गंगा : महंगी पड़ेगी अनदेखी
गंगा की अविरलता-निर्मलता के समक्ष हम नित्य नई चुनौतियां पेश करने और खुद को धोखा देने में लगे हैं।
![]() गंगा : महंगी पड़ेगी अनदेखी |
घाट विकास, तट विकास, तट पर औषधि उद्यान, सतही सफाई, खुले में शौच मुक्ति के लिए गंगा ग्रामों में बने शौच गड्ढे..खुद को धोखा देने जैसे ही काम हैं। अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरक, खर-पतवारनाशक व कीटनाशाकों का बेलगाम प्रयोग भी इसी श्रेणी में आता है। तकलीफदेह तथ्य यह है कि ऐसा करते हुए हम उन कहानी, शोध, निष्कर्ष व आंखों देखी तकलीफों की लगातार अनदेखी कर रहे हैं, जो प्रमाण हैं कि चुनौती तो हम खुद अपने लिए पेश कर रहे हैं।
पत्रकार अभय मिश्र ने वेंटिलेटर पर जिंदा एक महान नदी की कहानी लिखी है। वह महान नदी, हमारी गंगा है। हकीकत में ‘माटी मानुष चून’ उपन्यास, गंगा के वेंटिलेटर पर जाने की कहानी नहीं है; यदि भारत की नदियों की अनदेखी हुई तो 2075 आते-आते, यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के हम इंसानों के वेंटिलेटर पर आश्रित हो जाने की कहानी होगी। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस जर्नल, अमेरिका की ताजा रिपोर्ट भी यही कह रही है। जिस रफ्तार से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, इस सदी के अंत तक गंगा, मेघना और ब्रह्मपुत्र पर समुद्र का जल स्तर 1.4 मीटर बढ़ जाएगी। इससे एक-तिहाई बांग्लादेश और पूर्वी भारत का एक बड़ा हिस्सा स्थाई बाढ़ व दलदली क्षेत्र के रूप में तब्दील हो जाएगा। परिणामस्वरूप, इस इलाके में बसी करीब 20 करोड़ की आबादी वेंटिलेटर पर होगी। विज्ञान पर्यावरण केंद्र से लेकर स्वयं सरकार के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक के अब तक की रिपोर्ताज गंगा गुणवत्ता की बेहतरी की खबर नहीं दे रहे। गंगा बेहतरी के नाम पर उत्तर प्रदेश की शासकीय गंगा यात्रा भले ही जारी हो; प्रयागराज में माघ मेले के इस समय में भी गंगा-यमुना में जा रहे नाले के सोशल मीडिया पर जारी ताजा वीडियो के दृश्य कुछ और ही कह रहे हैं।
गंगा, डुबकी लगा रहे लाखों लोगों को पाप मुक्त करके भेज रही है या नई बीमारियां देकर? इसका एक उत्तर स्वयं प्रधानमंत्री जी के प्रतिनिधित्व वाले अस्सी नाले और वरुणा नदी से सीधे रूबरू होकर पाया जा सकता है। दूसरा उत्तर, डॉक्टर सूरज द्वारा गत दो वर्षो के दौरान गंगातटीय 2500 मरीजों पर किए गए ताजा शोध ने पेश किया है। डॉक्टर सूरज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुन्दरलाल अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग के शोधार्थी हैं। शोध कहता है कि, प्रयागराज से लेकर मिर्जापुर, भदोही, बनारस, चंदोली, बलिया, बक्सर तक की 300 किलोमीटर लम्बी गंगा तटवर्ती पट्टी में गंजेटिक पर्किसन और गंजेटिक डिमेंशिया के रोगी बढ़े हैं। मोटर नूरान नामक जो बीमारी, इस पट्टी के लोगों को तेजी से अपना शिकार बना रही है, उसका एक कारण गंगा में मौजूद धात्विक प्रदूषण है। यह बीमारी अंगों में कसाव के साथ फड़फड़ाहट जैसे लक्षण लेकर आती है। खेती में प्रयोग होने वाले इंडोसल्फान ऑग्नोफास्फोरस, डीडीटी, लिन्डेन, एन्ड्रिन जैसे रसायनों के रिसकर गंगा में मिलने से इन इलाकों में पेट व पित्ताश्य की थैली के कैंसर रोगी बढ़े हैं। आशंका है कि गंगा जल प्रदूषण, अनुवांशिक दुष्प्रभाव भी डाल सकता है। इसके लिए फिलहाल, गंगा के जलीय जीवों पर अनुवांशिक प्रभावों का अध्ययन भी शुरू किया गया है। बावजूद इसके हमारे आत्मघाती कदम पर निगाह डालिए कि रिवर फ्रंट के नाम पर हमने गोमती नदी के साथ धोखा किया।
उत्तर प्रदेश के पिछले शासनकाल में हिंडन की नदी भूमि पर कब्जे की एक योजना चुपके-चुपके बनाई गई। गोमती व हिंडन, क्रमश: गंगा व यमुना की सहायक धारा है। इस बीच हिण्डन नदी भूमि पर कब्जा किए बैठी 100 से अधिक इमारतों व खेल परिसरों को ध्वस्त करने की एक सामने आया है। प्रतीक्षा करनी होगी कि यह ज़मीन नदी के लिए खाली कराई जा रही है या किसी और के लिए? किंतु क्या हम इंतजार करें कि हिण्डन के साथ भी वही हो, जो जयपुर की द्रव्यवती के साथ हो चुका है। जयपुर की द्रव्यवती नदी को मल शोधन संयत्रों से शोधित अवजल की निकासी की पक्की नहर में तब्दील किए जाने को क्या हम नदी पुनर्जीवन का कार्य कहें ? यह कार्य टाटा प्रोजेक्टस और शंघाई अर्बन डेवल्पमेंट कन्सट्रक्शन ग्रुप को ठेके पर दे कर कराया गया है। सूत्रों के मुताबिक, पुनर्जीवन के नाम पर हिण्डन नदी के तट विकास का कार्य भी टाटा प्रोजेक्ट को दिया जाने वाला है। नदियों के साथ खिलवाड़ के आत्मघाती खेल कई हैं। इससे नुकसान पर नुकसान हो रहा है। इससे बचाव का एकमात्र उपाय वही है कि गंगा को उसकी पवित्रता के साथ अविरल बहने दिया जाए।
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