बतंगड़ बेतुक : हम हँस सकते थे, सो हँस दिये

Last Updated 16 Feb 2020 01:13:22 AM IST

‘‘लुटिया तौ लुढ़क गयी, ददाजू।’’ झल्लन ने खैनी भरी हथेली पर आखिरी ताल का तड़का लगा दिया और हाथ हमारी ओर बढ़ा दिया।


बतंगड़ बेतुक : हम हँस सकते थे, सो हँस दिये

हमने चुटकी भर खैनी उठायी, ओठों के बीच दबाई और हँसते हुए मजाक किया,‘‘किसकी लुटिया लुढ़का आया, अगर लुटिया लुढ़क गयी थी तो सीधा कर देता, शीरा बिखर गया था तो समेट कर भर देता।’’झल्लन बोला, ‘‘ददाजू, इस लुढ़की लुटिया को सीधा करने का मौका अब पांच साल बाद मिलेगा और बिखरा हुआ शीरा सिमटेगा या नहीं सिमटेगा इस पर भी घना संदेह रहेगा।’’
तो झल्लन दिल्ली के चुनावों की बात कर रहा था, वहां भाजपा की लुटिया पूरी तरह डूब गयी थी मगर वह इसे लुढ़कना कह रहा था।  हमने कहा ‘‘देख झल्लन भाजपा ने अपनी लुटिया खुाद डुबोयी है, अपने गुब्बारे में पिन खुद चुभोयी है।’’ वह बोला, ‘‘क्या बात करो ददाजू, भाजपा ने तो अपनी घुड़शाला के सारे घोड़े खोल दिये, जो कहना था वह भी कहा, जो नहीं कहना था वह भी बोल दिये। पर जनता कान नहीं धरे तो इसमें बिचारी भाजपा क्या करे?’’ हमने कहा,‘देख झल्लन, चुनाव में जुबान के घोड़ों पर थोड़ी लगाम लगाई जाती है, कुछ तो शालीनता दिखाई जाती है, अपनी बात गोली-गाली से नहीं प्यार से समझाई जाती है।’’ झल्लन बोला,‘‘मगर ददाजू कोई देशद्रोहियों को गोली न मारे तो किसे मारे, पर कुछ लोग खुद को देशद्रोही ही मान लिए और बिना चली गोली के आगे खुाद ही सीने तान लिए। जनता जब देश भक्तों और देशद्रोहियों में फर्क नहीं कर पाये तो बिचारी भाजपा मर जाये?’’हमने कहा,‘‘क्या पता भाजपा कहां गोली चलाना चाहती थी, पर बोली की गोली खुद उसे लग गई, उसकी जलती बत्ती भक से बुझ गयी।’’

झल्लन ने अपने कंधे उचका कर पीक थूक कर गाल थोड़े पिचकाए और बोला,‘‘ददाजू आप को नहीं लगता कि बत्ती बुझी नहीं बुझाई गयी है, भाजपा हारी नहीं हरायी गयी है?’’ हमने कहा,‘‘चुनाव जीतने और हराने के लिए होते हैं, हारने और जिताने के लिए नहीं। जो भाजपा को हराना चाहते थे उन्होंने भाजपा को हरा दिया,वे चुनाव जीते तो जीतकर क्या बुरा किया?’’ झल्लन बोला,‘‘ददाजू, चिंता यह नहीं है भाजपा चुनाव हार गयी, चिंता यह है कि राष्ट्रभक्ति हार गयी, राष्ट्रवाद हार गया। भाजपा शाहीन बाग को तौहीन बाग मान रही थी, राष्ट्रविरोधियों का अड्डा मान रही थी, राष्ट्रवाद की राह का सबसे बढ़ा गड्ढा मान रही थी, इसके आने वाले खतरों के प्रति आगाह कर रही थी और अपनी यही बात वह जनता तक ले जा रही थी। मगर जनता तो जनता है, उसे राष्ट्र की नहीं सिर्फ  अपनी चिंता है।’’
हमने कहा, ‘‘देख झल्लन, दिल्ली के चुनाव राष्ट्र के नहीं दिल्ली के चुनाव थे, यहां दिल्ली की जनता के अपने मुद्दे थे, उसने यहां पर मोदी और राष्ट्र के नाम पर वोट नहीं दिया, वोट दिया तो केजरी के काम पर दिया। बिजली-पानी के लिए दिया, स्कूल-अस्पताल के लिए दिया। जनता को अगर कुछ चाहिए तो अपने हित का काम चाहिए, न उसे राष्ट्र चाहिए न राम चाहिए।’’ झल्लन बोला,‘‘यही बात तो कष्ट दे गयी है, जनता की विवेक-बुद्धि नष्ट हो गयी है, वह पूरी तरह भ्रष्ट हो गई है। बिजली-पानी के लालच में वह राष्ट्र की राह से भटक गयी, केजरी ने चंद पैसों का फायदा पहुंचाने का जाल क्या बिछाया, उसी में अटक गयी। वह जनता क्या जो अपने क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर न उठ सके, राष्ट्रहित में थोड़ा त्याग न कर सके।’’ हमने कहा,‘‘देख झल्लन, राष्ट्रहित जनता के हित से भिन्न नहीं होता, जनता का हित राष्ट्रहित से छिन्न नहीं होता। अगर बीजेपी राष्ट्रहित को जनता के हित से ऊपर रखेगी, दूसरों की न सुनकर सिर्फ अपनी ही कहेगी तो उसने जो दिल्ली में भुगता है, वह देश में भी भुगतेगी।’’ झल्लन झल्लाया,‘‘तो आप चाहते हैं कि बीजेपी को अपने राष्ट्रीय डर-भय बताने ही नहीं चाहिए, राष्ट्रीय हित, सुरक्षा के मुद्दे उठाने ही नहीं चाहिए?’’ हमने कहा,‘‘हम कब कह रहे हैं कि बीजेपी को राष्ट्रीय हित-सुरक्षा के मुद्दे नहीं उठाने चाहिए या अपने डर-भय जनता को नहीं बताने चाहिए। हम तो इतना चाहते हैं कि जो लोग जनता को ठोस लाभ पहुंचा रहे हैं। बीजेपी उन्हें शत्रु न मान कर उनका सम्मान करे, उनके काम में अपने काम की पहचान करे। बीजेपी बड़ी पार्टी है, उसे बड़प्पन दिखाना चाहिए और कोई नेता या पार्टी भले ही विरोधी हों, मगर अच्छा काम कर रहे हैं तो उन्हें राष्ट्रहित में गले लगाना चाहिए। कुछ उनसे सीखना चाहिए तो कुछ उन्हें सिखाना चाहिए।’’
झल्लन बोला,‘‘का ददाजू, आप फिर रौ में बह रहे हैं, आपको पता भी है आप क्या कह रहे हैं? अगर नेता और पार्टयिां दूसरों के अच्छे काम को सराहने लगे, उन्हें गले लगाने लगे तो देश की तो राजनीति पलट-उलट जाएगी, बड़ों-बड़ों की लुटिया लुढ़क जाएगी। नेता लोग जब तक एक दूसरे के खोट नहीं गिनाएंगे, एक दूसरे को चोट नहीं पहुंचाएंगे बात-बात पर एक दूसरे को नहीं गरियाएंगे, तो अपना खाना कैसे पचाएंगे? और सबसे बड़ी बात, मीडिया वाले अपनी दुकान कैसे चलाएंगे?’’ हमने झल्लन के शब्द सुन लिए, सिर्फ  हँस सकते थे, सो हँस दिये।

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment