सरोकार : महिला बॉस के साथ काम करना कठिन
कल्पना कीजिए कि आपके बॉस अनिल ने आपको अपने दफ्तर में बुलाया। आपके कार्य प्रदर्शन और काम के प्रति आपकी लगन की आलोचना की।
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आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? उसकी बात सुनना और उसके हिसाब से काम करना? या मौजूदा दफ्तर छोड़कर नई नौकरी की तलाश करना। बेशक, आपकी प्रतिक्रिया तब अलग होगी, जब बॉस का नाम अनिल नहीं, रेखा होगा। अमेरिका के मिडिलबरी में इकोनॉमिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर मार्टनि अबेल ने अपने रिसर्च पेपर में कहा है कि कर्मचारी महिला बॉस के प्रति दुराग्रह रखते हैं-उनके साथ भेदभाव करते हैं। इसके लिए मार्टनि ने 2,700 कर्मचारियों की मदद से ऑनलाइन फीडबैक्स का विश्लेषण किया।
अमेरिका का यह अध्ययन भारत पर भी लागू होता है। यहां भी औरतों की ऊंची आवाज मदरे को पसंद नहीं आती। बॉस का डांटना तो और भी बुरा लगता है। अक्सर लोग कह देते हैं-पति या घर वालों से झगड़कर आई होगी..या पता नहीं, इसका पार्टनर इसे कैसे बर्दाश्त करता है। हालांकि महिलाओं को बॉस बनाया कम जाता है, क्योंकि हेरारकी में उसका निचला पद सबको पसंद आता है। वह आदेश मानती अच्छी लगती है-आदेश देते नहीं। वैसे भारत में नये मातृत्व लाभ कानून के चलते बहुत-सी औरतें श्रम बल से बाहर धकेली जा रही हैं। पहले ही कम संख्या में हैं, अब और कम होने वाली हैं। टीमलीज सर्विसेज लिमि. के सर्वे में कहा गया है कि नये मातृत्व लाभ कानून से छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स औरतों को हायर करने से कन्नी काटेंगे। अंदाजा है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक लगभग 11 से 18 लाख औरतें अपनी नौकरियों से हाथ धो चुकी हैं। टीमलीज सर्विसेज एक स्टाफिंग और ह्यूमन रिसोर्स कंपनी है। उसने अपने डेटा के लिए लगभग 10 क्षेत्रों के 300 से अधिक कंपनी मालिकों से बातचीत की है। इन क्षेत्रों में उड्डयन, आईटी, शिक्षा, ई-कॉमर्स, मैन्यूफैक्चरिंग, बैंकिंग, रियल एस्टेट आदि शामिल हैं,तो जब नौकरियां छूट जाएंगी तो बॉस बनना तो दूर की बात है।
मशहूर लेखिका एवं मैनेजमेंट कंसल्टेंट अपर्णा जैन की किताब है :ओन इट-लीडरशिप लेसंस फ्रॉम विमेन हू डू। इसमें सीनियर पदों पर काम करने वाली औरतों की आपबीती है। किताब को पढ़कर जाना जा सकता है कि गैर-यौन उत्पीड़न कितना खतरनाक हो सकता है। भेदभाव के कितने प्रकार हो सकते हैं-माइक्रोअसॉल्ट, जिसमें नाम लेकर जानबूझकर चोट पहुंचाई जाती है, आपको नजरअंदाज किया जाता है। माइक्रोइंसल्ट, जिसमें मौखिक या गैर-मौखिक रूप से रूखापन और असंवेदनशीलता दिखाई जाती है। माइक्रोइनवैलिडेशन, जिसमें किसी व्यक्ति की सोच, अनुभव या भावनाओं को बार-बार नकारा जाता है। औरतों को रोजाना जैसे व्यवहार का सामना करना पड़ता है, यह किताब उनका बहुत अच्छी तरह से खुलासा करती है। नेतृत्व वाले पदों पर औरतों की मौजूदगी बहुत जरूरी है। मल्टीनेशनल ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टिंग फर्म रैंडस्टेड ने 2014 में एक अध्ययन किया था। उसमें कहा गया था कि जिन कंपनियों के प्रोफेशनल सीईओ में औरत और मर्द, बराबर संख्या में थे, वहां रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) यानी लाभपरकता में 4.4% की बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन जिन कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में केवल मर्द थे, उनका आरओई सिर्फ 1.8% था। मतलब तरक्की औरतों के बिना संभव नहीं है। उसके लिए आपको औरतों की भी मदद लेनी होगी।
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