कोरोना : मांसाहार से करें तौबा

Last Updated 16 Mar 2020 12:10:12 AM IST

जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग, भगवद्गीता और वैदिक संस्कृति का प्रचार पूरे दमखम के साथ अंतरराष्ट्रीय पटल पर किया है, तब से दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्ष और नागरिक भारत की सनातन संस्कृति के प्रति पहले से अधिक उत्सुकता और सम्मान व्यक्त करने लगे हैं।


कोरोना : मांसाहार से करें तौबा

मोदी न केवल नवरात्रि का व्रत रखते हैं, बल्कि सरकारी भोज में मांस नहीं परोसने देते।
आज विभर में ‘कोरोना वायरस’ का आतंक है। अभी इसकी भयावहता का पूरा अनुमान नहीं है। भगवान करे कि ये आपात स्थिति नियंत्रण में आ जाए। नहीं आई तो विश्व में लाखों लोगों को लील जाएगी। इस संदर्भ में दो महत्त्वपूणर्ं बातें सामने आई हैं। एक, अभिवादन के लिए हाथ मिलाना खतरे से खाली नहीं माना जा रहा। दूसरा, इस वायरस का स्रोत मांसाहार है। इसलिए दुनियाभर में बहुत बड़ी तादाद में लोगों ने फिलहाल मांसाहार का परित्याग कर दिया है। मोदी ने विश्व समुदाय से अपील की है कि अभिवादन में भारतीय परंपरा के अनुसार ‘नमस्ते’ को अपना ले। यह सुरक्षित और विनम्र तरीका है। इस्रइल के राष्ट्रपति और इंग्लैंड के प्रिंस चाल्र्स ने ‘नमस्ते’ को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही मोदी को चाहिए कि दुनियाभर से मांसाहार छोड़ने की अपील भी करें। मानव शरीर शाकाहार के लिए बना है मांसाहार के लिए नहीं। यह बात हम अपनी तुलना शाकाहारी और मांसाहारी पशुओं से करने पर समझ सकते हैं।

