वैश्विकी : सीना ठोक ‘रायसीना’

Last Updated 19 Jan 2020 03:35:09 AM IST

विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के तत्वावधान में दिल्ली में आयोजित ‘रायसीना डॉयलाग’ पर इस बार पूरी दुनिया की नजर थी।


वैश्विकी : सीना ठोक ‘रायसीना’

अमेरिका-ईरान के बीच तनातनी और भावी संघर्ष की आशंका के बीच इसका आयोजन किया गया था। इसमें ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ को भी निमंत्रण दिया गया था। जरीफ ने बेहद साफगोई से अपना पक्ष रखा और प्रधानमंत्री मोदी समेत भारतीय नेताओं से बातचीत की। प्रधानमंत्री मोदी ने जरीफ से बातचीत में ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह के बारे में भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। भारत इस बंदरगाह के एक हिस्से को अफगानिस्तान को माल की आपूर्ति में इस्तेमाल करता है। भारत के लिए इसका रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व है। मोदी ने चाबहार के संचालन और इसे विशेष आर्थिक जोन घोषित करने के लिए ईरान के प्रति आभार भी व्यक्त किया। यह पूरा घटनाक्रम ईरान और अमेरिका ही नहीं, बल्कि विश्व समुदाय को संदेश था कि भारत परस्पर विरोधी देशों के साथ संबंधों में कैसे संतुलन कायम करता है।
भारत की इस विशिष्ट नीति के सैद्धांतिक आधार का खुलासा करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत दुनिया में अस्थिरता पैदा करने वाला नहीं है, बल्कि स्थायित्व पैदा करने वाला देश है। अपनी इसी विदेश नीति के आधार पर भारत अमेरिका और ईरान, सऊदी अरब और ईरान, इस्राइल और फिलिस्तीन जैसे देशों के साथ लाभप्रद संबंध बनाए हुए है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत अपनी विदेश नीति का संचालन किसी अन्य देश के हितों की पूर्ति में नहीं करेगा।

रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव ने हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के संबंध में अमेरिकी नीति की आलोचना की। उन्होंने अमेरिकी प्रशासन द्वारा पेश की गई इंडो-पैसिफिक अवधारणा पर भी सवाल उठाए। कहा कि इस क्षेत्र का नाम एशिया-प्रशांत भी हो सकता था। भारत-प्रशांत नामकरण अमेरिकी प्रशासन ने इस मंसूबे के साथ किया है कि अपने राजनीतिक और सामरिक मंसूबे में भारत का इस्तेमाल कर सके। लावरोव के अनुसार अमेरिकी रणनीति एशिया में चीन को अलग-थलग करने की है। अमेरिका चीन के विरुद्ध भारत को लामबंद  करना चाहता है।
रायसीना संवाद ने भारतीय विदेश नीति की स्वायत्तता की पुन:पुष्टि की तथा यह साफ किया  कि राष्ट्रीय हितों में जैसा आवश्यक होगा भारत वैसा करेगा। जयशंकर ने इस संबंध में यह गूढ़ टिप्पणी की कि हमारे फैसलों के बारे में दुनिया के लोगों को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन हमारा भी यह अधिकार है कि उनकी राय के बारे में अपनी राय रख सकें। विदेश मंत्री ने भारत और रूस की मैत्री को दुनिया में अनोखा बताते हुए कहा कि दोनों देश यूरोप-एशिया (यूरेशिया) क्षेत्र की अवधारणा में विश्वास रखते हैं। इस कथन से यह संकेत मिलता है कि भारत अपनी विदेश नीति में रूस, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया को विशेष प्राथमिकता देगा।
प्रतीत होता है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पश्चिमी देशों में हो रही भारत की आलोचना के कारण मोदी सरकार अपनी विदेशी नीति की प्राथमिकताओं में बदलाव कर रही है। सही है कि  किसी पश्चिमी देश ने सरकार के स्तर पर मोदी सरकार के फैसलों का विरोध नहीं किया है, लेकिन विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं ने विरोधी रुख अपनाया है। रूस सहित भारत के कुछ परंपरागत मित्र देशों ने ही पश्चिमी देशों के राजनेताओं और बुद्धिजीवी तबकों को विस्तार से भारतीय पक्ष समझाने की कोशिश की है। लेकिन लगता है कि इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल पाई  है। पश्चिमी बुद्धिजीवियों और नीति-निर्धारकों के प्रति भारत ने अब अपनी नाराजगी जाहिर करना शुरू किया है। अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल के साथ विदेश मंत्री जयशंकर नहीं मिले और अभी हाल में अमेजन के मालिक जेफ बेजोस को प्रधानमंत्री मोदी ने मिलने का समय नहीं दिया। बेजोस अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वाशिंगटन पोस्ट के मालिक भी हैं। मोदी से मुलाकात का समय न मिल पाना स्पष्ट संदेश था कि सरकार के फैसलों की आलोचना स्वीकार है, लेकिन सरकार को अस्थिर बनाने के लिए दुर्भावना से प्रेरित अभियान को भारत बर्दाश्त नहीं करेगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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