बतंगड़ बेतुक : मंडप छोड़ भागी सजी-संवरी दुल्हन
झल्लन हमें देखते ही मुस्कुराया और हमारे पास चला आया, बोला, ‘ददाजू, मिठाई खिलाइए, आखिर दुल्हन मंडप चढ़ गयी, दूल्हे के गले में वरमाला पड़ गयी।
![]() बतंगड़ बेतुक : मंडप छोड़ भागी सजी-संवरी दुल्हन |
अब फेरे चल रहे हैं, बराती-घराती गले मिल रहे हैं, कितनों के दिल उछल रहे हैं, कितनों के अरमान मचल रहे हैं। अब मत कहिएगा कि शर्मीली दुल्हन धर्मनिरपेक्षता तन्नाये दूल्हे हिंदुत्व के साथ गांठ जोड़ नहीं सकती, पुरानी परिपाटी को तोड़ नहीं सकती।’
हमें हंसी आयी,‘लगता है तू सोते हुए उठकर सीधा यहां चला आया है, सुबह की टीवी खबर भी नहीं देख पाया है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, खबर तो एक ही चल रही है कि दूल्हा मंडप में खड़ा है और दुल्हन फेरों के लिए आगे बढ़ रही है।’ हमने कहा, ‘तेरी दुल्हन मंडप से भाग आयी है और दूसरे दूल्हे के गले में वरमाला डाल आयी है।’ झल्लन हमारी बात सुनकर थोड़ा भ्रमित हुआ, थोड़ा अचंभित हुआ, फिर बोला, ‘वहां बेचारे दूल्हे का गला सूख रहा है और यहां आपको मजाक सूझ रहा है।’ हमने कहा, ‘मजाक नहीं हकीकत बयान कर रहे हैं, मंडप में जो मातम मचा है, उसी का बखान कर रहे हैं। दुल्हन ने दूल्हा बदल लिया है, अपना नया हनीमून राजभवन में पक्का कर लिया है।’ झल्लन की हैरत और बढ़ गयी और हमारे चेहरे पर मुस्कान की एक परत और चढ़ गयी। झल्लन बोला, ‘ददाजू, ऐसी असगुनिया बात न करें। कल रात से वहां शादी के बधावे बज रहे हैं, स्वागत के तोरण द्वार सज रहे हैं और आप इधर अफवाह फैलाने में लग रहे हैं।’ हमने कहा, ‘जा पहले कहीं खबर सुनकर आ, फिर आकर हमें बता।’ हमारी बात सुनकर झल्लन ने जेब से अपना फोन निकाला, उस हाथ से इस हाथ में उछाला, फिर उसमें फटाफट कुछ बटन दबाये और स्क्रीन देखते हुए उसके चेहरे पर नये रंग उतर आये। वह आह सी भरते हुए बोला, ‘आप ठीक कह रहे हैं ददाजू, दुल्हन सचमुच भाग गयी, किसी की होते-होते किसी और की हो गयी।’
हमने कहा, ‘हमने तो पहले ही कहा था यह पद और सियासत का गठबंधन है, इसमें कौन कब किसका हो जाय, किसे छोड़ किससे जुड़ जाय कुछ पता नहीं चलता, यहां बिना जोड़-तोड़ के एक दाना नहीं गलता।’ झल्लन ने लंबी सांस ली, जैसे आह भरी हो। फिर बोला, ‘कोई बात नहीं ददाजू, दुल्हन एक की न सही दूसरे की हो गयी, आखिर शादी-सरकार तो पक्की हो गयी।’ हमने कहा, ‘अभी कुछ नहीं पता, पता नहीं आगे क्या हो जाय, कौन किसे पटकनी मार दे और कौन किसके सीने पर सवार हो जाय। अब यहां किसी का कोई ईमान नहीं रह गया है, विचार-निष्ठा का तो हर किला ढह गया है। देख, कल कुछ और होने जा रहा था आज कुछ और हो गया, मुख्यमंत्री कौन होने जा रहा था और कौन हो गया।’
झल्लन मुस्कुराया, बोला, ‘ददाजू, परेशानी परे हटाइए, दुल्हन धर्मनिरपेक्षता ने तन्नाये हिंदुत्व के गले में नहीं भन्नाये हिंदुत्व के गले में माला डाल दी, इसी बात पर खुश हो जाइए।’ हमने कहा, ‘क्या खुशी मनाएं, कल जो एक-दूसरे के साथ गाली-गलौज कर रहे थे अब आज मिलकर ठहाके लगा रहे हैं, जो एक-दूसरे को पापी-चोर बताते हुए नहीं थकते थे वही एक-दूसरे को गले लगा रहे हैं। कल जेल भिजवा रहे थे, चक्की पिसवा रहे थे, आज साथ में सत्ता दिलवा रहे हैं। इस देश की जनता भी न जाने कैसे-कैसे लोगों को चुनती है, पहले चुनती है फिर सर धुनती है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, जनता सर नहीं धुनती मजे लेती है। नेताओं को मजे लेने के मौके भी जनता ही देती है। अब जो नयी गांठ जुड़ रही है उसके मजे भी जनता ही लेगी और हमारी समझ से यह नयी शादी भी आदर्श होगी, स्मरणीय होगी और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगी।’ हमने व्यंग्य से कहा, ‘इसमें क्या तो आदर्श है, क्या तो अनुकरणीय, कृपया हमें समझाएंगे आदरणीय।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप हमें आदरणीय बता रहे हैं, हमें चिढ़ा रहे हैं। सच्ची बात ये है कि यह परिपाटी तोड़कर हुआ आदर्श विवाह है, अनुकरणीय विवाह है और स्मरणीय विवाह है। यह विवाह इसलिए आदर्श है कि यह विपरीत रीति-रिवाज वालों में एका करा रहा है और अनुकरणीय इसलिए कि यह धुर विरोधियों को एक होना सिखा रहा है। अब देखिए, इस विवाह में क्या हुआ कि दुल्हन भले ही इधर से उधर चली गयी हो पर उसने अपनी झिझक तो छोड़ी, दूल्हे ने भले ही दूसरे का मौर अपने सर रख लिया हो पर उसने अपनी अकड़ तो तोड़ी और आखिरकार दोनों की बन गयी जोड़ी। आगे लोग इस जोड़ी को याद रखेंगे और जब भी सरकार बनाने में फंसेंगे तो इस जोड़ी का अनुसरण करेंगे। वे न किसी विचार को आड़े आने देंगे, न किसी सिद्धांत को भटकाने देंगे जिससे जैसी गोटी फिट हुई उसे पटा लेंगे और पट से सरकार बना लेंगे।’ हमने कहा, ‘तो तुझे लगता है यह आदर्श काम है जिसका लोग अनुसरण करें, चाहे विचार मरे या सिद्धांत मरें, हम सिर्फ सत्ता का वरण करें।’ झल्लन बोला, ‘छोड़िए ददाजू, पुरानी बातें छोड़िए, नयी-नयी शादी हुई है, दूल्हा-दुल्हन के लिए शुभ-शुभ बोलिए।’
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