यह आकलन करने में लगे हैं कि इस महामारी से कितना नुकसान होगा और कब तक इसकी भरपाई होगी। फिलहाल इस अभूतपूर्व संकट के दौर में विभिन्न देशों की आम जनता अपने नेताओं में विश्वास व्यक्त की है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप, जर्मनी में एंजेला मर्केल, ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन और फ्रांस में मैकरोन जैसे नेताओं की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। कारण स्पष्ट है कि जनता संकट से उबरने के लिए सरकार और उसके नेता पर भरोसा कर रही है। महामारी का मुकाबला करने में नेताओं ने अपनी ओर से जो गलतियां की या कोताही बरती उसे लेकर जनता इस समय चर्चा नहीं करना चाहती। जब संकट कम होगा या समाप्त होगा तो विभिन्न नेताओं के कार्यों का मूल्यांकन किया जाएगा।
दुनिया के प्रमुख देशों में केवल अमेरिका है, जहां इस वर्ष नवम्बर में चुनाव होने हैं। कोरोना महामारी फैलने के पहले तक अमेरिका की अर्थव्यवस्था ठोस नजर आ रही थी तथा बेरोजगारी के आंकड़े भी बहुत कम थे। राष्ट्रपति ट्रंप अपनी इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर दोबारा जनादेश हासिल करने के प्रयास में थे, लेकिन महामारी ने उनका चुनावी गणित गड़बड़ कर दिया। और साथ ही महामारी से निपटने के बारे में उनके रवैये को लेकर भी विपक्षी डेमोक्रेट पार्टी और अमेरिकी मीडिया ट्रंप को कठघरे में खड़ा कर रही है। ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने कोरोना महामारी की गंभीरता को नजरअंदाज किया तथा फरवरी और मार्च महीने के मध्य तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। ट्रंप प्राशासन ने जब लॉक-डाउन जैसे प्रतिबंधात्मक उपाय किए तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भारत संिहत दुनिया के अन्य देशों में नेताओं को दोबारा जनादेश हासिल करने के लिए मतदाताओं के सामने नहीं जाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो अभी पिछले वर्ष ही जनादेश हासिल किया है। कोरोना महामारी से निपटने के मोदी सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन फिलहाल चुनाव मैदान में नहीं होना है। प्रधानमंत्री मोदी की असल परीक्षा महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की होगी। महामारी के पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं थी। बेरोजगारी और ग्रामीण दशा चिंताजनक थी। कोरोना महामारी से इन दोनों मोचरे पर चुनौती कई गुना बढ़ गई है।
भारत सहित पूरी दुनिया में लॉक-डाउन लागू किया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने इस लॉक-डाउन को ‘महा लॉक-डाउन’ कहा है। यह लॉक-डाउन दुनिया को 90 साल पहले आई आर्थिक मंदी के कुएं में ढकेल सकता है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस लॉक-डाउन से व्ैिक स्तर पर लगभग 9 ट्रिलियन डॉलर की उत्पादन हानि हो सकती है। भारत में भी कोरोना महामारी के चढ़ते ग्राफ को रोकने के लिए शायद दुनिया का सबसे कठोरतम लॉक-डाउन लागू किया है। इसके जो आर्थिक परिणाम होंगे वे उतने ही कठोर और भयावह होंगे। दुनिया सहित भारत की आर्थिक स्थिति पर वि बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और अन्य संगठनों के अध्ययन सामने आ रहे हैं। इन अध्ययनों में मुख्य तौर पर इस बात का फोकस रहता है कि कोरोना वायरस दुनिया की अर्थव्यवस्था को किस तरह प्रभावित कर सकता है। लेकिन सभी का एक स्वर से मानना है कि वैश्विक मंदी छाई हुई है और भारत इससे अछूता नहीं रह सकता। वि बैंक का मानना है कि कोरोना वायरस ने भारतीय अर्थव्यवस्था को जबरदस्त झटका दिया है।
इससे देश की अर्थव्यवस्था 1991 के उदारीकरण के बाद सबसे खराब होगा। बैंक का अनुमान था कि 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 1.5 से 2.8 फीसद के बीच रहेगी। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना के कारण भारत की विकास दर 4.2 फीसद से घटकर 1.9 हो जाएगी। लेकिन राहत की बात यह है कि 2021-2 के वित्त वर्ष में इसमें उछाल आएगा और विकास दर बढ़कर 7.4 हो जाएगा। लेकिन इस वैश्विक आर्थिक सकंट में विभिन्न देशों को परस्पर सहयोग करना होगा। क्योंकि व्यापार युद्ध और आर्थिक संरक्षणवाद से समस्याओं का हल नहीं होगा।
| Tweet![]() |