कापरेरेट : सामाजिक उत्तरदायित्व का परिदृश्य

Last Updated 26 Aug 2019 06:46:23 AM IST

हाल ही में सरकार ने जिस कंपनी (संशोधन) विधेयक-2019 को पारित किया है उसके तहत उन कंपनियों पर जुर्माना लगाने के प्रावधान भी शामिल हैं, जो कापरेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व यानी कापरेरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के लिए अनिवार्य दो फीसद का खर्च नहीं करती हैं।


कापरेरेट : सामाजिक उत्तरदायित्व का परिदृश्य

नये संशोधनों से कंपनियों की सीएसआर गतिविधियों में जवाबदेही तय करने में आसानी होगी। कंपनी अधिनियम की धारा 135 के नये सीएसआर मानकों के मुताबिक यदि कोई कंपनी अपने मुनाफे का निर्धारित हिस्सा निर्धारित सामाजिक गतिविधियों पर खर्च नहीं कर पाए तो जो धनराशि खर्च नहीं हो सकी उसे कंपनी से संबद्ध बैंक में सोशल रिस्पांसिबिलिटी अकाउंट में जमा किया जाना होगा।
कंपनियों की सीएसआर का बगैर खर्च किया हुआ धन स्वच्छ भारत कोष, क्लीन गंगा फंड और प्रधानमंत्री राहत कोष जैसी मदों में डालना होगा। गौरतलब है कि 500 करोड़ रु पये या इससे ज्यादा नेटवर्थ या पांच करोड़ रु पये या इससे ज्यादा मुनाफे वाली कंपनियों को पिछले तीन साल के अपने औसत मुनाफे का दो प्रतिशत हिस्सा हर साल सीएसआर के तहत उन निर्धारित गतिविधियों में खर्च करना होता है, जो समाज के पिछड़े या वंचित लोगों के कल्याण के लिए जरूरी हों। इनमें भूख, गरीबी और कुपोषण पर नियंत्रण, शिक्षा को बढ़ावा, पर्यावरण संरक्षण, खेलकूद प्रोत्साहन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, तंग बस्तियों के विकास आदि पर खर्च करना होता है, लेकिन विभिन्न अध्ययन रिपोटरे में पाया गया कि बड़ी संख्या में कंपनियां सीएसआर के उद्देश्य के अनुरूप खर्च नहीं करती हैं। वे सीएसआर के नाम पर मननाने तरीके से खर्चे कर रही हैं।

कई कंपनियां अपने सीएसआर फंड्स का इस्तेमाल ग्रुप से जुड़े ट्रस्ट पर कर रही हैं। स्थिति यह है कि एसएंडपी बीएसई 100 सूची में शामिल कंपनियों में से कोई एक तिहाई कंपनियों ने सीएसआर गतिविधियों पर तय सीमा से कम खर्च किया है। जहां भारतीय कंपनियों ने 2017-18 में सीएसआर गतिविधियों पर 7,536.3 करोड़ रु पये खर्च किए, वहीं इसी वर्ष कुछ कंपनियों द्वारा सीएसआर के लिए निर्धारित 989 करोड़ रु पये की राशि खर्च नहीं की गई। ऐसे में अभी तक जो कंपनियां सीएसआर को रस्मअदायगी मानकर उसके नाम पर कुछ भी कर देती थीं, उनके लिए अब मुश्किल हो सकती है। सीएसआर के मोर्चे पर सरकार सख्ती करने जा रही है। अब कंपनियां केवल यह कहकर नहीं बच पाएंगी कि उन्होंने सीएसआर पर पर्याप्त रकम खर्च की है। अब उन्हें बताना पड़ेगा कि खर्च किस काम में किया गया?  उसका नतीजा क्या निकला और समाज पर उसका कोई सकारात्मक असर पड़ा या नहीं? यह बताना होगा कि क्या यह खर्च कंपनी से जुड़े किसी संगठन पर हो रहा है। अब सरकार के द्वारा कंपनियों के सीएसआर के बारे में नये नियमों को ध्यान में रखना होगा। इन नियमों के तहत सीएसआर खर्च के तहत निचले स्तर पर शामिल कंपनियों के लिए खुलासे की न्यूनतम बाध्यता होगी, खर्च की रकम बढ़ने के साथ-साथ अधिक से अधिक जानकारी देनी होगी। अब सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत सीएसआर की विभिन्न मान्य गतिविधियों पर ही खर्च सुनिश्चित करना होगा। निश्चित रूप से जैसे-जैसे देश में कापरेरेट जगत छलांगे लगाकर आगे बढ़ रहा है; वैसे-वैसे उसका सामाजिक उत्तरदायित्व भी बढ़ रहा है। देश में कापरेरेट जगत के सामाजिक उत्तरदायित्व की नई जरूरतें उभरकर सामने आई हैं। ज्ञातव्य है कि सीएसआर किसी तरह का दान नहीं है। दरअसल, यह सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ कारोबार करने की व्यवस्था है।
कापरेरेट जगत की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय समुदाय और समाज के विभिन्न वगरे के बेहतर जीवन के लिए सकारात्मक भूमिका निभाए। खासतौर से आम आदमी के बेहतर जीवन स्तर, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और नई पीढ़ी को मानव संसाधन बनाने से संबंधित कदम सबसे ज्यादा जरूरी दिखाई दे रहे हैं। वस्तुत: देश की नई पीढ़ी को प्रतिभा सम्पन्न बनाकर पेशेवर के रूप में तैयार करना देश की प्रमुख आर्थिक-सामाजिक जरूरत है। कापरेरेट जगत के द्वारा युवाओं को मानव संसाधन बनाने के लिए वित्तीय सहयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अधिक से अधिक प्रयासों की जरूरत अनुभव की जा रही है। आशा करें कि ऐसे समय में जब देश में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है तब समाज के जरूरतमंद लोगों के जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने और उन्हें आर्थिक-सामाजिक एवं शैक्षणिक सहारा देने के लिए कापरेरेट क्षेत्र अधिक जवाबदेह भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ेगा।

जयंतीलाल भंडारी


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