बतंगड़ बेतुक : सरकार को गरियाइए कोरोना भगाइए

Last Updated 29 Mar 2020 12:57:36 AM IST

झल्लन बोला, ‘ददाजू, इस कोरोना ने अच्छा आतंक मचाया है, ये कब तक का वीजा लेकर आया है।’ झल्लन की बात कुत्ते की लात, हमने कहा, ‘तुझे क्या लगता है कोरोना कोई विदेशी पर्यटक है जो वैध वीजा लेकर आया है, ये घुसपैठिया है जो भारत में बाहर से जबर्दस्ती घुस आया है।’


बतंगड़ बेतुक : सरकार को गरियाइए कोरोना भगाइए

झल्लन बोला, ‘ददाजू, कोरोना को घुसपैठिया मत बताइए नहीं तो मामला राजनीतिक हो जाएगा और इसकी नागरिकता का सवाल खड़ा हो जाएगा। एक तरफ सरकार कहेगी कि यह घुसपैठिया है इसे हम यहां रहने नहीं देंगे, तो दूसरी तरफ विपक्ष तुरंत कहेगा कि यह सदियों से यहीं का बाशिंदा है, यहीं पला-बढ़ा है, यहीं परवान चढ़ा है इसलिए इसे बाहर जाने नहीं देंगे। फिर होगा यह कि जो लोग इसके विरोध में उतरेंगे तो उन लोगों के विरोध में भी कुछ लोग सड़कों पर उतर आएंगे और देशभर में धरना-प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे और देखते ही देखते बहुत से शाहीन बाग उग आएंगे।’ हमने कहा, ‘तू पागल है झल्लन जो कोरोना जैसी महामारी को राजनीति से जोड़ रहा है और इसमें भी धरना-प्रदर्शन के गुब्बारे फोड़ रहा है। देख, इस समय सारा देश साथ खड़ा है, लॉकडाउन कर इस घुसपैठिए को बाहर निकालने पर अड़ा है। रही शाहीन बाग की बात तो उनने धरना उठा लिया है, तू उनकी बात क्यों उठा रहा है, सोया हुआ प्रेत क्यों जगा रहा है।’

झल्लन बोला, ‘ददाजू, कभी-कभी हमें आपकी समझ पर शक होता है कि आप सचमुच नहीं समझ पाते हैं या समझ कर भी हमें टहलाते हैं। क्या आपको सचमुच लगता है कि शाहीन बाग वालों ने कोरोना की वजह से धरना उठाया था, जबकि सच तो यह है कि पुलिस ने उन्हें लथेड़ करके भगाया था। आप कह रहे हैं कि सोया हुआ प्रेत न जगाएं और हम कह रहे हैं कि प्रेत सोया ही कब है, जो उसे उठाएं। और ददाजू, आपको यह लगता है तो गलत लगता है कि कोरोना वायरस देश को एक कर देगा और लोगों ने अपने बीच जो गहरी-गहरी खाइयां खोद रखी हैं उन्हें भर देगा। वो तो कोरोना का डर दिखाकर सरकार ने लोगों को घरों में घुसा दिया है, इसका मतलब यह नहीं है कि उनके भीतर के जड़ विरोध के वायरस को भी मिटा दिया है। देख लेना धरनाधारियों को जैसे ही मौका हाथ लगेगा वे फिर से बाहर निकल पड़ेंगे, कोरोना का कुछ कर सकें या न कर सकें पर सरकार की थुक्का-फजीहत करने पर जरूर पिल पड़ेंगे।’
हमने कहा, ‘भई, यह तो लोगों की फितरत है इतनी जल्दी नहीं बदल पाएगी, कोरोना के डर से नये सांचे में नहीं ढल पाएगी। सबसे ज्यादा मूर्ख तो धर्म-मजहब वाले हैं जिनके भीतर मूर्खता के वायरस अब भी घुल रहे हैं, कोरोना जैसी आपदा के आगे भी इनके दिमागों के ढक्कन नहीं खुल रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘अब आये लाइन पै, यही बात तो हम कह रहे हैं और आप हैं कि इधर-उधर बह रहे हैं। हम चाहते हैं ये सब लोग मिलकर ईश्वर-अल्लाह से प्रार्थना करें, दुआ करें कि उन्हें समझदारी दे, सुरक्षा निर्देशों के पालन की तैयारी दे और महामारी की भयावहता को महसूस करने की संवेदना दे, नमाज-आरती छोड़ समस्या से लड़ने की चेतना दे।’
हमने कहा, ‘इस मामले में हम तो सिर्फ दुआ ही कर सकते हैं कि तेरी दुआ कुबूल हो, प्रार्थना स्वीकार हो, लोग सुरक्षित हों और इस महामारी के तूफान में उनका बेड़ा पार हो। यह दुआ भी कर रहे हैं कि लॉक डाउन सफल हो और कोरोना का कहर विफल हो, लोग गंदी राजनीति छोड़ अपने मतभेद भुलाकर क्षुद्र स्वाथरे से ऊपर उठें और कोरोना को हराने के लिए एक साथ जुटें। लोग सरकार की गलतियां गिनाने के चक्कर में न पड़ें और जो काम सरकार नहीं कर पा रही है वह अपने बल पर स्वयं करें। राजनीतिक दल सरकार को लेकर मातम न मनाएं बल्कि अपने-अपने कार्यकर्ताओं को जरूरतमंद लोगों की मदद करने में लगाएं।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप फिर खिसक गए, फिर बहक गए।  कुत्ते की दुम सीधी हो सकती है नेताओं की नहीं। ये खाना छोड़ सकते हैं पर निंदा नहीं, निंदा नहीं करेंगे तो इन्हें लगेगा कि ये जिंदा नहीं। अब देखिए, कोई कह रहा है कि सरकार को बहुत पहले चेत जाना चाहिए था, जो लॉकडाउन अब हुआ है वह पहले हो जाना चाहिए था। हमारे पप्पू ने चेतावनी दी थी पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया, पप्पू जैसे विद्वान के प्रवचन को कान नहीं दिया। अब देखिए, सरकार ने क्या किया है, समूचे देश को महामारी में धकेल दिया है।
पप्पू पार्टी का कोई चतुर यह भी कह रहा है कि नई संसद का पैसा कोरोना में लगा देना चाहिए और हर गरीब के घर में पैसों का पेड़ उगा देना चाहिए। इन्हें लगता है कि इस आपातकाल में ये चुप रह जाएंगे तो इनके पेट फूल जाएंगे, और दिमाग फट जाएंगे।’ हमने कहा, ‘तू सही कह रहा है झल्लन, इन कूड़मगज निंदकों की कर्महीन जुबान जितनी कड़वी हो रही है सरकार की निरंकुशता उतनी ही तगड़ी हो रही है। काश! हम कुछ कर पाते और इन्हें भी कुछ समझा पाते।’ झल्लन बोला, ‘बस ददाजू, हो गई नमाज मुसल्ला उठाइए, हम इधर लॉक डाउन होते हैं आप उधर लॉक डाउन हो जाइए।’

विभांशु दिव्याल


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