कोरोना से लड़ाई : केरल ने किया कमाल
कोरोना वायरस का भारत में सबसे पहला मामला 30 जनवरी 2020 को केरल में पाया गया था। तब से आज तक कोरोना के कारण केरल में केवल 2 मौतें हुई हैं।
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इस दौरान 1.5 लाख लोगों की टेस्टिंग हो चुकी है, 7447 लोगों में संक्रमण पाया गया और 643 लोग इलाज के बाद ठीक भी हुए। जहां भारत के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कोरोना को लेकर हड़बड़ाहट में, रात दिन सांप्रदायिक जहर उगल रहा है, वहीं दुनिया भर के मीडिया में कोरोना प्रबंधन को लेकर केरल सरकार द्वारा समय रहते उठाए गए प्रभावी कदमों की जमकर तारीफ हो रही है। विशेषकर केरल की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर की, जो बिना डरे रात-दिन इस माहमारी से लड़ने के सड़कों, घरों, अस्पतालों में प्रभावशाली इंतजाम में जुटी रही हैं।
अगर पूरे भारत की दृष्टि से देखा जाए तो केरल अकेला ऐसा राज्य है, जिसके सामने कोरोना से लड़ने की चुनौती सबसे ज्यादा थी। इसके तीन कारण प्रमुख हैं। भारत में सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक केरल में ही आते हैं। चूंकि कोरोना विदेश से आने वाले लोगों के मध्यम से आया है इसलिए इसका सबसे बड़ा खतरा केरल को था। दूसरा: केरल का शायद ही कोई परिवार हो, जिसका कोई-न-कोई सदस्य विदेशों में काम न करता हो और उसका लगातार अपने घर आना जाना न हो। केरल की 17.5 फीसद आबादी विदेशों से रहकर आई है। इसलिए इस बीमारी को केरल में फैलने खतरा सबसे ज्यादा था। तीसरा; केरल भारत का सबसे ज्यादा सघन आबादी वाला राज्य है। एक वर्ग किलोमीटर में रहने वाली आबादी का केरल का औसत शेष भारत के औसत से कहीं ज्यादा है।
इसलिए भी इस बीमारी के फैलने का यहां बहुत खतरा था। इसके बावजूद आज केरल सरकार ने हालात काबू में कर लिया है। फिर भी स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर का कहना है, ‘हम चैन से नहीं बैठ सकते, क्योंकि पता नहीं कब ये माहमारी, किस रूप में फिर से आ धमके।’ आम तौर पर हम सनातनधर्मी लोग वामपंथी विचारधारा का समर्थन नहीं करते क्योंकि हम ईश्वरवादी हैं और वामपंथी नास्तिक विचारधारा के होते हैं। पर पिछले तीन महीनों के केरल की वामपंथी सरकार के इन प्रभावशाली कार्यों ने यह सिद्ध किया है कि नास्तिक होते हुए भी अगर वे अपने मानवतावादी सिद्धांतों का निष्ठा से पालन करें तो उससे समाज का हित ही होता है। सबसे पहली बात तो केरल सरकार ने ये किया कि उसने बहुत आक्रामक तरीके से फरवरी महीने में ही हर जगह लोगों के परीक्षण करने शुरू कर दिए थे। इस अभियान में स्वास्थ्य मंत्री ने अपने 30 हजार स्वास्थ्य सेवकों को युद्ध स्तर पर झोंक दिया। नतीजा यह हुआ कि अप्रैल के पहले हफ्ते में पिछले हफ्ते के मुकाबले संक्रमित लोगों की संख्या में 30 फीसदी की गिरावट आ गई। जबकि शेष भारत में लॉक-डाउन के बावजूद संक्रमित लोगों की संख्या व मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह सही है कि इटली, स्पेन, जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका जैसे विकसित देशों के मुकाबले भारत का आंकड़ा प्रभावशाली दिखाई देता है। पर इस सच्चाई से भी आंखे नहीं बंद की जा सकती कि शेष भारत में कोरोना संक्रमित लोगों के परीक्षण का सही आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है।
मेडिकल उपकरणों की अनुपलब्धता, टेस्टिंग सुविधाओं का आवश्यकता से बहुत कम होना और कोरोना को लेकर जो आतंक का वातावरण मीडिया ने पैदा किया; उसके कारण लोगों का परीक्षण कराने से बचना। ये तीन ऐसे कारण हैं, जिससे सही स्थिति का आकलन नहीं किया जा सकता। इसलिए पिछले हफ्ते ही मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सोशल मीडिया के मध्यम से सुझाव दिया था कि वे हर जिले के जिलाधिकारी को निर्देशित करें कि वे अपने जिले में हर दिन किए गए परीक्षणों की संख्या और संक्रमित लोगों की संख्या अपनी वेबसाइट पर पोस्ट करें। जिसकी गणना करके फिर नेशनल इन्फाम्रेटिक्स सेंटर (एनआईएस) सही सूचना जारी करता रहे। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू किया गया ‘आरोग्य सेतु’ एप इस दिशा में एक सराहनीय कदम है पर यह भी उस कमी को पूरा नहीं करता जो जिलाधिकारी कर सकते हैं।
अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित अखबार ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ ने लिखा है कि केरल का उदाहरण भारत सरकार के लिए अनुकरणीय है। क्योंकि पूरे देश का लॉक-डाउन करने के बावजूद भारत में संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इस लेख के लिखे जाने तक लगभग 7.5 हजार लोग संक्रमित हो चुके हैं और करीब 240 लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। हालांकि केरल में भी स्वास्थ्य सेवाओं की दशा बहुत हाई क्लास नहीं थी पर उसने जो कदम उठाए, जैसे लाखों लोगों को भोजन के पैकेट बांटना, हर परिवार से लम्बी प्रश्नावली पूछना और आवश्यकता अनुसार उन्हें सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराना, संक्रमित लोगों को तुरंत अलग कर उनका इलाज करना जैसे कुछ ऐसे कदम थे, जिनसे केरल को इस महामारी को नियंत्रित करने में सफलता मिली है। केरल के हवाई अड्डों पर भारत सरकार से भी दो हफ्ते पहले यानी 10 फरवरी से ही विदेशों से आने वालों यात्रियों के परीक्षण शुरू कर दिए गए थे। ईरान और दक्षिण कोरिया जैसे 9 देशों से आने वाले हर यात्री को अनिवार्य रूप से क्वारंटीन में भेज दिया गया।
पर्यटकों और अप्रवासी लोगों को क्वारंटीन में रखने के लिए, पूरे राज्य में भारी मात्रा में अस्थाई आवास गृह तैयार कर लिये गए थे। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पिछले 30 सालों में केरल की सरकार ने ‘सबको शिक्षा और सबको स्वास्थ्य’ के लिए बहुत काम किया है, जबकि दूसरी तरफ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का व्यवसायीकरण करने के हिमायती विकसित पश्चिम देश अपनी इसी मूर्खता का आज खामियाजा भुगत रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का कहना कि अमेरिका में इस महामारी से 1 से 2.5 लाख लोग मर सकते हैं, अगर 1 लाख से कम मरे तो हम इसे अपनी सफलता मानेंगे। ऐसा इसलिए है कि अमेरिका में जनस्वास्थ्य सेवाओं का आभाव है और इसलिए वहां चिकित्सा बहुत महंगी होती है। केरल के इस अनुभव से सबक लेकर भारत सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण पर रोक लगाने के लिए फिर से सोचना होगा। क्योंकि पहले तो मौजूदा संकट से निपटना है फिर कौन जाने कौन सी विपदा फिर आ टपके।
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