मांसाहारी पशुओं को कुदरत ने दोनों जबड़ों में तेज नुकीले कीलनुमा दांत और खतरनाक पंजे दिए हैं, जिनसे ये शिकार करके उसमें से मांस नोच कर खा सकें पर गाय और बंदर की ही तरह मानव को कुदरत ने ऐसे दांतों और पंजों से वंचित रखा है, क्यों? मांसाहारी पशु जैसे कुत्ता जीभ से पसीना टपकाता है। इसलिए हांफता रहता है।
शाकाहारी पशुओं और मानव के बदन से पसीना टपकता है। मांसाहारी पशुओं की आंतें काफी छोटी होती हैं ताकि मांस जल्दी ही पाखाने के रास्ते बाहर निकल जाए जबकि शाकाहारी जानवरों और मानव की आंतें अनुपात में तीन गुनी बड़ी और ज्यादा घुमावदार होती हैं ताकि अन्न, फल, सब्जियों का रस अच्छी तरह सोख लें। आप मांसाहारी हैं तो आपने नोट किया होगा कि रेफ्रिजरेटर के निचले खाने में इतनी ठंडक होने के बावजूद मांस कुछ ही घंटों में सड़ने लगता है। फिर मानव शरीर की गर्मी में मांस के आंत में अटक-अटक चलने में इसकी क्या गति होती होगी, कभी सोचा आपने? वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मांसाहारी पशुओं के आमाशय में जो तेजाब रिसता है वह शाकाहारी पशुओं और मानव के आमाशय में रिसने वाले तेजाब से बीस गुना ज्यादा तीखा होता है, ताकि मांस जल्दी गला सके। ऐसे तेजाब के अभाव में हमारे आमाशय में पड़े मांस की क्या हालत होती होगी? भारत जैसे देश में बहुसंख्यक आबादी किसी-न-किसी रोग से ग्रस्त है। फिर आप तो जानते हैं कि भारत में कितना भ्रष्टाचार है। जिन भी इंस्पेक्टरों की डय़ूटी कसाईखानों में लगी होती है उनसे क्या आप राजा हरिशचन्द्र होने की उम्मीद कर सकते हैं? या वक्त के साथ-साथ चलने वाला होशियार आदमी। मतलब यह हुआ कि जो हाकिम यह देखने के लिए तैनात किए जाते हैं कि भयानक बीमारियों से घिरे हुए या घायल या गंदे पशु मांस के लिए न काटे जाएं, लेकिन वो निरीक्षक ही अगर आंख बंद किए हुए हों तो आपकी क्या हालत होने जा रही है, आपको क्या पता?
अक्सर तर्क दिया जाता रहा है कि लोग मांसाहार नहीं करेंगे तो दुनिया में खाने की कमी पड़ जाएगी। पर क्या कभी सोचा आपने कि ह्वेल मछली, हाथी, ऊंट और जिराफ जैसे बड़े कई जानवर हैं? सब जानते हैं कि ये जानवर भले ही बड़े हैं, लेकिन कभी भूखे पेट नहीं सोते। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल ने यह छापा था कि अमेरिका में दिल के दौरों से ग्रस्त होने वालों में 97 फीसद मांसाहारी हैं यानी शाकाहारी लोगों को दिल की बीमारी होने की आशंका काफी कम होती है। एक और मशहूर वैज्ञानिक शेलो रसेल ने 25 देशों के अध्ययन के बाद बताया कि इनमें से 19 देशों में कैंसर की मात्रा बहुत ज्यादा थी। यह सभी देश वो हैं जिनमें मांसाहार का प्रतिशत काफी ऊंचा है। एक भ्रांति है कि मांसाहार से ज्यादा ताकत मिलती है। हकीकत यह है कि मांस आधारित भोजन को पचाने में शरीर की बहुत ऊर्जा बेकार चली जाती है। अब आते हैं शुद्ध विज्ञान पर। विज्ञान में एक सिद्धांत है कि हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ‘एवरी एक्शन हैज इक्वल एंड अपोजिट रिएक्शन’। याद रखिए ‘एक्शन’ यानी हर क्रिया की, तो पशु वध करने की भी समान और विपरीत प्रतिक्रिया होगी। सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जीव हत्या करने वाले को अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है। शिकागो दुनिया का सबसे बड़ा मांस की कटाई और बिक्री वाला शहर है और दुनिया में सबसे ज्यादा मानव हत्याएं, चाकूबाजी और बलात्कार की वारदात भी वहीं होती हैं।
भगवान् श्रीष्ण गीता का उपदेश देते हुए अजरुन से कहते हैं-
पत्रम पुष्पम फलम तोयम यो में भक्त्या प्रयच्छति। तदहम भक्त्युपह्तमश्रामि प्रयतातमन:।।
9वें अध्याय के इस 26वें लोक में भगवान् अपने शुद्ध भक्त और सखा अर्जुन से यह कहते हैं कि यदि कोई प्रेम तथा भक्ति से मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं। याद रखिए भगवान अन्न, फल ही स्वीकार करते हैं पर आपको ऐसे तमाम लोग मिलेंगे जो कृष्ण, महावीर की अराधना का दावा करेंगे और जम कर मांसाहार करेंगे। यह जानते हुए भी कि हिंदू शास्त्रों में इसके भयंकर परिणाम बताए गए हैं।
ईसाई-धर्म की पवित्र-पुस्तक बाइबिल में ईसा मसीह जीवों पर करुणा करने का आदेश देते हैं और मांसाहार को मना करते हैं। हर धर्म में दूसरे को कष्ट पहुंचाना पाप कर्म बताया गया है। फिर मांस का उत्पादन कितना महंगा है, उसका एक उदाहरण है कि एक किलो मांस बनकर तैयार होने में कुदरत का पचास हजार लीटर पानी खर्च होता है और एक किलो गेहूं कुल आठ लीटर पानी में ही उपज जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु श्री नानक देव कहते हैं कि यदि किसी घायल लाश के खून का छींटा तुम्हारे कपड़ों पर पड़ जाता है तो तुम कपड़ा बदल लेते हो पर जब लाश को अपने शरीर के अंदर ले जाते हो तो तुम्हारा शरीर कितना गंदा हो जाता है, कभी सोचा सिंह साहब?

विनीत नारायण


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