बतंगड़ बेतुक : डरती, सहमती हांफती-कांपती सच्चाई
‘तो बता, तेरे पर आरोप है कि तूने चोरी की है।’
बतंगड़ बेतुक : डरती, सहमती हांफती-कांपती सच्चाई |
‘क्या बात करते हो हुजूर, हम और चोरी! राम राम। वो तो पुलिस ने चक्कर चला दिया, हमें झूठा फंसा दिया, हमें चोर बना दिया। सच्चाई यह है कि हम चोर नहीं हैं। यह हमारे नाते-रिश्तेदारों से पूछ लीजिए, यार-दोस्तों से पूछ लीजिए, नहीं तो हमारे वकील से पूछ लीजिए..सच्चाई हमारे साथ थी, हमारे साथ है और हमारे साथ रहेगी।’
‘अच्छा तू बता, तेरे ऊपर पर हत्या का आरोप है।’
‘कान को हाथ लगाओ हुजूर, हम हत्या क्यों करेंगे? वो तो थानेदार को खुन्नस थी। सो, न जाने किसके हाथों किसको मरवा दिया और इल्जाम हम पर लगवा दिया। हमारे घरवालों से पूछ लीजिए, जान-पहचानवालों से पूछ लीजिए, हमारे वकील से पूछ लीजिए..सच्चाई हमारे साथ थी, सच्चाई हमारे साथ है और हमारे साथ रहेगी।
‘अच्छा बता, तेरे पर आरोप है कि तूने बलात्कार किया है।’
‘ना-ना साब, अपुन ऐसा काम नहीं कर सकते, आप अपुन पर झूठा इल्जाम नहीं धर सकते। अपुन के ऊपर ये तो इल्जाम लगाया गया है एकदम बदले की भावना से लगाया गया है, अपुन को साजिशन फंसाया गया है। भरोसा न हो तो हमारे मां-बाप से पूछ लीजिए, हमारे अड़ोसी-पड़ोसी से पूछ लीजिए, हमारे वकील से पूछ लीजिए..सच्चाई अपुन के साथ थी, अपुन के साथ है, अपुन के साथ रहेगी।’
‘तुम पर इल्जाम है कि तुमने अफसर कर्म में कोताही की, भाई-भतीजों को लाभ पहुंचाया, घूसखोरी से टनों पैसा बनाया।’
‘जी नहीं सर, मेरी सारी कमाई जायज कमाई है, हमने अपनी सारी संपत्ति कड़ी मेहनत से बनायी है। इल्जामों का क्या है जिन लोगों के काम नहीं हो पाते हैं वे नाराज हो जाते हैं, झूठे-सच्चे इल्जाम लगाते हैं, हमें बदनाम करने में भिड़ जाते हैं। आप हमारे गवाहों से पूछ लीजिए, जिनके काम किये हैं उन महानुभावों से पूछ लीजिए, हमारी बीवी महोदया से पूछ लीजिए, हमारे कानून सेवी वकील महोदय से पूछ लीजिए। सच्चाई हमारे साथ थी, हमारे साथ है, हमारे साथ रहेगी।’
‘तुम व्यापारी हो, तुम्हारे पर आरोप है कि तुमने कर चोरी की, तमाम बैंकों का रुपया हड़प लिया, सरकारी अधिकारियों को घूस दी और अरबों का धन इधर से उधर कर दिया।’
‘जी नहीं श्रीमन, हम इन आरोपों का सिरे से खंडन करते हैं और अपने कार्य-व्यापार का पूरा समर्थन करते हैं। सरकारी एजेंसियां जबर्दस्ती हमारे पीछे पड़ी हुई हैं, हमें नष्ट करने पर तुली हुई हैं। हम सरकार से लेकर न्यायपालिका तक हर दरवाजा खटखटाएंगे और स्वयं को इस खुले अन्याय से बचाएंगे। हमारे विरुद्ध सारे इल्जाम जबरन बनाए गये हैं, लगते नहीं थे फिर भी लगाये गये हैं। आप हमारे व्यापारी साथियों से पूछ लीजिए, साथियों के साथियों से पूछ लीजिए, हमारा साथ देने वाले अधिकारियों से पूछ लीजिए, विद्वान वकीलों से पूछ लीजिए, उनकी जोरदार दलीलों से पूछ लीजिए। सच्चाई हमारे साथ थी, हमारे साथ है, हमारे साथ रहेगी।’
‘अब आप बताइए, आप पर आरोप है कि जब आपकी सरकार थी, सरकार में आप ताकतवर मंत्रालय संभाल रहे थे, कानून प्रवर्तक अभिकरण आपके अधीन चल रहे थे तब आप भ्रष्टाचार करा रहे थे, अपने पुत्र को लाभ पहुंचा रहे थे, देशी पैसे की घूस का भुगतान विदेश में करा रहे थे।’
‘हम कैसे इनकार कर सकते हैं कि देश में कभी हमारी सरकार थी, सरकार में हम बड़े मंत्री थे और तब हमारे बेटे अपनी कंपनी चला रहे थे, अपना कारोबार बढ़ा रहे थे। इसमें गलत क्या है यह बताइए, कुछ गलत है तो हमें समझाइए। रही आरोप की बात तो भ्रष्टाचार का आरोप भ्रष्टाचार के कारण नहीं लगाया गया है बल्कि हमसे राजनीतिक बदला लेने के लिए लगाया गया है। हम हर मंच से सरकार की गलतियां गिना रहे थे, सरकार की असफलताएं जनता को बता रहे थे, सरकार के गलत इरादों पर उंगलियां उठा रहे थे, सरकार देश के लिए क्या खतरे पैदा कर रही है यह जनता को दिखा रहे थे। इससे सरकार परेशान हो रही थी, उसकी किरकिरी हो रही थी इसलिए उसने सीबीआई और ईडी को हमारे पीछे लगा दिया, कोई आरोप सिद्ध न होने पर भी हमें आरोपित बना दिया। हमारा परिवार हमें सही मानता है, हमारे सहचर-अनुचर हमें सही मानते हैं, हमारी पार्टी हमें सही मानती है। याद रखिए, सच्चाई हमारे साथ थी, हमारे साथ है, हमारे साथ रहेगी।’
‘अच्छा जब आप सरकार में थे तब आपने भी किसी पर अपराध का आरोप लगाया था, ईडी और सीबीआई को उसके पीछे दौड़ाया था तब सच्चाई किसके साथ थी?’
‘सच्चाई तब भी हमारे साथ थी, सच्चाई आज भी हमारे साथ है, सच्चाई कल भी हमारे साथ रहेगी।’
उधर हारी-थकी, लुटी-पिटी, डरी-सहमी, घबराई-बौखलाई सच्चाई अपने नुचे-फटे कपड़े थामती-संभालती बदहवास सी इधर-उधर भाग रही थी कि पता नहीं कब कौन किधर से उस पर झपट पड़े, अपनी दावेदारी दोहरा दे, उसके रहे-बचे कपड़े नोंच डाले, उसे सरेआम नंगा कर दे और उसके साथ एक बार फिर बलात्कार कर डाले।
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