जीएसटी : खामियां दूर करना जरूरी

Last Updated 13 Aug 2019 12:28:06 AM IST

इन दिनों देश-दुनिया के अर्थवेत्ता यह कहते हुए दिख जाएंगे कि भारत में वर्ष 2018 से जो आर्थिक सुस्ती का दौर चल रहा है, उसे बदलने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को सरल और प्रभावी बनाया जाना जरूरी है।




जीएसटी : खामियां दूर करना जरूरी

यह भी जरूरी है कि जीएसटी परिषद जीएसटी दरों में उपयुक्त कटौती के साथ जीएसटी संबंधी व्यवस्था सुधार के लिए तेजी से काम करे।
हाल ही में 30 जुलाई को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने संसद में 2017-18 के लिए जीएसटी पर पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि जीएसटी संबंधी खामियों के कारण पहले साल के दौरान  कर संग्रह सुस्त रहा। गौरतलब है कि सीएजी की तरह देश और दुनिया में जीएसटी के दो वर्ष पूर्ण होने पर जीएसटी पर लगातार विभिन्न रिपोर्टे प्रस्तुत हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी रिपोर्ट 2018 में कहा है कि यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था में जीएसटी दूरगामी आर्थिक सुधार है। जहां अब इस आर्थिक सुधार से संबंधित प्रारम्भिक मुश्किलें कम होने लगी हैं।


उल्लेखनीय है कि एक देश, एक कर का लक्ष्य रखकर एक जुलाई, 2017 को देश का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर जीएसटी लागू किया गया। उससे पहले तक 17 तरह के अप्रत्यक्ष कर लागू थे।  पारंपरिक रूप से एक्साइज ड्यूटी और कस्टम ड्यूटी अप्रत्यक्ष कर राजस्व का प्रमुख भाग रहे हैं। इसके अलावा, सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, कमर्शियल टैक्स, सेनवैट और स्टेट वैट ऑक्ट्राय, एंट्री टैक्स भी महत्त्वपूर्ण रहे हैं। जीएसटी के तहत माल एवं सेवाओं के लिए चार स्लैब बनाए गए हैं। ये हैं-5,12,18 और 28 फीसद के स्लैब। लेकिन सरकार ने जीएसटी के जिस ढांचे को अंगीकृत किया है, वह मूल रूप से सोचे गए जीएसटी के ढांचे से काफी अलग है। इसमें दो मत नहीं कि जीएसटी लागू होने के बाद विक्रेताओं को टैक्स अंतर का लाभ उपभोक्ताओं को देने से शुद्ध राजस्व में मिलने वाले लाभ के महत्त्व का एहसास हुआ है। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं की ढुलाई सुगम हुई और टैक्स भी एक समान हुए।

राज्यस्तरीय करों के खत्म होने पर टैक्स संबंधी तमाम बाधाएं, सीमा प्रतिबंध, ढुलाई में देरी और ऐसी ही दूसरी रुकावटें अब कम हो गई हैं। इसमें कोई दोमत नहीं है कि जीएसटी परिषद का लगातार प्रयास रहा है कि एक ओर करदाताओं की कठिनाइयों का समाधान हो सके तो दूसरी ओर कर चोरी पर प्रभावी रोक लगाई जा सके। पिछले दो वर्षो में जीएसटी में कुल 1.35 करोड़ असेसी पंजीकृत हैं जिसमें से 17.74 लाख असेसी कंपोजिशन स्कीम में हैं। जीएसटी परिषद ने अब तक 1000 से अधिक संशोधन करके जीएसटी को प्रभावी बनाने की कोशिश की है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों में एक अक्टूबर, 2019 से शुरू होने वाला नया रिटर्न सिस्टम एक महत्त्वपूर्ण सुधार साबित होगा।जीएसटी की सफलता से संबंधित अंतरराष्ट्रीय अनुभव रहा है कि किसी भी देश में जीएसटी को व्यवस्थित होने में दो से पांच वर्ष का समय लगता है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत में जीएसटी के प्रदर्शन को संतोषप्रद कहा जा सकता है। हालांकि कर संग्रहण के आंकड़े उत्साहजनक नहीं लग रहे हैं, लेकिन इसका कारण है कि जीएसटी के लिए राजस्व के अति महत्त्वाकांक्षी मानक तय किए गए। जीएसटी में समाहित करों से 2015-16 के राजस्व को आधार बनाते हुए प्रति वर्ष 14 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया गया। उपयुक्त जीएसटी संग्रह न होने की स्थिति का कारण वास्तविक राजस्व से नहीं है, अपितु यह कमी पूर्व निर्धारित मानक से है।

निस्संदेह जीएसटी में सुधार के लिए सरकार को काफी प्रयास करने होंगे। जीएसटी परिषद द्वारा जहां पर्याप्त सतर्कता, सावधानी रखी जानी जरूरी होगी, वहीं उद्योग-कारोबार के साथ संवाद अपरिहार्य होगा। रियल एस्टेट एवं पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में शामिल किया जाना जरूरी होगा। ध्यान रखना होगा कि जीएसटी एक बार राजस्व निरपेक्ष हो जाए तो इसे और अधिक तार्किक बनाया जाना होगा। तार्किक बनाने से तात्पर्य है कर दरों की संख्या तथा उनके दायरे में कमी। जीएसटी की 12 और 18 फीसद की दरों को एक साथ मिलाया भी जा सकता है। यह मिशण्रकुछ इस तरह किया जा सकता है कि महंगाई न बढ़े। आशा करें कि देश में आर्थिक सुस्ती के मौजूद दौर में सरकार 30 जुलाई को संसद में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट में बताई गई खामियों को दूर करके जीएसटी को और अधिक सरल एवं प्रभावी बनाएगी जिससे अर्थव्यवस्था गतिशील होगी। ऐसा होने पर 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर वाली भारतीय अर्थव्यवस्था का जो चमकीला सपना सामने रखा गया है, उसे साकार करने की दिशा में हम तेजी से बढ़ सकते हैं।

जयंतीलाल भंडारी


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