सरोकार : अमेरिका में राष्ट्रपति पद भी लैंगिक भेदभाव से परे नहीं
राजनीति में सेक्सिज्म की बातें हम जब-तब करते हैं। कोई देश इससे अछूता नहीं। कुछ दिन पहले फिनलैंड ने महिला प्रधानमंत्री चुनी है, अब अमेरिका की बारी है।
सरोकार : अमेरिका में राष्ट्रपति पद भी लैंगिक भेदभाव से परे नहीं |
2020 में हम डोनाल्ड ट्रंप के बाद एलिजाबेथ वॉरेन को राष्ट्रपति पद पर देखना चाहेंगे। सत्तर साल की वॉरेन डेमोक्रेट उम्मीदवार हैं। अमेरिका में नेन्सी पेलोसी जैसी महिला नेता मौजूद हैं, जो हाउस ऑफ रिप्रेंजेंटेटिव्स में अध्यक्ष का पद संभाल रही हैं। वह अमेरिकी इतिहास की पहली महिला अध्यक्ष हैं। डेमोक्रेट्स ने उनके बाद दूसरा बड़ा कदम उठाया है, और वॉरेन को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी सौंपी है।
क्या पेलोसी के बाद वॉरेन को पार्टी की तरफ से चुना जाना एक बड़ा कदम है। बेशक..पर अभी बहुत-सी लड़ाइयां बाकी हैं। अमेरिका में सिर्फ नौ महिला गवर्नर्स हैं जबकि सीनेट में 26 औरतें हैं। दूसरी तरफ बहुत से लोग मानते हैं कि अमेरकिंस शायद ही किसी महिला को राष्ट्रपति चुनें। इससे पहले हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद का चुनाव हार चुकी हैं। पर उसका कारण सिर्फ सेक्सिज्म नहीं था। वह इसलिए भी हारी थीं कि अमेरिकी लोग बदलाव चाहते थे। बहुतों को लगता था कि उनकी जीत के मायने क्लिंटन परिवार को दोबारा मौका देना होगा। वॉरेन के साथ ऐसा नहीं है। वॉरेन 30 सालों से राजनीति में हैं, और बकौल वॉरेन, वह कोई चुनाव नहीं हारी हैं। पेशे से प्राइमरी स्कूल टीचर हैं।
अमेरिकी समाज कोई बहुत प्रगतिशील समाज नहीं है। कई साल पहले वॉरेन जैसा दुस्साहस सीनेटर मार्गेट चेस स्मिथ भी कर चुकी हैं। दुस्साहस इसलिए कि औरतों के लिए दुनिया के सबसे ताकतवर पद की चाह रखना भी बहुत मुश्किल है। स्मिथ ने जब 1964 में यह हिमाकत करने की कोशिश की और अपना नामांकन भरा, तब उनकी उम्र 66 साल थी। लॉस एंजिलिस टाइम्स के एक कॉलमिस्ट ने उन्हें सलाह दी थी कि वह इस पद के बहुत उम्रदराज हैं। राष्ट्रपति पद के लिए किसी महिला नेता को चालीस, या हद से हद पचास साल की उम्र में उम्मीदवारी पेश करनी चाहिए। साठ की उम्र में वह अनफिट हो जाती हैं। उन्हें मेनोपॉज का शारीरिक और भावनात्मक तनाव भी झेलना होता है।
तो क्या अमेरिका किसी महिला को राष्ट्रपति बनाने को तैयार है? बर्नी सैंडर्स जैसे नेता सवाल कर चुके हैं कि क्या अमेरिका में यह संभव है? किसी भी समाज में महिला जब अपनी परंपरागत भूमिकाओं से बाहर निकलती हैं, तो उन्हें लैंगिक पक्षपात झेलना पड़ता है। महत्त्वाकांक्षी महिलाओं को महत्त्वाकांक्षी पुरुषों की तुलना में नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। इससे मतदाताओं के मन में भी महिला नेताओं के प्रति दुराग्रह पनपते हैं। न्यूयॉर्क की सिटी यूनिर्वसटिी में जर्नलिज्म और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर पीटर बेनार्ट ने 2016 में ‘द अटलांटिक’ में येल के दो रिसर्चर्स के एक पेपर का हवाला दिया था। इसमें कहा गया था कि एक काल्पनिक पुरुष सीनेटर के प्रति लोगों का रवैया तब नहीं बदला, जब उन्हें पता चला कि वह बहुत महत्त्वाकांक्षी है पर महिला सीनेटर के प्रति उनका दृष्टिकोण ही बदल गया। उन्हें लगा कि वह अनैतिक होगी। गुस्सैल और घृणास्पद। पिछले साल सितम्बर में महिलाओं के एडवोकेसी ग्रुप ‘लीन इन’ ने एक सर्वेक्षण किया था। इसमें कहा गया था कि मतदाताओं को ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका महिला राष्ट्रपति के लिए तैयार है, तो वे खुद भी महिला उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहेंगे। देखना है कि वॉरेन कितने हद तक आगे बढ़ती हैं। क्या सचमुच लोकप्रिय पुरुष उम्मीदवारों को कांटे की टक्कर दे पाएंगी।
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