मुद्दा : बढ़ते घाटे की चुनौती

Last Updated 06 Nov 2019 06:09:56 AM IST

हाल ही में प्रकाशित नवीनतम राजस्व आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही अप्रैल से सितम्बर, 2019 में बजट अनुमान के 92.6 फीसदी पर पहुंच गया है जबकि इस अवधि के दौरान राजस्व घाटा बजट अनुमान के 100 फीसदी पर पहुंच गया है।


मुद्दा : बढ़ते घाटे की चुनौती

स्पष्ट है कि राजकोषीय और राजस्व घाटे की हालत खराब नजर आ रही है। हाल ही में वैिक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां प्रमुखतया मूडिज, स्टेंर्डड एंड पुअर्स, फिच तथा इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड ने भारत की विकास दर के अनुमान को घटाया है। भारत के राजस्व घाटा तथा राजकोषीय घाटा में इजाफा होने के विश्लेषण प्रस्तुत किए हैं।
ऐसे में बढ़ते राजकोषीय घाटे से महंगाई और क्रेडिट रेटिंग में कमी जैसी नई चिंताएं अर्थव्यस्था के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगी। जहां एक ओर बढ़ता घाटा अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण बन गया है लेकिन दूसरी ओर देश में व्याप्त आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए कई अर्थ विशेषज्ञ राजकोषीय घाटा बढ़ने पर भी सरकार को चिंतित नहीं होने के सुझाव भी दे रहे हैं। हाल ही में इकोनॉमिक्स के लिए 2019 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार घट रही है और सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है। लेकिन भारत सरकार को चाहिए कि वित्तीय स्थायित्व की चिंता करने के बजाय अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने पर पूरी तरह ध्यान दे। इसी तरह इन दिनों देश और दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ टिप्पणी करते दिखाई दे रहे हैं कि भारत में आर्थिक सुस्ती का मुकाबला करने के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया जाना चाहिए इससे जहां उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ेगी वहीं उद्योग-कारोबार के लिए नई मांग निकलेगी। अर्थव्यवस्था में मंदी चक्रीय प्रकृति की होती है तो मंदी में ज्यादा खर्च करके अर्थव्यवस्था को गतिशीलता दी जा सकती है।

यद्यपि सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कर संग्रह में पिछले वर्ष की तुलना में 17.5 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा है, लेकिन यह प्राप्त होना मुश्किल है। कर संग्रह उम्मीद से कम रहने की वजह मांग में गिरावट और उद्योग-कारोबार को ऐतिहासिक राहत देना भी है। निश्चित रूप से वर्ष 2019-20 के बजट में विभिन्न वगरे की उम्मीदों को पूरा करने के लिए जो प्रावधान सुनिश्चित हुए हैं, उन पर व्यय तुलनात्मक रूप से अधिक होते हुए दिखाई दे रहे हैं। देश के उद्योग-कारोबार में सुस्ती के मद्देनजर जीएसटी संग्रह में भी कमी दिखाई दे रही है। अक्टूबर, 2019 में जीएसटी संग्रह घटकर 95,380 करोड़ रु पए रहा। पिछले साल अक्टूबर में जीएसटी संग्रह 1,00,710 करोड़ रु पए था। 
इतना ही नहीं देश में कर राजस्व में धीमी वृद्धि और कॉरपोरेट कर में कमी से केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी झटका लगा है। विगत 20 सितम्बर को सरकार द्वारा कॉरपोरेट टैक्स की दर में कमी से सकल कर राजस्व में 1.45 लाख करोड़ रु पये का घाटा होगा, जिसमें से 60,000 करोड़ रु पये का भार राज्य वहन करेंगे। 16 प्रमुख राज्य अपनी वित्तीय स्थिति बिगड़ने के कारण राजकोषीय संकट के कगार पर खड़े हैं। उन पर धीमी पड़ती राजस्व वृद्धि और हाल में कॉरपोरेट कर में कमी का दोहरा असर पड़ रहा है। ज्यादातर राज्यों को या तो अपने खर्च में कटौती करनी पड़ेगी या उनका राजकोषीय घाटा बढ़ेगा।
यदि राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के विभिन्न प्रयासों से भी राजकोषीय घाटा नियंत्रित न हो और राजकोषीय घाटा क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडिज के अनुमान के मुताबिक जीडीपी के 4 फीसदी तक बढ़ते हुए दिखाई दे तो सुस्ती के दौर से अर्थव्यवस्था को निकालने के लिए इस घाटे को चिंताजनक नहीं माना जाना चाहिए। वर्ष 2019 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के हाल ही में दिए इस मत को भी सरकार को ध्यान में रखना चाहिए कि सरकार वित्तीय स्थिरता पर ज्यादा चिंतित होने की बजाय अर्थव्यवस्था में नई मांग का निर्माण करे। सरकार द्वारा किसानों की आमदनी दुगनी करने, नवीकरणीय ऊर्जा तथा सस्ते आवास से संबंधित ढांचागत नीतियों पर तेजी से काम किया जाना होगा। राजकोषीय घाटे के आकार में कुछ वृद्धि उपयुक्त ही कही जा सकती है। इससे एक ओर आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी जिससे नई मांग का निर्माण होगा और उद्योग-कारोबार की गतिशीलता बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर बढ़े हुए सार्वजनिक व्यय और सार्वजनिक निवेश से बुनियादी ढांचे को मजबूती मिलेगी।

डॉ. जयंतीलाल भंडार


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