प्रदूषण : सांस-सांस जहर
वातावरणीय ‘आपातकाल’ वायु प्रदूषण को रोकने का विकल्प नहीं हो सकता? हां, स्वच्छ वातावरण जैसी मुहिमों के गाल पर तमाचा मारने जैसा जरूर है।
![]() प्रदूषण : सांस-सांस जहर |
हुकूमतें भले न कहें, लेकिन प्रदूषण के बिगड़े हालात ने समूचे संसार में हमारी छवि पर कालिख पोत दी है। इस स्थिति से एक बात स्पष्ट हो गई कि प्रदूषण रोकने के तमाम प्रयास मात्र कागजों में ही सिमटे हैं? प्रदूषण को लेकर किसी राज्य में आपातकाल घोषित करना सामूहिक विफलता ही नहीं, बल्कि शर्म की बात भी है।
दिल्ली के सिवाय कुछ अन्य शहरों में प्रदूषण जिस खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, उसके हम बराबर के सभी जिम्मेदार हैं। अन्य शहरों के हालात फिर भी ठीक हैं। पर राजधानी का दमघोंटू वायु प्रदूषण लोगों की जान पर बना हुआ है। राजधानीवासी घरों में दुबके हैं लेकिन फिर भी बढ़े प्रदूषण के चलते आंखों में जलन महसूस कर रहे हैं। खराब स्थिति को लेकर कोसें तो किसे कोसें? सभी अपनी जिम्मदारियों से भागते नजर आते हैं। सरकारी और जनसमूहों की तमाम कोशिशें भी स्थिति को काबू नहीं कर पा रहीं। प्रदूषण बोर्ड की मानें तो ऐसी स्थिति अगले कुछ दिनों तक बनी रहेगी। लेकिन तब तक जान-माल को काफी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही हैं। दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में नजर आसमान की तरफ करो तो सिर्फ काले धुंध के गोले ही दिखाई पड़ रहे हैं। क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे सभी को सांस लेना दूभर हो गया है। हालात इस कदर खराब हैं कि सरकार को हेल्थ इमरजेंसी घोषित करनी पड़ी है। लेकिन शायद यह कदम प्रदूषण रोकने का विकल्प नहीं हो सकता। हां, जबावदेही से जरूर बच सकते हैं। मौजूदा प्रदूषण बच्चों पर सबसे ज्यादा असर डाल रहा है। इसी कारण स्कूलों को अगले कुछ दिनों के लिए बंद भी किया गया है। दरअसल, मौजूदा आपात स्थिति का कुप्रभाव दिल्ली पर ही नहीं, बल्कि पूरे देश पर पड़ रहा है। दिल्ली उच्च शिक्षा का हब है, कई प्रांतों के छात्र यहां रहकर पढ़ाई करते हैं, लेकिन परिजन उनकी सेहत को लेकर खासे चिंतित हैं, इसलिए उन्हें घर बुला रहे हैं।
संकीर्ण राजनीतिक वजहें और पोल्यूशन के प्रति राज्यों की उदासीनता वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण है। चुनौती केंद्र सरकार के समक्ष है, लेकिन राज्यों को आगे आकर तत्काल प्रभाव से आवश्यक कदम उठाने चाहिए। दुख इस बात का है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी और उच्च न्यायालय भी प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारों पर दबाव नहीं डाल सके? हम सबको इस मसले पर गहन मंथन की आवश्यकता है। हमें मानकर चलना होगा कि यह विफलता हमारी सेहत के साथ खिलवाड़ तो है ही, साथ ही मुल्क की समूचे संसार में बदनामी करने जैसा भी। निश्चित रूप से हिंदुस्तान की दुनिया में गलत छवि बन रही है। हमें चेतना होगा, नहीं तो आने वाले समय में समस्या और विकराल होगी। सड़कों पर रोजाना बढ़ता वाहनों का बोझ कम करना होगा, प्रकृति दोहन से तौबा करना होगा। फिलहाल, गैस चेंबर बनी दिल्ली में कोई भी नहीं घुसना चाहता। पर्यटकों का आवागमन भी कम हुआ है। चहल-पहल वाले इलाके सूने पड़े हैं। सरकार कहती है कि घरों से बाहर न निकले? लेकिन ऐसा संभव नहीं है। रोजी-रोटी के लिए मजबूरन निकलना ही पड़ेगा। मानवीय हिमाकतों ने हालात इस कदर दुर्दात बना दिए हैं कि जिन्हें कुछ समय की सक्रियता दिखाकर काबू नहीं किया जा सकता। विगत कुछ वर्षो से बड़े महानगरों में दीवाली के समय प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। रोकने को तमाम कागजी कोशिशें होती हैं, पर नतीजा कुछ खास नहीं निकलता। आगे भी स्थिति संभलने के आसार नहीं दिखाई पड़ते। दिल्ली के निजी और सरकारी अस्पताल इस वक्त मरीजों से खचाखच भरे हैं। ज्यादातर लोगों को सांस लेने में दिक्कतें हो रही हैं।
प्रदूषण बढ़ने पर दिल्ली सरकार के पास रटा-रटाया एक ही तर्क होता है। वह भी पराली जलाने का। खैर, उनके इस तर्क में काफी हद तक सच्चाई भी है। दरअसल, प्रदूषण में भारी बढ़ोतरी की बड़ी वजह आसपास के राज्यों में पराली जलना भी होता है। बीते दो दिनों के भीतर ही पराली जलाने के करीब पौने चार हजार मामले सामने आए हैं, जो इस बार सबसे ज्यादा बताए गए हैं। पराली जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध है, बावजूद इसके दिल्ली से सटे हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान अपने खेतों में फसलों के अवशेष चोरी-छिपे नष्ट करते हैं। दिल्ली सरकार पोल्यूशन से बचने के लिए कुछ वैकल्पिक उपाय भी खोजने में लगी है, लोगों को फ्री मास्क बांट रही है। सोमवार यानी आज से ही दिल्ली में ऑड-ईवन भी शुरू हुआ है। सरकार का तर्क है कि ऑड-ईवन से स्थिति कुछ नियंत्रण में आएगी।
| Tweet![]() |