मुद्दा : चैनल चयन एक छलावा

Last Updated 19 Apr 2019 06:39:32 AM IST

किसी चैनलों के प्रसारण को बेहतर बनाने और एनालॉग टीवी की खामियों को दूर करने के लिए डिजिटलीकरण किया गया।


मुद्दा : चैनल चयन एक छलावा

डिजिटलीकरण के बाद भी प्रसारण कंपनियां उपभोक्ताओं को चैनल चयन करने का अधिकार नहीं दे रही थीं। इसलिए ट्राई एक नया विनियामक ढांचा लाई। इस ढांचे के पक्ष में और उपभोक्ताओं को इसे अपनाने के लिए तर्क दिया गया कि उपभोक्ता को चैनलों के चयन की स्वतंत्रता होगी कि क्या देखना चाहता है, और केवल उसके लिए ही भुगतान करेगा।
साथ ही, उपभोक्ता चैनलों को एलाकार्ट के आधार पर चुन पाएगा। लेकिन ट्राई की 1 फरवरी, 2019 की तय समय सीमा पर जब काफी उपभोक्ताओं ने चैनलों का चयन नहीं किया तो ट्राई ने कहा कि ‘जनहित के मद्देनजर प्राधिकरण सभी डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफार्म ऑपरेटर (डीपीओ) को निर्देश देता है कि जो ग्राहक अपने चैनल का चुनाव नहीं करते हैं, उन्हें ‘बेस्ट फिट प्लान’ में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।’ ग्राहक की पुरानी योजना तब तक जारी रहेगी जब तक कि वह अपने चैनलों का चयन नहीं करता या बेस्ट फिट प्लान में स्थानांतरित नहीं हो जाता है। बेस्ट फिट प्लान उपभोक्ताओं के इस्तेमाल संबंधी रु झानों, चैनलों की लोकप्रियता और बोली जाने वाली भाषा के आधार पर तैयार किया जाएगा।’ दरअसल, उपभोक्ता को झूठमूठ का दिया गया चयन का अधिकार भी ‘बेस्ट फिट प्लान’ के जरिए ट्राई ने छीन लिया। जब ऑपरेटर्स द्वारा बेस्ट फिट प्लान दिया जाएगा तो चयन का अधिकार किस बात का?

बढ़ते बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तेजी से बढ़ रही है जिसमें उपभोक्ता को अधिकार देने की बात तो की जाती है, लेकिन असल में उपभोक्ताओं को अधिकार दिए नहीं जाते। इस बात को ऐसे समझिए कि आपको ट्राई ने चयन का अधिकार दिया लेकिन हकीकत में क्या उपभोक्ता को चयन के अधिकार से कोई लाभ हुआ? उसका खर्च घटने के बजाय बढ़ गया और चैनलों की संख्या बढ़ने की बजाय घट गई! चैनलों के प्रसारण की गुणवत्ता में भी कोई सुधार देखने को नहीं मिलता है। उपभोक्ता को 100 फ्री टू एयर चैनल देखने के लिए तकरीबन 153 रु पये का भुगतान करना पड़ेगा। ट्राई के अनुसार, कुल 864 चैनल हैं इनमें 536 फ्री टू एयर चैनल हैं,  और 328 पेड चैनल्स हैं। ऐसी स्थिति में तो अधिक फ्री टू एयर चैनलों को देखने के लिए भी अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा जबकि अभी तक उपभोक्ता 270 देकर लगभग 500 चैनल देख सकता था। इन 500 चैनल्स में फ्री टू एयर और पेड चैनल दोनों शामिल होते थे। पेड चैनल के लिए चैनल शुल्क और अतिरिक्त नेटवर्क क्षमता शुल्क भी देना पड़ेगा। चयन के अधिकार का मतलब बाजार की सेवाओं में प्रतिस्पर्धा हो ताकि उपभोक्ता को कम कीमत में बेहतर सेवा मिले। लेकिन ट्राई की नई व्यवस्था में उपभोक्ता कुछ निश्चित चैनलों तक सीमित हो गया है। उपभोक्ता को पसंद के चैनल देखने के लिए अलग-अलग पैक लेना होगा जिससे प्रसारक कंपनियों को फायदा होगा न कि उपभोक्ता को। एक बात और, इस नये ढांचे में एक बड़ा तबका सिर्फ  खास तरह की सामग्री ही देख पाएगा। भारत जैसा देश जोकि विविधता के लिए जाना जाता है, वहां इस ढांचे से उपभोक्ताओं के टीवी चैनल देखने की विविधता भी खत्म होगी। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक उपभोक्ता कुछ न्यूज चैनल चुनेगा। और केबल ऑपरेटर्स या डीटीएच सेवा के पैक्स में भी सभी न्यूज चैनल नहीं होंगे।
इस तरह उपभोक्ता दूसरे न्यूज चैनलों की सामग्री से वंचित रह जाएगा। एक नागरिक का अधिकार है कि उसको न्यूज चैनल के माध्यम से सूचना व जानकारी मिले। लेकिन इस व्यवस्था से एक उपभोक्ता/नागरिक कुछ चैनलों की खबरों/जानकारियों तक सीमित रहेगा। इसी तरह से मनोरंजन, खेल, फिल्मों के चयन की विविधता भी सीमित हो जाएगी। चैनल के डिजिटलीकरण से एक नये तरह का विभाजन होगा क्योंकि अब तक केबल ऑपरेटरों को एक निश्चित शुल्क देकर उपभोक्ता लगभग 500 चैनल देख सकता था, लेकिन अब जो उपभोक्ता ज्यादा खर्च नहीं करेगा वह सीमित चैनल ही देखेगा। ट्राई ने 2017 में कहा कि इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनी इंटरनेट के उपयोग को लेकर भेदभाव नहीं कर सकती हैं। जब इंटरनेट का एक पैक लेकर हम सभी वेबसाइटों को देख सकते हैं तो एक निश्चित शुल्क देकर हम सभी चैनलों को क्यों नहीं देख सकते? ट्राई के ये दो तरह के सिद्धांत भला किस तरह के हैं, जिसमें एक सिद्धांत उपभोक्ताओं के पक्ष में हैं तो दूसरा प्रसारकों के पक्ष में। नये ढांचे से उपभोक्ताओं का बजट ही नहीं बढ़ा है, बल्कि उससे कई सुविधा छीन ली गई हैं।

संजय कु, बालौदिया


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment