सरोकार : औरतों का तनाव दोहरा देता है अनपेड वर्क

Last Updated 12 Jan 2020 04:08:39 AM IST

मर्दों की गैर-बराबरी औरतों को बहुत तरीके से नुकसान पहुंचाती है। औरतें श्रम बाजार में पुरुष से गैर-बराबरी झेलती हैं-सार्वजनिक स्थलों पर उत्पीड़न झेलती हैं-पतियों की मार-पिटाई सहती हैं।


औरतों का तनाव दोहरा देता है अनपेड वर्क

हमारे सामाजिक ढांचे में, घरों में अपने लोगों द्वारा भी इस गैर-बराबरी को पोषित किया जाता है। यह तभी से शुरू हो जाता है, जब माता-पिता अपनी बेटियों को पुचकार कर कहते हैं कि मेहमानों के लिए पानी ले आओ जबकि बेटा मेहमानों को कविता सुना रहा होता है,गोदी में खेल रहा होता है। रोजाना का यह भेदभाव औरतों की शारीरिक-मानसिक सेहत पर बहुत बुरा असर डालता है।
रोजाना का भेदभाव क्या होता है? इसकी जांच करने के लिए अमेरिका में कई अध्ययन किए गए। एक अध्ययन का नाम है-एवरिडे सेक्सिज्म: एविडेंस फॉर इट्स इंसिडेंस, नेचर एंड साइकोलॉजिकल इम्पैक्ट फ्रॉम डेली डायरी स्टडीज। इसमें 107 महिलाओं और 43 पुरुषों को अपनी-अपनी डायरियों में दो हफ्ते तक उन घटनाओं को दर्ज करने को कहा गया, जब उन्हें लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़े। औरतों को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक ने लिखा कि उससे कहा गया कि उसे अपने छोटे से दिमाग को इंश्योरेंस जैसे जटिल मसलों पर नहीं खपाना चाहिए। किसी को सेक्सिएस्ट चुटकुला सुनाया गया। किसी को सड़क पर, बस में अजनबी का अवांछित स्पर्श झेलना पड़ा। परंपरागत रूप से पुरुष प्रधान क्षेत्रों जैसे विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली औरतों को पूर्वाग्रह का शिकार बनाया गया। किसी को आसान काम सौंपा गया। कुछेक को काम के बाद के डिनर पार्टी वगैरह में नहीं बुलाया गया। हालांकि किसी को महसूस हो सकता है कि छोटी-मोटी घटनाओं से क्या फर्क पड़ता है, लेकिन इससे हमें अतिरिक्त तनाव तो झेलना ही पड़ता है। मानसिक स्तर पर भी इसका असर होता है। कई शोध इस बारे में भी हुए हैं कि भेदभाव का सामना करने वाले पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का शिकार होते हैं, दारूबाज हो जाते हैं और धूम्रपान करने लगते हैं। कैलिफोर्निया के तीन रिसर्चर्स ने यह अध्ययन किया है कि लैंगिक भेदभाव के मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक असर किस प्रकार अंतर संबंधित हैं। 

यों कामकाजी औरतें अलग तरह के तनाव झेलती हैं। दूसरी औरतों के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक तनाव का शिकार होना पड़ता है। तिस पर दो बच्चे हों तो तनाव बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाता है। यूके के मशहूर मैनचेस्टर विश्वविद्यालय और एसेक्स विश्वविद्यालय के एक साझा शोध में शरीर की मनोवैज्ञानिक प्रणालियों से जुड़े 11 संकेतकों या बायोमार्कर्स को शामिल किया गया था जो कि खराब स्वास्थ्य और मृत्यु से संबंधित थे। शोध में कहा गया कि इन बायोमार्कर्स में क्रॉनिक स्ट्रेस, हारमोनल लेवल और ब्लड प्रेशर शामिल हैं, और औरतों में ये सभी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पाए गए। दिलचस्प यह है कि काम के लिए फ्लेक्सिबल टाइम मिलने से स्ट्रेस का यह लेवल कम नहीं होता। न ही घर पर रहकर काम करने से यह दूर होता है। इसलिए वर्क फ्रॉम होम का विकल्प देने वालों को भी यह समझना होगा। औरतों को रोजाना जो सब झेलना होता है, उससे मानसिक सेहत तो बिगड़ती ही है। इनमें बहुत सारी जिम्मेदारी अनपेड वर्क की भी है-जो सिर्फ  उसे करने पड़ते हैं। इन कामों को बांटा जाए तो भेदभाव भी खत्म होगा और औरतों को बाहर निकल कर काम करने का मौका भी मिलेगा। तनाव भी दूर होगा।

माशा


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