कुलभूषण जाधव : अगली कोशिश रिहाई

Last Updated 19 Jul 2019 04:38:52 AM IST

पाकिस्तान के सैन्य न्यायालय द्वारा भारतीय नागरिक कुलभूषण सुधीर जाधव को दिए गए मृत्युदंड की सजा के क्रियान्वयन पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रमुख न्यायिक संस्थान, जिसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या विश्व न्यायालय भी कहा जाता है, ने पूर्व में लगायी रोक को आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान को उस निर्णय पर प्रभावी पुनर्विचार करने को कहा है।


कुलभूषण जाधव : अगली कोशिश रिहाई

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इस फैसले ने कुलभूषण जाधव को न केवल संजीवनी प्रदान की है बल्कि उनकी वतन वापसी की क्षीण होती संभावनाओं को आशा की एक मामूली किरण भी दिखाई है।
गौरतलब है कि 3 मार्च 2016 को पाकिस्तान ने जाधव को तथाकथित रूप से गिरफ्तार किया था और लगभग तीन हफ्ते बाद इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग को इस बाबत जानकारी दी थी। भारत ने पाकिस्तान से अपने उच्चायोग के अधिकारियों को जाधव से मिलने की इजाजत देने की गुजारिश की थी। इस तरह की गुजारिश को कूटनीतिक शब्दावली में ‘कंसुलर ऐक्सेस’ कहा जाता है। अब तक भारत दस से अधिक बार कंसुलर ऐक्सेस देने का अनुरोध कर चुका है, जिसे पाकिस्तान ने कभी स्वीकार नहीं किया। इस बीच पाकिस्तान ने जाधव के खिलाफ विभिन्न मामलों के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करके उसके ऊपर पाकिस्तान की सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया। इन मामलों में प्रमुख रूप से एक फर्जी भारतीय पासपोर्ट के साथ पाकिस्तानी सीमा में अवैध घुसपैठ, जासूसी, विध्वंसक और विभिन्न आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता शामिल है। फील्ड जनरल कोर्ट माशर्ल की अदालत में हुई मुकदमे की सुनवाई मुख्यत: पाकिस्तान आर्मी एक्ट 1952 की धारा 59 और ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट 1923 की धारा 3 के अंतर्गत संपन्न हुई, जिसमें जाधव को तथाकथित रूप से दोषी पाया गया और मृत्युदंड की सजा सुनाई गई।

इस सजा के निलंबन के लिए जाधव द्वारा मिलिटरी अपीलेट कोर्ट को पाकिस्तान आर्मी एक्ट 1952 की धारा 133 (बी) के अंतर्गत दी गई मर्सी पिटिशन को भी 22 जून 201। को भी अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद जाधव ने पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख के समक्ष अपना मर्सी पिटिशन दाखिल किया, जिस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। गौरतलब है कि कंसुलर ऐक्सेस के लिए भारत के विभिन्न अनुरोधों पर पाकिस्तान के द्वारा कोई सकारात्मक कदम न उठाने पर भारत ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष रखने का फैसला किया और 8 मई 2017 को आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के विरुद्ध वियना कन्वेंशन के अंतर्गत कंसुलर ऐक्सेस न देने के लिए मुकदमा चलाने को प्रार्थनापत्र दिया। इस प्रार्थनापत्र का संज्ञान लेते हुए 18 मई 2017 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अस्थाई आदेश जारी करते हुए जाधव को मृत्युदंड दिए जाने पर रोक लगा दी। भारतीय पक्षकारों ने अपनी दलील के माध्यम से न्यायालय से अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को वियना कन्वेंशन की धारा 36 का अनुपालन न करने का दोषी मानते हुए जाधव को सैन्य अदालत द्वारा दिए गए दंड को अंतरराष्ट्रीय कानून और वियना कन्वेंशन का उल्लंघन करने वाला घोषित करे।
भारतीय पक्षकारों ने यह भी अनुरोध किया कि सैन्य अदालत के फैसले को रद्द करते हुए पाकिस्तान को यह निर्देश दिया जाए कि वह जाधव को रिहा करके उसे भारत सुरक्षित पहुंचने में सहयोग करे। यदि न्यायालय जाधव को रिहा करने का आदेश न जारी करे तो विकल्प के रूप में सैन्य अदालत के फैसले को रद्द करते हुए उसके अमल पर रोक लगाए और पाकिस्तान में सिविल न्यायालय में सामान्य कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए निर्देश दे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि यह मुकदमा अंतरराष्ट्रीय संविदाओं और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अनुरूप हो और भारत को जाधव को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने की अनुमति हो। कुल 42 पृष्ठ का यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय मामलों के निपटारे के लिए लिये गए सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों में एक है। क्लिष्ट न्यायिक शब्दावली के कम प्रयोग ने इसे आम लोगों की पहुंच में ला दिया है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनाने के बाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान को वियना कन्वेंशन की धारा 36 के उल्लंघन का दोषी माना और स्पष्ट किया कि पाकिस्तान का यह दायित्व है कि वह धारा 36 का अनुपालन करते हुए बिना किसी देरी के जाधव को उनके अधिकारों से अवगत कराए और भारत को कंसुलर ऐक्सेस प्रदान करे ताकि उसके अधिकारी जाधव को जरूरी कानूनी सहायता उपलब्ध करा सकें।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने सीमित अधिकार क्षेत्र के कारण सैन्य अदालत के फैसले को रद्द करने के भारत के अनुरोध को दरकिनार करते हुए स्पष्ट किया कि जाधव को दी गई सजा का वियना कन्वेंशन से कोई लेना-देना नहीं है। निष्कर्ष रूप में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इस मामले में उपयुक्त उपचार के लिए पाकिस्तान को निर्देश दिया कि वह सैन्य अदालत के फैसले का प्रभावी पुनरावलोकन करते हुए जाधव की सजा पर पुनर्विचार करे। जैसा कि आम तौर पर भारत-पाकिस्तान मसले में होता है, इस निर्णय को भी दोनों देशों में आधिकारिक तौर पर और दोनों देशों में मीडिया के एक विशेष तबके द्वारा अलग-अलग तरह से विश्लेषित और व्याख्यायित किया जा रहा है। भारत में विदेश मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए इस फैसले का स्वागत किया है और इसे भारत के पक्ष में बताया है। साथ ही न्यायालय द्वारा पाकिस्तान को जाधव की दोषसिद्धि और सजा को प्रभावी पुनरावलोकन के लिए दिए गए निर्देश के लिए प्रशंसा भी की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा सत्य और न्याय की जीत हुई।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में इस बात से संतुष्टि जाहिर की कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने जाधव को रिहा करने के भारतीय अनुरोध को नकार दिया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने न्यायालय द्वारा जाधव को रिहा न करने के लिए प्रशंसा की और कहा कि वह पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ किए गए अपराध के लिए दोषी है और पाकिस्तान इस मामले में कानून के आधार पर आगे बढ़ेगा। इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि कुलभूषण को फौरी तौर पर राहत तो मिल गई है, लेकिन वतन वापसी की उनकी राह कांटों भरी है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि पुनरावलोकन और पुनर्विचार की प्रक्रिया पाकिस्तान में ही होगी और पाकिस्तानी न्याय-प्रणाली की प्रभावकारिता का इतिहास बहुत सकारात्मक संकेत नहीं देता है।

आशीष शुक्ला


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment