स्मरण : अनूठे संसदीय महारथी

Last Updated 26 Aug 2019 06:47:57 AM IST

भाजपा के दिग्गज नेता, विख्यात संसदविद् और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का जिस उम्र में निधन हुआ है, उस उम्र के तमाम राजनेता विभिन्न दलों में हैं, लेकिन शायद ही कोई अरु ण जेटली जैसा हो।


स्मरण : अनूठे संसदीय महारथी

वे कोई राजनीतिक विरासत लेकर नहीं आए थे बल्कि अपनी योग्यता, क्षमता और प्रतिभा से अपनी जगह खुद बनाते हुए अपने दमखम पर देश के सबसे कद्दावर नेताओं की पंक्ति में खड़े हुए। शायद यही वजह है कि 66 साल की उम्र में उनका जाना सत्ता पक्ष या विपक्ष ही नहीं आम जन को भी बहुत अखरा है। अपने कामकाज से जेटली ने जितनी लंबी लकीर खींची है, वहां तक पहुंच पाना सहज नहीं है। यह उनकी प्रतिभा ही थी कि वे अटलजी, अडवाणीजी ही नहीं नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की भी पसंद बने रहे और संकट के दौर में सारे अहम दायित्व उन्होंने संभाले। संसद हो या संसद के बाहर अरुण जेटली को जो दायित्व मिला उसमें वे खरे उतरे।
अरुण जेटली के साथ मेरी जान-पहचान 1989-90 के दिनों में बनी थी, जब दिल्ली में वीपी सिंह के नेतृत्व में साझा सरकार को भाजपा भी समर्थन दे रही थी। तब से एक पत्रकार के तौर पर उनकी संसद की भूमिका को करीब से देखता रहा हूं और उस दृश्य का भी गवाह रहा जब उनको सर्वोत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार मिला। वे संसद में कुछ भी बोलने के पहले वैसे ही तैयारी करते थे जैसे किसी केस के लड़ने के दौरान। चर्चा में हस्तक्षेप भी पूरी तैयारी से करते थे। भारतीय राजनीति में वे उन चंद नेताओं में शुमार हैं, जो लगातार पढ़ने-लिखने के साथ लोगों से संवाद बनाए रखते थे। राष्ट्रीय स्तर की पहचान तो वे अपने राजनीति के शैशवकाल में ही बना चुके थे। दिल्ली विविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बनना उस दौर में राष्ट्रीय क्षितिज पर आने के लिए काफी होता था। लेकिन जेटली जब छात्र या छात्र नेता रहे तो बेहतरीन विद्यार्थी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा रही। जितने वे पढ़ाकू रहे उतने ही बेहतरीन वक्ता।

छात्रों में अपनी लोकप्रियता की बदौलत ही जेटली ने उस दौर में चुनाव जीता जब इंदिरा गांधी की जयकारा का दौर था। लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने उनकी योग्यता और सक्षमता देखते हुए ही छात्र और युवा संगठनों की राष्ट्रीय समिति का संयोजक बनाया। जेटलीजी जैसे नौजवान आपातकाल के दौरान 19 महीने तक मीसा में तिहाड़ जेल में बंद हुए तो उसी सेल में अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और केआर मलकानी जैसे दिग्गज कैदी भी थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो अरुण जेटली ने वकालत पर अपने को केंद्रित किया। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में आरंभिक दौर में ही उन्होंने राष्ट्रीय ख्याति हासिल की। 1989 में वे वरिष्ठ एडवोकेट बने। उनके पास न्यायिक क्षेत्र में ऊंचाइयों पर जाने के बहुत मौके थे मगर राजनीति उनको अपनी ओर खींच रही थी। 1989 में वे सबसे कम उम्र में अपर महान्यायवादी बने। भाजपा संगठन में 1991 के बाद अरु ण जेटली अपनी योग्यता और सक्षमता के कारण लगातार अपनी हैसियत बरकरार रखने में सफल रहे। कानून के गहरे जानकार होने के साथ जेटली ने संसद के दोनों सदनों में अपने कामकाज से गहरी छाप छोड़ी।
वे चार बार उच्च सदन के सदस्य बने और अभी भी उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के सदस्य थे। लेकिन उच्च सदन में नेता सदन, नेता विपक्ष और तमाम भूमिकाओं में रहते हुए उन्होंने अपने शानदार कामकाज और बेहतरीन सारगíभत भाषणों से पूरे देश को प्रभावित किया। भारत सरकार के मंत्री और खास तौर पर वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने बहुत से अहम फैसलों को अंजाम दिया और संसद में भी वे जितनी तैयारी से आते थे बाकी मंत्री वैसी तैयारी से नहीं दिखे। कठिन से कठिन सवाल में भी किसी ने उनको कभी फंसते नहीं देखा। उनको भारतीय राजनीति, अर्थनीति, न्यायिक पक्ष और बहुत से क्षेत्रों पर गहरी समझ थी और वैश्विक समझ ने भी उनकी राजनीतिक काया का विस्तार किया। संसदीय गरिमा को बढ़ाने के लिए अपने योगदान के लिए जेटलीजी हमेशा याद रखे जाएंगे। सभी दलों के नेताओं के साथ उनके गहरे रिश्ते थे और वे उनका काफी सम्मान करते थे। वे संसद में सर्वसुलभ नेताओं में थे और पत्रकारों के लिए भी सेंट्रल हाल में सबसे व्यस्त दौर में भी सुलभ रहते थे। कठिन से कठिन दौर में भी वे संयम नहीं खोते थे।
सरकार में सबसे पहले उनको 1999 के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दायित्व मिला। बाद में नवगठित विनिवेश मंत्रालय का दायित्व भी उनको सौंपा गया। कुछ समय बाद ही वे विधि, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री बने। इसके बाद जहाजरानी मंत्री का दायित्व भी उनके पास रहा। उस दौरान देश की पहली अंतरदेशीय जल परिवहन नीति बनाने में उनका अहम योगदान रहा। वे पहले नेता थे, जिन्होंने इस बात को सोचा कि केवल रेलवे और सड़कों को फोकस करने से काम नहीं चलेगा बल्कि परिवहन के समन्वित विकास पर जोर देना होगा। वे हमेशा तैयारी के साथ अपनी बात रखते थे। यूपीए शासन के दौरान संसद के 60 साल और जस्टिस सौमित्र सेन पर चले महाभियोग के दौरान जेटली के भाषण को सबने सराहा। लोकपाल और लोकायुक्त संबंधी सलेक्ट कमेटी में भी उनका काफी बड़ा योगदान रहा। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी तो जेटली को पहले रक्षा मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया। लेकिन सारे समीकरणों और आर्थिक सुधारों की चुनौतियों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने उनको वित्त मंत्री का दायित्व सौंपा जो उन्होंने बहुत सजगता के साथ संभाला। उनके ही नेतृत्व में रेल बजट का भी आम बजट में विलय होने के साथ कई तरह के सुधारों का सूत्रपात हुआ और सब दलों को भरोसे में लेकर जीएसटी को भी साकार किया गया।
जेटली की कद काठी का ही असर था कि वे जब 9 अगस्त को एम्स में भरती हुए तो उनको देखने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही नहीं सभी दलों के नेता पहुंचे। न्यायिक क्षेत्र के तमाम लोग भी और भाजपा संगठन के आम कार्यकर्ता भी। उनके निधन की खबर के बाद पूरे देश में शोक जताया गया। उपराष्ट्रपति चेन्नई के अपने सरकारी आयोजन को छोड़कर दिल्ली आ गए। जेटली केवल राजनीति या न्यायिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहे। खेलों की दुनिया और खास तौर पर क्रिकेट में भी उनकी रूचि थी। लंबे समय तक डीडीसीए के अध्यक्ष के रूप में स्टेडियम को बेहतर बनाने और खिलाड़ियों को सुविधाएं देने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। सामाजिक सरोकारों में भी वे आगे रहे। इन सब कारणों से उन्होंने जितनी लंबी लकीर खींची वहां तक पहुंच पाना किसी राजनेता के लिए सरल नहीं है।

अरविंद कुमार सिंह


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