सरोकार : क्रूर हो रही है मासूमियत

Last Updated 05 May 2019 06:50:24 AM IST

हाल ही में दिल्ली में डेढ़ साल के बच्चे की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दिल दहला देने वाले मामले को मात्र आठ साल के एक बच्चे ने ही अंजाम दिया है।


सरोकार : क्रूर हो रही है मासूमियत

क्रूरता का कारण बस इतना कि कुछ दिन पहले आरोपी और उसके भाई को मृतक बच्चे की बहन ने धक्का देकर गिरा दिया था। यह वाकया हैरान भी करता है और भयभीत भी  कि मात्र आठ साल का बच्चा, रात के समय पड़ोस के मकान की छत पर मां के पास सो रहे बच्चे के पास छत के रास्ते ही आया और सोते हुए मासूम को उठाकर ले गया। उसने बर्बर व्यवहार करते हुए पहले घर के बाहर बनी पानी की टंकी में उसे तीन-चार बार डुबोया और फिर तीन फुट गहरी नाली में गिरा दिया। इतना ही नहीं चोट पहुंचाने के लिए उसने बच्चे को पत्थर भी मारे।
नि:संदेह, रात के अंधेरे में ऐसी भयावह घटना को अंजाम देने का दुस्साहस करने वाले बच्चे की मानिसकता और परवरिश के परिवेश को लेकर कई सवाल उठने लाजिमी है। साथ ही यह सोचा जाना भी जरूरी है हमारे यहां साल-दर-साल बाल अपराधियों की संख्या क्यों बढ़ रही है? चिंतनीय यह भी है कि उनका मासूम मन जिन घटनाओं को अंजाम दे रहा है, वो कोई छोटी-मोटी वारदातें नहीं हैं। हद दर्जे के बर्बर और असंवेदनशील मामलों में कम उम्र के बच्चों की भागीदारी देखने को मिल रही है। हालिया बरसों में हर तरह की सामाजिक-पारिवारिक पृष्ठभूमि  से जुड़े बच्चे ऐसे मामलों में भागीदार पाए गए हैं। महंगे स्कूलों में पढ़ने वाले संभ्रांत परिवारों के लाडलों से लेकर अशिक्षित और आम सी पृष्ठभूमि के परिवारों में पले-बढे बच्चों की भागीदारी के ऐसे कई मामले आए हैं। आखिर कैसे बच्चे बड़े कर रहे हैं हम?

दरअसल, बीते कुछ बरसों में कम उम्र के बच्चों ने ऐसी कई घटनाओं को अंजाम को दिया है, जो बचपने ही पर सवालिया निशाना लगाती है? मासूमियत, संजीदगी और संस्कार की कमी आज के दौर में बड़े हो रहे बच्चों में साफ दिखती है। उनके विचार और व्यवहार की दिशाहीनता बताती है कि बच्चे अब बच्चे नहीं रहे। दुर्भाग्यपूर्ण है जिन्हें देश का भविष्य कहा जाता है वे सशक्त और संवेदनशील नागरिक बनना तो दूर ठीक से इंसानी व्यवहार भी नहीं सीख पा रहे हैं। पिछले एक दशक के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि हर तरह की आपराधिक गतिविधियों जैसे छेड़छाड़, दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न, चोरी, अपहरण, साइबर क्राइम और ह्त्या जैसी घटनाओं में कम उम्र के अपराधियों की संलिप्तता देखने को मिल रही है।
बीते सालों में अपराध करने वाले 9 से 11 साल के किशोरों की संख्या में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। 2011 की तुलना में ही 2012 में छोटी आयु के अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों में 11.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि बच्चों के र्दुव्‍यवहार के कितने ही मामले तो रिपोर्ट तक नहीं किए जाते? आंकड़े इस बात को पुख्ता करते हैं कि आज के बच्चे सही सोच और सहनशीलता भरे व्यवहार से दूर होते जा रहे हैं। बच्चों में चिड़िचड़ापन, आक्रामकता, जल्दी गुस्सा आना, बदला लेने की सोच रखना जैसी बातें अब आम समस्या बन गए हैं। बच्चों में बढ़ रही असंवेदनशीलता, आक्रामकता और नकारात्मक व्यवहार अभिभावकों के लिए भी बड़ी दुविधा पैदा कर रहा है। लेकिन सच तो यह है कि बालमन में आ रही विचार और व्यवहार की दिशाहीनता का हल भी उनके अपनों को ही तलाशना होगा।

मोनिका शर्मा


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