वैश्विकी : एक दूजे के सहारे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस महीने के अंत में होने वाली भारत यात्रा एक विशेष माहौल में हो रही है। ट्रंप जहां अमेरिकी कांग्रेस में महाभियोग की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर विरोध आंदोलन से जूझ रहे हैं।
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जिस दौरान ट्रंप भारत की यात्रा पर होंगे उस समय तक विरोध आंदोलन मद्धिम पड़ेगा, इस बात की संभावना कम है। यह भी हो सकता है कि आंदोलनकारी अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकषिर्त करने के लिए आंदोलन को तेज कर दें।
प्रधानमंत्री मोदी पिछले वर्ष अमेरिका के ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी’ के भारतीय संस्करण को पेश करने की कोशिश में हैं। रिपोटरे के अनुसार, अहमदाबाद के स्टेडियम में ‘हाउडी ट्रंप’ जैसा आयोजन होगा जिसमें दोनों नेता करीब एक लाख लोगों को संबोधित करेंगे। व्यक्तिगत स्तर पर इस स्वागत आयोजन से विदेश नीति के संदर्भ में कितनी सहायता मिलेगी, यह कहना मुश्किल है। हाउडी मोदी का अनुभव बताता है कि राष्ट्रपति ट्रंप भले ही मोदी और उनकी नीतियों के प्रशंसक हों, अमेरिका का सत्ता प्रतिष्ठान मोदी सरकार के फैसलों का घोर विरोधी है। अमेरिकी थिंक टैंक, बुद्धिजीवी वर्ग और नागर समाज पिछले कई महीनों से मोदी सरकार पर टीका-टिप्पणी कर रहे हैं। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून के संबंध में भले ही ट्रंप प्रशासन ने मौन समर्थन दिया हो, लेकिन अमेरिकी संसद और अन्य संस्थाओं ने इन फैसलों की आलोचना की है। अन्य पश्चिमी देशों में भी इसका अनुकरण हुआ है। अंतरराष्ट्रीय आलोचना से घरेलू मोच्रे के विरोध को भी हवा मिली है।
अभी हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पश्चिम एशिया के संबंध में अपनी योजना पेश की है, जिसमें फिलिस्तीनी हितों की कीमत पर इस्रइल की तरफदारी की गई है। ट्रंप ने इस्रइल को एक यहूदी राष्ट्र मानते हुए पश्चिमी किनारे के फिलिस्तीनी क्षेत्र पर इस्रइल की संप्रभुता को मान्यता दी है। साथ ही, यरुशलम को इस्रइल की राजधानी माना है। आलोचक मोदी सरकार के फैसले को ट्रंप के फैसलों के प्रतिबिंब के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि मोदी सरकार भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने पर आमादा है तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ वैसा सुलूक किया जा रहा है जैसा इस्रइल फिलिस्तीनियों के संबंध में करता है।
जहां तक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सवाल है, वह अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव वर्ष में भारत से व्यापार संबंधी रियायत हासिल करने की पूरी कोशिश करेंगे। ‘सबसे पहले अमेरिका’ की अपनी नीति के तहत वह भारत से ऐसा व्यापार समझौता करने के प्रयास में हैं,जिससे अमेरिका में घरेलू व्यापार हितों की रक्षा हो तथा रोजगार सृजन भी हो सके। भारत और चीन के संबंध में अपनी इन्हीं उपलब्धियों को मतदाताओं के सामने पेश कर फिर चुनाव जीतने की कोशिश करेंगे। भारत और अमेरिका दोनों ने लिए सुरक्षा और आर्थिक मामले महत्त्वपूर्ण हैं, और ये रिश्ते बने हुए हैं। दोनों देश ट्रंप की संभावित भारत यात्रा को अवसर में बदलना चाहेंगे। भारत अमेरिका के साथ सीमित व्यापार समझौता करना चाहता है। इससे द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में आई गिरावट दूर होगी और दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते का रास्ता साफ होगा। यह इसलिए भी संभव है कि भारत और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बीच बहुत से पूरक तत्व हैं, जो एक दूसरे के लिए सहायक हो सकते हैं।
ट्रंप के भारत आने से पहले वहां के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर नई दिल्ली की यात्रा पर आ रहे हैं। उनकी मुलाकात भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से होनी है, और दोनों नेता मिलकर करीब 71 हजार करोड़ रुपये के वृहद् समझौता की रूपरेखा को अंतिम रूप देंगे। इस समझौते के वैधानिक पहलुओं पर विचार-विमर्श चल रहा है। यह देखने की बात होगी कि राष्ट्रपति ट्रंप का यह दौरा व्यक्तिगत स्तर पर वाहवाही लूटने और सुर्खियां बटोरने का आयोजन बनता है, अथवा इससे कुछ ठोस नतीजे निकलते हैं। ट्रंप यदि अपने राजनीतिक हितों के लिए भारत से रियायत हासिल करना चाहते हैं तो नरेन्द्र मोदी भी देश की सुस्ती की शिकार अर्थव्यवस्था को फिर से गति देने के लिए अमेरिका का सहारा ढूंढ़ रहे हैं।
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