बतंगड़ बेतुक : झल्लन मियां चले आंदोलन समझने

Last Updated 19 Jan 2020 03:31:23 AM IST

उधर आंदोलन गरम हो रहा था, इधर झल्लन भ्रमित हो रहा था।


बतंगड़ बेतुक : झल्लन मियां चले आंदोलन समझने

देश खतरे में था, लोकतंत्र खतरे में था, संविधान खतरे में था, धर्मनिरपेक्षता खतरे में थी, संविधान के प्रावधान खतरे में थे, विपक्षियों का वजूद खतरे में था और ये सारे खतरे यकायक सरकार ने पैदा  कर दिये थे और इन खतरों ने लोगों के दिल-दिमाग झकझोर दिये थे। बेचारे पुरुष पुरुष थे इसलिए खुद बाहर नहीं आ सकते थे, उन्होंने महिलाओं से गुहार लगायी और इन सबको बचाने के लिए मुस्लिम महिलाएं घर से बाहर निकल आयीं। देखते-ही-देखते एक जमावड़ा आंदोलन बन गया और इधर बेचारे झल्लन का दिल-दिमाग तन गया।
देश बचाने की बात झल्लन के मन में थी, वह संविधान भी बचाना चाहता था, इन्हें बचाने के लिए नारे लगाना चाहता था, शोर मचाना चाहता था पर दिक्कत यह थी कि न उसे देश खतरे में दिख रहा था, न संविधान खतरे में दिख रहा था। कोई खतरे में दिख रहा था तो केवल विपक्ष खतरे में दिख रहा था। झल्लन को अपनी नजर पर शक हुआ कि शायद वही गलत देख रहा है और वह नहीं देख पा रहा है जो हर जुझारू आंदोलनकारी देख रहा है। उसने सोचा कि आंदोलन के घाट चला जाये, किसी आंदोलनकारी से मिला जाये और अपने दिमाग की धुंध साफ की जाये, फिर आंदोलनकारियों के साथ धरने पर बैठा जाये और जिस संविधान को वह अब तक बचा हुआ पा रहा है उसे फिर से बचाया जाये।

आंदोलनकारी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, आजादी-आजादी चिल्ला रहे थे। झल्लन ने भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया, उसे मालूम नहीं था कि आजादी किससे लेनी है फिर भी वह आजादी-आजादी चिल्लाया और जुनून से लबरेज एक आंदोलनकारी से थोड़ी निकटता बढ़ाकर उसे थोड़ा अपने निकट ले आया। झल्लन ने भरपूर सहानुभूति जताई और अपनी शंका आंदोलनकारी की तरफ बढ़ाई, ‘भाईजान, हमने बहुत समझने की कोशिश की कि आखिर आपका आंदोलन क्या चाहता है, कहां पहुंचना चाह रहा है, हमारी समझ में कुछ साफ-साफ नहीं आ रहा है?’ आंदोलनकारी बोला, ‘लगता है मियां, न तुम टीवी देखते हो न अखबार पढ़ते हो। इसीलिए बेतुकाना सवाल करते हो। दुनिया जानती है कि हम संविधान बचाने के लिए लड़ रहे हैं, अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘हम थोड़े कन्फ्यूज हो रहे हैं कि आप संविधान बचाने के लिए लड़ रहे हैं या अपना हक बचाने के लिए लड़ रहे हैं?’ आंदोलनकारी बोला, ‘बड़े जाहिल हो मियां, हम संविधान के लिए भी लड़ रहे हैं, अपने हक के लिए भी लड़ रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘तो मतलब हुआ कि संविधान ने आपको जो हक दिये हैं उनके लिए लड़ रहे हैं, और क्योंकि आपको ये हक नहीं मिल रहे हैं इसलिए संविधान के लिए लड़ रहे हैं?’
आंदोलनकारी बोला, ‘मियां अब तुम पटरी पर आ रहे हो, थोड़ा-थोड़ा समझ पा रहे हो।’ लेकिन झल्लन फिर कन्फ्यूजिया गया, बोला, ‘हमारी समझ थोड़ी छोटी है इसलिए थोड़ा तफसील से समझाएं, संविधान में दिया गया आपका कौन सा हक कैसे और किसने मारा है, इसे थोड़ा खुलकर समझाएं। सरकार ने आपको समान नागरिक हक दिया है, आपको आपके धर्म का हक दिया है, आपको अपनी बात कहने का हक दिया है, आपको वोट देने का हक दिया है, आपको सरकार चुनने का हक दिया है और अगर इनमें से कोई भी हक आपको नहीं मिल रहा है तो उसे अदालत में चुनौती देने का हक दिया है। भाईजान, हम जानना चाहते हैं कि आखिर इनमें से कौन सा हक आपको नहीं मिल रहा है या मिला हुआ कौन सा हक आपसे छिन रहा है जिसकी खातिर आप आंदोलन चला रहे हैं, संविधान बचा रहे हैं?’
आंदोलनकारी बोला, ‘सरकार सीएए ले आयी है यह संविधान के खिलाफ है इसलिए हम इसके खिलाफ हैं।’ झल्लन बोला, ‘आप जिस सीएए की बात कर रहे हैं वह नागरिकता संशोधन कानून है। संवैधानिक तरीके से बहुमत से चुनकर आयी सरकार ने बनाया है, संवैधानिक तरीके से पहले लोक सभा में पास कराया है फिर संवैधानिक तरीके से राज्य सभा में पास कराया है, फिर संवैधानिक तरीके से इसे लागू कराया है। तब भी मान लिया कि यह संविधान के खिलाफ है, लेकिन आपके किस हक के खिलाफ है? भाईजान, बताइए न, यह कानून तो अपनी जान और अस्मत बचाकर भागकर आये लोगों को नागरिकता दे रहा है फिर हमें यह समझाइए कि यह आपका हक कैसे ले रहा है?’ आंदोलनकारी तैश में बोला, ‘तुम जैसे जाहिल लोग नहीं जान पाएंगे, इस कानून का इरादा ही हमारे हक के खिलाफ है, इस बात को नहीं मान पाएंगे।’ झल्लन बोला, ‘तो आप इस कानून को नहीं कानून के इरादे को अपने हक के खिलाफ मान रहे हैं, मगर भाईजान, आप हमें फिर शंका में डाल रहे हैं। हमें नहीं मालूम आपके जेहन में क्या चल रहा है मगर हमें तो कानून के इरादे को अपने हक के खिलाफ मानने का आपका इरादा ही खल रहा है।’
आंदोलनकारी ने झल्लन की तरफ आंखें तरेरीं और आगे निकल लिया। झल्लन की शंका समाप्त नहीं हुई थी। सो, वह किसी दूसरे आंदोलनकारी को पकड़ने चल दिया।

विभांशु दिव्याल


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