सरोकार : ..तभी बाजार कमाई करता है

Last Updated 29 Mar 2020 12:53:55 AM IST

कोरोना की खबरों के बीच कुछ खबरें कुछ अलग किस्म की भी होनी चाहिए। एक खबर यह है कि जापान एयरलाइंस में काम करने वाली महिला फ्लाइट अटेंडेंट्स के लिए अब हाई हील या स्कर्ट पहनना जरूरी नहीं।


सरोकार : ..तभी बाजार कमाई करता है

महिलाओं के लिए वर्कप्लेस पर ड्रेस कोड को लेकर जापान में लंबे समय से हैशटैगकूटू चल रहा था-एयरलाइन के इस कदम को इस अभियान की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। जापान एयरलाइन पहली बड़ी जापानी कंपनी है जिसमें महिलाओं के लिए इस नियम में ढिलाई दी है।
अक्सर महिलाएं कहती थीं कि उन्हें हाई हील पहनना अनकम्फर्टेबल बनाता है क्योंकि इससे पैरों और घुटनों में भयंकर दर्द होता है। जापान एयरलाइंस में करीब छह हजार महिलाएं क्रू मेंबर के तौर पर काम करती हैं। वे ऐसे जूते चुन सकती हैं जो उन्हें आरामदेह लगें। स्कर्ट की जगह ट्राउजर्स भी पहन सकती हैं। हैशटैगकूटू को शुरू करने वाली ऐक्ट्रेस यूमी इशिकावा ने इस कदम का स्वागत किया है। एक समय यूमी को भी जबरन हाई हील पहननी पड़ी थी, जब वह एक कंपनी में पार्ट टाइम नौकरी कर रही थीं। होटल, डिपार्टमेंटल स्टोर्स, बैंक और दूसरी बहुत-सी कंपनियों में भी यह पहल होनी चाहिए क्योंकि वहां भी महिलाओं के लिए निश्चित ड्रेस कोड लागू होता है।

पिछले साल क्योदो न्यूज एजेंसी ने एक सर्वेक्षण में पता लगाया था कि बैंक और एयरलाइन जैसी कस्टमर सर्विस देने वाली र्फम्स में महिला कर्मचारियों को हाई हील पहननी पड़ती है। एक दूसरे सर्वेक्षण में 60 फीसद से ज्यादा औरतों ने कहा था कि उन्हें हाई हील पहननी पड़ी है, या उन्होंने औरतों को मजबूरी में हाई हील पहनते देखा है। 80 फीसद से ज्यादा ने कहा था कि फुटिवयर से उन्हें असुविधा होती है। जापान में पिछले साल इस बात पर भी काफी बवाल हुआ था कि कंपनियां महिला कर्मचारियों के चश्मा पहनने पर दिक्कत करती हैं। उन्हें कहती हैं कि कॉन्टैक्ट लेंस लगाएं। तब ट्विटर पर हैशटैग ग्लासेज आर फोरबिडेन खूब ट्रैंड हुआ था-एक यूजर ने बताया था कि रेस्त्रां की अपनी नौकरी में उसे बार-बार कहा जाता है कि अपने चश्मे न लगाए-क्योंकि चश्मे लगाने से वह भद्दी लगती है और यह उसके किमोनो से मैच नहीं करता। यूं औरतों के कपड़ों, लुक्स को लेकर हर समाज में नियम बनाने वाले पुरुष ही हैं। इन नियमों को बनाने वालों का भी एक माइंडसेट होता है। यह किसी देश विशेष या समाज विशेष की बपौती नहीं है। यह माइंडसेट किसी का भी हो सकता है।
आखिर, नियम बनाने वाले भी इसी समाज का हिस्सा हैं। उनमें भी तरह-तरह के पूर्वाग्रह हो सकते हैं। उस माइंडसेट को खत्म करना आसान नहीं होता। यही वजह है कि जापान के स्वास्थ्य मंत्री ताकुमी नेमोतो तक वर्कप्लेस पर ड्रेस कोड की वकालत करते हैं क्योंकि उनके अनुसार, यह जरूरी और उपयुक्त है और समाज द्वारा व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त। पर समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हर चीज को यूं ही चलने दिया जाएगा तो कुछ भी, कभी भी नहीं बदलेगा। इस माइंडसेट वाले हर जगह हैं। विज्ञापनों की पूरी चकाचौंध इसी सोच पर फली-फूली है। फलां क्रीम लगाओ तो आप सुंदर बन जाएंगी। ऐसे एड कहीं यह स्थापित नहीं करते कि समाज को किसी के लुक्स की परवाह किए बिना उसे स्वीकार करना चाहिए। लुक्स इतने मायने क्यों रखते हैं। लेकिन यह स्थापित हो जाएगा तो कॉस्मैटिक्स का इंटरनेशनल मार्केट धड़ाम से गिर जाएगा। बाजार कमाई करता रहे, इसके लिए अगर औरतें सूली पर चढ़ती रहें तो क्या बुरा है।

माशा


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