मीडिया : केजरी का सेक्युलरिज्म

Last Updated 16 Feb 2020 01:20:43 AM IST

हमारा मीडिया चाहे तो ‘हेट स्पीच’ और ‘कटुक्तियां’ कहने वालों को क्षण में ‘हतोत्साहित’ कर सकता है बशर्ते मीडिया ऐसा करना चाहे।


मीडिया : केजरी का सेक्युलरिज्म

लेकिन वह स्वयं हेट और विवाद खोजने का आदी है। किसी दिन कोई ‘हेट स्पीच’ नहीं है तो कैमरा लगाओ और कहलवाओ। ‘हेट एक्सपटरे’ के लिए कैमरा सबसे बड़ा उत्तेजक है। हेट न मिले तो विवाद का मुददा ही सही। अपने मीडिया का बड़ा हिस्सा ऐसा ही ‘भड़काऊ मीडिया’ बन चला है। उदाहरण के लिए जैसे ही दिल्ली में ‘हेट स्पीचें’ हारीं और केजरी वाली ‘विकास’ की लाइन जीती तो भी एंकरों को चैन न हुआ। वे फिर विवाद के बहाने खोजते रहे और अंत में केजरी का ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ उनके हाथ लग गया।
चुनाव अभियान के दौरान आप पार्टी के चीफ केजरीवाल से एक पत्रकार ने अचानक उनके ‘हनुमान भक्त’ होने के बारे में सवाल कर दिया। केजरी  ठहरे पुराने हनुमान भक्त। सवाल करने वाले मीडिया से वे अपने भक्तिभाव को क्यों छिपाते? सो, सवाल के जवाब में सहज भाव से बताने लगे कि मैं हनुमान भक्त हूं और मुझे हनुमान चालीसा पूरा याद है। फिर इसका प्रमाण देते हुए उन्होंने हनुमान चालीसा का आरंभिक दोहा भी सुना दिया।

कई सेक्युलर एंकरों को केजरी का ‘हनुमान चालीसा’ पढ़ना ‘कम्यूनल’ हरकत से कम नजर न आया। फिर कोढ़ में खाज यह हुई कि जीत के बाद केजरीवाल ने पार्टी कार्यालय में कार्यकताओं से ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे तक लगवा दिए। केजरीवाल का ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ और ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे, सब मिलकर हमारे सेक्युलर एंकरों, पत्रकारों  व सोशल मीडिया के स्वयंभू क्रांतिकारियों को एकदम ‘नॉन सेक्युलर’ और बेहद नागवार हरकत महसूस हुई और उन्होंने केजरी को कूटना शुरू कर दिया। एक खबर एंकर ने अपनी सीधी आपत्ति जताई कि केजरी को ‘हनुमान चालीसा’ बांचने की क्या जरूरत थी? यही नहीं अपने कायकर्ताओं से ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगवाने की क्या जरूरत थी?
कई चर्चकों ने इसे केजरीवाल का ‘नरम हिंदुत्व’ की ओर झुकना कहा। कुछ ने तो केजरीवाल को ‘छोटा मोदी’ तक कह दिया कि जिस तरह बड़े मोदी पहले ‘भारत माता की जय’ बोला-बुलवाया करते हैं, उसी तरह केजरीवाल ने भी ‘भारत माता की जय’ बुलवाई और इस तरह ‘नरम हिंदुत्व’ का कार्ड सफलतापूर्वक खेला। कट्टर सेक्युलरिस्टों को केजरी का ‘हनुमान चालीसा’ तो पसंद आना ही नहीं था, उनको ‘भारत माता की जय’ तथा ‘वंदे मातरम्’ भी पंसद नहीं आना था क्योंकि उनके अनुसार इन पर सिर्फ भाजपा का ही ‘कॉपीराइट’ है। उनकी नजर में उनको कहते ही आदमी ‘भाजपाछाप’ या ‘संघी’ हो जाता है। इस ‘अपराध’ के लिए उनमें से कइयों ने  केजरी में एक नरम किस्म के हिंदुत्ववादी के दर्शन भी करने शुरू कर दिए। जिस तरह ‘परम सेक्युलरों’ की नजर में ‘हनुमान चालीसा’ या ‘भारत माता’ सिर्फ भाजपा के हैं, उसी तरह, भाजपा के एक वक्ता ने कहा कि चुनाव में सीटों में भाजपा भले हारी हो। लेकिन विचारधारा तो भाजपा की ही जीती है। आशय यह कि चूंकि केजरीवाल ने ‘हनुमान चालीसा’ पढ़ा और ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ बुलवाया, इसलिए केजरीवाल प्रकारांतर से भाजपा की विचारधारा को बढ़ाने वाले हुए।
अपने यहां बहुत से सेक्युलर लोग इसी प्रकार से सोचते हैं। किसी ने किसी को ‘राम राम जी’ की कह दिया या किसी ने आश्चर्य से ‘हे राम जी’ कह दिया, किसी ने ‘राधे राधे’ कह दिया या किसी ने ‘शिव शिव’कह दिया तो बहुत से सेक्युलर दिमाग ऐसा कहने वाले को तुरंत संघी घोषित कर देते हैं। उनकी नजर से धर्म को घृणा करके ही कोई ‘सेक्युलर’ हो सकता है जबकि सच यह है कि हिंदू धर्म ग्रंथों में आस्था रखने वाला व्यक्ति भी ‘सेक्युलर’ हो सकता है। इसका अर्थ है कि ‘सेक्युलर’ भी कई प्रकार के हो सकते हैं, और अपने धर्म ग्रंथों में देवी-देवताओं को मानने वाला भी सेक्युलर हो सकता है। शर्त इतनी ही है कि वह अपने देवी-देवताओं को मानते हुए दूसरे के धर्म के प्रतीकों से हेट न करे। गांधी जी तो पूरे कर्मकांडी वैष्णव थे, तब भी वे आज के सेक्युलरों से भी अधिक सेक्युलर थे। केजरीवाल भी ऐसे ही लगते हैं। भले ही गांधी नहीं हैं। केजरी को देख लगता है कि एक ‘हनुमान भक्त’ सेक्युलर’ हो सकता है।
ये नये किस्म का सेक्युलरिज्म है, जिससे हिंदुत्ववादी डरते हैं।

सुधीश पचौरी


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