आईआईटी : रैंकिंग सुधार की जरूरत
मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने हाल ही में प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) को अपनी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार के लिए कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया है।
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इतना ही नहीं मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखिरयाल ‘निशंक’ ने आईआईटी परिषद की हालिया बैठक में रैंकिंग का भी मामला उठाया था।
एचआरडी मंत्रालय ने यह कदम हाल ही में ग्लोबल रैंकिंग 2020 जारी होने के बाद उठाया है, जिसमें शीर्ष 300 की सूची में भारत का एक भी विश्वविद्यालय जगह नहीं बना पाया। पठन-पाठन और शिक्षा-दीक्षा के मामले में विश्व गुरु रहे भारत के लिए यह देखना काफी निराशाजनक है कि इस साल देश का एक भी शिक्षण संस्थान दुनिया के शीर्ष 300 की सूची में अपना स्थान नहीं बना पाया। निश्चित रूप से यह चिंता की बात है। अब स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एचआरडी मंत्रालय सक्रिय हुआ है। अपनी असफलता को छुपाने के लिए हम इस सूची के चयन प्रक्रिया के तौर-तरीके सहित इस पर अन्य तरह के कई सवाल भी उठा सकते हैं। इतना ही नहीं इस पर काफी कुछ कह-सुन सकते हैं और बता सकते हैं कि 2018 में जहां देश के 49 संस्थानों को रैंकिंग में जगह मिली थी वहीं इस साल 56 को जगह मिली है और इस तरह से इस सूची में इस साल भारत के ज्यादा संस्थानों ने जगह बनाई है। फिर हम अपनी पीठ भी थपथपा सकते हैं परंतु हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश के शीर्ष माने जाने वाले शिक्षण संस्थानों की हालत भी बहुत खस्ताहाल है।
2012 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत का कोई भी विश्वविद्यालय इस सूची में स्थान बनाने में विफल रहा है। जब देश के बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान दुनिया के शीर्ष 300 में स्थान नहीं बना पाते हैं तो सामान्य और छोटे-छोटे संस्थानों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। हमारे देश के सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। शिक्षा व्यवस्था को लेकर भले बड़े-बड़े दावे किए जाएं और मन में ‘ऑल इज वेल’ का मुगालता पाल लिया जाए, मगर जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। आज भी हमारे देश के गांव-कस्बों की बात कौन कहे, शहरों के स्कूलों में भी पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं मिलते हैं और छात्रों और शिक्षकों का अनुपात काफी बिगड़ा रहता है। वहां बुनियादी सुविधा तक उपलब्ध नहीं होता है। इसके अलावा बच्चों को पढ़ाने के अलावा शिक्षकों के कंधों पर कई सारे अन्य काम भी लदे होते हैं और उन्हें इस दायित्व का भी निर्वहन करना पड़ता है। कालेजों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है और वहां की हालत भी काफी दयनीय है। एचआरडी मंत्रालय से आईआईटी को निर्देश मिलने के बाद ऐसा लगता है कि सरकार देश के शिक्षण संस्थानों को विश्व स्तर का बनाने के लिए गंभीर और कृत संकल्पित है। एचआरडी मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा भी है कि ‘इस मामले पर परिषद की बैठक में चर्चा की गई। अनुसंधान की उत्कृष्टता पर काम करना महत्त्वपूर्ण है। आईआईटी संस्थानों से अपनी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग सुधारने की दिशा में काम करने को कहा गया है। इसके लिए, हर आईआईटी एक कार्य योजना लेकर आएगा।’ इतना ही नहीं एचआरडी मंत्रालय ने अधिकारियों के साथ भी समीक्षा बैठक की थी ताकि यह पता लगाया जा सके कि जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय जैसे कई प्रतिष्ठित भारतीय विश्वविद्यालयों के शीर्ष रैंकिंग में शामिल नहीं हो पाने का कारण क्या है।
ऐसी स्थिति में जब तेजी से बढ़ती युवा आबादी, अर्थव्यवस्था और अंग्रेजी भाषा के निर्देश माध्यम के तौर पर इस्तेमाल के कारण वैश्विक उच्चतर शिक्षा में भारत की काफी संभावनाएं हैं, तब इस सर्वेक्षण के अनुसार देश के सबसे प्रतिष्ठित भारतीय संस्थान आईआईटी और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) शीर्ष 100 की सूची में भी जगह नहीं बना पाए तो समझना चाहिए कि अब इस दिशा में गंभीरता से काम करने का समय आ गया है। हमें ऑक्सफोर्ड यूनिर्वसटिी और एमआईटी की ओर देखना होगा जो शीर्ष पदों पर काबिज हैं और ये संस्थान हमेशा सूची में अव्वल ही आते रहते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ऐसा क्यों है कि ऑक्सफोर्ड और एमआईटी जैसे संस्थान शीर्ष पायदान पर काबिज रहे और हमारे शिक्षण संस्थान शीर्ष 300 की सूची में भी अपना स्थान नहीं बना पाए। निश्चित रूप से इसका जवाब ढूंढा जाना चाहिए और मिले जवाब की दिशा में मजबूती और दृढ़ता के साथ काम करना चाहिए। एचआरडी मंत्रालय के निर्देश पर आईआईटी से मिलने वाले कार्य योजना पर अगर सही तरीके से काम किया जाए तो वह दिन दूर नहीं रहेगा जब भारत के शिक्षण संस्थान भी शीर्ष पायदन पर नजर आएगा।
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