वैश्विकी : ‘खिलाफत’ में अटके एर्दोगन

Last Updated 16 Feb 2020 01:16:08 AM IST

कश्मीर मुद्दे पर अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को तुर्की के रूप में एक ढाढ़स बंधाने वाला मित्र देश मिल गया है।


वैश्विकी : ‘खिलाफत’ में अटके एर्दोगन

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान वह सभी बातें कही जो इमरान खान और पाकिस्तानी अवाम को खुश करने वाली थीं। उन्होंने पाकिस्तान की संसद में जो संबोधन दिया, वह केवल कश्मीर मामले में पाकिस्तान को समर्थन देने तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने पैन-इस्लामाबाद की विचारधारा और आंदोलन का भी जिक्र किया, जिसके आधार  पर भारत का विभाजन हुआ था। पाकिस्तान का जन्म हआ था। उनका संबोधन तुर्की और यूरोपीय देशों के बीच प्रथम विश्व युद्ध में हुए संघर्ष के साथ ही भारत में मुस्लिम आक्रमण और आधिपत्य से भी जुड़ा था। एर्दोगन की यह सोच भारत के लिए विशेष चिंता का विषय है।
तुर्की के राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को भारत की ओर से उठाया गया एकतरफा कदम बताया। कश्मीर में कथित मानवाधिकार के उल्लंघन की दुहाई देते हुए वहां के बहनों और भाइयों के प्रति हमदर्दी भी जताई। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने कश्मीर की तुलना प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गैलीपोली में हुए सैन्य संघर्ष से की। विश्व युद्ध के प्रारंभिक दौर में गैलीपोली में यूरोपीय देशों की मित्र सेनाओं को तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की सेनाओं ने शिकस्त दी थी। इस युद्ध में तुर्की के समर्थन में भारतीय उपमहाद्वीप में खिलाफत आंदोलन चला था, जिसके साथ कांग्रेस पार्टी भी जुड़ गई थी। एर्दोगन ने इसकी चर्चा करते हुए भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों द्वारा तुर्की को दिए गए समर्थन के प्रति आभार व्यक्त किया। प्रकारांतर से उन्होंने पाकिस्तान को भरोसा दिलाया कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों ने जिस तरह खिलाफत आंदोलन के जरिए तुर्की को समर्थन दिया था, वैसा ही समर्थन तुर्की भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को देगा। एर्दोगन और इमरान के संयुक्त वक्तव्य में भी कश्मीर मुद्दे को उछाला गया।

भारत ने एर्दोगन के संबोधन और संयुक्त वक्तव्य में कश्मीर के उल्लेख पर तुर्की को आगाह किया है कि वह भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने से बाज आए। प्रवक्ता ने एर्दोगन को सलाह दी कि वह कश्मीर की हकीकत जान लें।
एर्दोगन ने अपने संबोधन में मध्यकालीन इतिहास का भी उल्लेख किया। उन्होंने मशहूर गजनवी और बाबर द्वारा भारत पर आधिपत्य हासिल करने को भी एक उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया। उनके अनुसार तुर्की की पृष्ठभूमि वाले इन बादशाहों की जीत और शासन भारतीय उपमहाद्वीप के साथ तुर्की के ऐतिहासिक संबंधों की निशानदेही कराता है। कह सकते हैं कि एर्दोगन का संबोधन ऑटोमन साम्राज्य की स्मृतियों को ताजा करता है, और साथ ही उनकी इस महत्त्वाकांक्षा को भी प्रकट करता है कि वह इस्लामी देशों के नेता के रूप में उभरें। वह सऊदी अरब के स्थान पर तुर्की के इस्लामी देशों के नेता के रूप में उभरने का सपना देख रहे हैं। अपनी इस कवायद में वह पाकिस्तान को अपना सहयोगी देश मानते हैं। पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति है, और सैन्य दृष्टि से भी ताकतवर है। तुर्की ने आतंकवाद को धन मुहैया कराने से रोकने वाली एफएटीएफ में पाकिस्तान को समर्थन देने का आश्वासन दिया, जिसकी बैठक शीघ्र ही पेरिस में होने वाली है, जिसमें पाकिस्तान पर फैसला होना है। पाक एफटीएएफ की चेतावनी सूची में है, और उसके काली सूची में डाले जाने की तलवार लटकी हुई है।
कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को केवल तुर्की और मलयेशिया से ही समर्थन मिल रहा है। ये तीनों देश इस्लामी आतंकवाद के खतरे को नजरअंदाज कर रहे  हैं तथा अन्य देशों पर अंध-इस्लाम विरोध फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। जहां तक भारत का सवाल  है, उसने अपनी सक्रिय कूटनीति के जरिए कश्मीर मुद्दे पर विश्व बिरादरी को काफी हद तक आश्वस्त किया है। हाल में यूरोपीय संघ  के राजदूतों ने अपनी जम्मू-कश्मीर यात्रा के बाद कहा था कि भारत सरकार ने वहां सामान्य स्थिति कायम करने के लिए सकरात्मक कदम उठाए हैं। कश्मीर के सामान्य हो रहे हालात से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में माहौल बना है। तुर्की और मलयेशिया जैसे देशों के पल्राप को भारत आसानी से नजरअंदाज कर सकता है।

डॉ. दिलीप चौबे


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