बेनामी संपत्ति : कानून का कसता शिंकजा

Last Updated 22 Jul 2019 12:07:44 AM IST

देश में अवैध और बेनामी संपत्ति कितनी है, इसका कोई अंदाजा लगाना मुश्किल है। लालू प्रसाद यादव का परिवार और मायावती के भाई की बेनामी संपत्ति का उदाहरण हमारे सामने है।


बेनामी संपत्ति : कानून का कसता शिंकजा

जब बड़े स्तर पर कोई कानून का फंदा कसता है, बड़ी-बड़ी हस्तियां कानून के फंदे में फंसती हैं तब प्रत्यारोपित शोर भी मचता है। खासकर राजनीति की हस्तियां लोकतात्रिक कमजोरियों को ढाल बना लेती है, अपने समर्थक वगरे की शक्तियां दिखा कर डराती-धमकाती भी हैं, पक्षपात और बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाना भारतीय राजनीति का हथकंडा है।
यह भी देखा गया है कि भारतीय सत्ता लोकतांत्रिक कमजोरियों के कारण अपने समर्थक राजनीतिक शक्ति वर्ग का भय दिखाने वाले राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों के सामने हथियार डाल देती है और अवैध-बेनामी संपत्ति रखने वाले राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दलों की जांच करने वाली सरकारी एजेंसियों के हाथ बांध दिये जाते हैं, सरकारी जांच एजेसियां भी सरकारी रुख को अंगीकार कर लेती हैं। पिछले दस साल के कांग्रेसी शासन में मुलायम सिंह यादव परिवार और मायावती के खिलाफ आय का प्रसंग बार-बार उछलता था, सुप्रीम कोर्ट में जांच करने वाली सरकारी एजेंसी सीबीआई कभी वीर हो जाती थी तो कभी मूकदशर्क बन जाती थी। ऐसा इसलिए करती थी कि उस समय की केंद्रीय सत्ता बहुमत की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से कदम उठाती थी। जब संसद के अंदर मुलायम सिंह यादव और मायावती बहुमत के लिए जरूरी समर्थन देने में आनाकानी करते तो फिर सीबीआई का मुंह खोल दिया जाता था, सीबीआई फिर से सुप्रीम कोर्ट में वीर हो जाती थी।

इसका कारण है कि 2004 से लेकर 2014 तक मुलायम और मायावती बिना शर्त कांग्रेस को समर्थन देते रहे थे। कांग्रेस के राज में अवैध और बेनामी संपत्ति के अनेक प्रसंग सामने आए, भष्टाचार और कालेधन के भी कई प्रसंग सामने आए थे। बेनामी और अवैध संपत्ति के स्रोत भी भ्रष्टचार और कालाधन है। भ्रष्टचार के माध्यम से जमा कालाधन से ही अवैध और बेनामी संपत्तियां बनाई जाती हैं। आखिर एक-पर-एक अवैध-बेनामी संपत्तियां का पर्दाफाश का राज क्या है? अब जांच एजेंसियां इतनी कामयाब क्यों और कैसे हो रही हैं, जांच एजेंसियां बड़ी-बड़ी हस्तियों की गर्दन नापने में सफल कैसे हो रही हैं? यह जानना भी जरूरी है। दरअसल, बेनामी संपत्ति कानून में वह संशोधन है, जो नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 1 नवम्बर 2016 को की थी। देश में बेनामी संपत्ति कानून बेहद लचीला, कमजोर और बेनामी संपत्ति की जांच करने वाली जांच एजेसियों के पंगु बनाने वाला था। सबसे पहले राजीव गांधी शासन काल में 1988 में बेनामी संपत्ति कानून बना था। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में एक पर एक घोटालों के उजागर के बाद बेनामी कानून को और मजबूत करने की मांग उठी थी। पर मनमोहन सरकार ने बेनामी संपत्ति कानून का सख्त बनाने की कोशिश ही नहीं की थी। नरेन्द्र मोदी का 2014 में चुनावी वायदा कालाधन के खिलाफ था। कालाधन को रोकना भी एक चुनौती थी। बेनामी संपत्ति को उजागर किए बिना कालाधन को रोकना मुश्किल था। इसीलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने राजीव गांधी की सरकार द्वारा बनाए गए बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन करना उचित समझा। पहले जांच एजेंसियां बेनामी संपत्ति को जब्त नहीं कर सकती थी। पर संशोधित कानून के तहत जांच एजेंसियों को बेनामी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार है।
सबसे बड़ी बात यह है कि संशोधित कानून में गिरफ्तारी और सजा का भी प्रावधान है। अगर बेनामी संपत्ति का प्रमाण मिल गया और यह अवैध लेन-देन में पकड़े गए तो फिर गुनहगार को सात साल की सजा मिलेगी और बेनामी संपत्ति के बाजार भाव का एक चौथाई भाग जुर्माना में देना होगा। देश भर में अभी सात हजार करोड़ रुपये की अवैध-बेनामी संपत्ति पकड़ी गई है। बहुत सारे लोगों के लिए सात हजार करोड़ का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है पर बेनामी संपत्ति पर नजर रखने वाले लोग अभी भी यह मानते हैं कि यह आंकड़ा बहुत ही कम है और बेनामी संपत्ति की जांच करने वाली सरकारी एजेंसियां अभी भी कमजोर हैं, उनके अभियान में तेजी आनी चाहिए। सही तो यह है कि देश में खरबों-खरबों की अवैध व बेनामी संपत्ति पडी हुई है। क्या राजनीतिज्ञ, क्या नौकरशाह, क्या कर्मचारी, क्या व्यापारी, सब-के-सब बेनामी संपत्ति के फंदे में फंसे हुए हैं, सिर्फ कानून का फंदा कसने की जरूरत होनी चाहिए। केंद्र सरकार को पकड़ी गई बेनामी संपत्तियों के गुनहगारों को शीघ्र सजा दिलानी होगी। क्योंकि देरी से गवाह खरीद लिये जाते हैं और मामला कमजोर पड़ जाता है।

विष्णुगुप्त


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