ऑड-ईवन : कितना कारगर होगा?

Last Updated 05 Nov 2019 12:14:16 AM IST

दिल्ली सरकार ने बढ़ते प्रदूषण की खतरनाक स्थिति से निपटने के लिए फिर से ऑड-ईवन फार्मूला लागू किया है। यह सोमवार यानी 4 नवम्बर से 15 नवम्बर तक रहेगा।


ऑड-ईवन : कितना कारगर होगा?

हालांकि इस दौरान दोपहिया चालकों, इलेक्ट्रिक वाहनों, आपात वाहनों और वीआईपी वाहनों सहित कुछ अन्य वाहनों को सम-विषम फार्मूले से छूट दी गई है। यह योजना का तीसरा संस्करण है। उम्मीद है कि इस फॉर्मूले के लागू होने के बाद प्रदूषण में कुछ कमी देखने को मिलेगी।
गौरतलब है कि दिल्ली-एनसीआर और आसपास के विभिन्न इलाकों में गैस चेंबर जैसी स्थिति बनी हुई है। यही वजह है कि दिल्ली में सेहत की चिंता में लोग या तो घरों में बंद हैं, या मास्क लगा कर एलियन बन कर घूम रहे हैं। बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। आपात कदम उठाते हुए निर्माण गतिविधियां रोक दी गई हैं, और बड़ी गाड़ियों का दिल्ली में प्रवेश बंद कर दिया गया है। हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि एक आकलन के मुताबिक, हर व्यक्ति 40 सिगरेट पीने जितना धुआं अपने फेफड़ों में भर रहा है। पहले कुछ लोग दिल्ली में प्रदूषण के लिए दिवाली पर आतिशबाजी को भी जिम्मेदार ठहराते थे, लेकिन इस बार पटाखों की बिक्री पर रोक के बावजूद दिल्ली की हवा जहरीली हो चुकी है। स्मॉग का सबसे ज्यादा प्रभाव दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। कहना न होगा कि अस्थमा की शिकायत वाले मरीजों के लिए ऐसे समय में बाहर निकलना किसी खतरे से कम नहीं है। दिल्ली की स्थिति इस कदर खराब हो चुकी है कि इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी में कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 के पार पहुंच गया है।

यह ठीक है कि इस स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने कई फैसले जरूर लिए हैं, लेकिन सचमुच में व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो सिर्फ  इस एक कदम से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि कुछ भी हो सम-विषम फॉर्मूला आपातकालीन योजना ही है, यह किसी भी तरह दीर्घकालीन समाधान नहीं है। दीर्घकालीन तभी निकलेगा जब हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारें भी इसमें शामिल होंगी और समूचे एनसीआर में औद्योगिक प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगेगी। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भले ही इस योजना को प्रदूषण की रोकथाम के लिहाज से बड़ा कदम मान रहे हों लेकिन विपक्ष को राज्य सरकार की आलोचना का मौका मिल गया है, और तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। केजरीवाल ने इससे पहले 2016 में ऑड-ईवन लागू किया था। उसके बाद 2017 और 2018 में वो इसे भूल गए। मगर अब चुनावों से ठीक पहले उनका इसे फिर से शुरू करना यह बता रहा है कि अगर आने वाले समय में दिल्ली की हवा साफ़ होती है, तो इसका सारा क्रेडिट केजरीवाल खुद लेंगे और इसे वोटों में तब्दील करेंगे। हालांकि इन सभी उपायों का एक ही मकसद है-वाहनों की संख्या कम करना और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
अहम सवाल यह है कि अगर समस्या का स्थायी इलाज ढूंढ़ना है तो भारत कई दूसरे देशों से भी सबक ले सकता है। दरअसल, कई अन्य देश भी प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। इन देशों में प्रदूषण से निपटने के कई तरीके अपनाए गए हैं, जिनसे उन्हें कुछ सफलता भी हासिल हुई है। मसलन, एक उदाहरण चीन का लिया जा सकता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले साल नवम्बर में यही स्थिति थी। तब भी अदालत के आदेश से निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई थी, बड़ी गाड़ियों पर भी पाबंदी लगा दी गई थी और सम-विषम नम्बर वाली गाड़ियों को अलग-अलग दिन चलाने का फैसला हुआ था। पर ये सिर्फ  तात्कालिक उपाय हैं। दरअसल, हवा को साफ-सुथरा बनाने का स्थायी उपाय नहीं किया जा रहा है। न तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति सुधारी जा रही है, न पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने से रोका जा रहा है, न प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को बंद किया जा रहा है, और न ही निजी गाड़ियों पर रोक लग रही है। ऐसा नहीं है कि इस मामले में अदालत गंभीर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी प्रदूषण को लेकर सक्रिय हो गया है। खैर, 21वीं सदी में जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की और बढ़े चले जा रहे हैं, हमारी यह बढ़त पर्यावरण संतुलन को समाप्त करती जा रही है। अनेकानेक उद्योग-धंधों, वाहनों व अन्यान्य मशीनी उपकरणों द्वारा हम हर घड़ी जल और वायु को प्रदूषित करते रहते हैं। वहीं, धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। यह सब खतरे की घंटी है। हकीकत तो यह है कि स्वच्छ वायु जीवन का आधार है, और वायु प्रदूषण जीवन के अस्तित्व के सम्मुख प्रश्न चिह्न लगा देता है। वायु जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ है। इसीलिए अति आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति वायु के प्रति जागरूक बना रहे और इस प्रकार वायु का शुमार जीवन की प्राथमिकताओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कायों में होना चाहिए लेकिन अफसोस की बात है कि हम चेत नहीं रहे हैं।    
प्रदूषण एक या दो साल में कम नहीं होगा। जिन देशों में भी प्रदूषण कम हुआ है, वहां की सरकारों ने इसके लिए लंबे वक्त तक और लगातार काम किया है, इस पर पैसे खर्च किए हैं। तब जाकर उन्हें सफलता मिली है। साल दर साल बीत जाने के बाद भी भारत में वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, कोई भी प्रदूषण से लड़ने के लिए गंभीर नहीं दिखता। दरअसल, वायु प्रदूषण ऐसा मुद्दा है जो पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। इसे आपसी सहमति और ईमानदार प्रयास के बिना हल नहीं किया जा सकता। वायु प्रदूषण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना नहीं है, बल्कि भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। वायु प्रदूषण संरक्षण सिर्फ भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से नहीं हो सकता, बल्कि हर इंसान को धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। तभी कुछ ठोस नजर आ सकेगा। वक्त कुछ करने का है, न कि सोचने का। यह भी सच है कि दिल्ली में अकेले सरकार के भरोसे बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाना कठिन है। इसके लिए लोगों को भी जागरूकता का परिचय देना होगा। भले ही राजधानी में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने फिर से ऑड-ईवन लागू करने का एक अहम फैसला किया है।

रविशंकर


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