अर्थव्यवस्था : सरकारी बैंकों की दशा-दिशा

Last Updated 18 Apr 2019 12:41:15 AM IST

हाल ही में 13 अप्रैल को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) द्वारा प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में कहा गया कि बैंकों के विलय और कंप्यूटरीकरण के कारण बैंकों की दक्षता वृद्धि हुई है।


अर्थव्यवस्था : सरकारी बैंकों की दशा-दिशा

साथ ही बैंकों में नौकरियों में कमी करने से जो खर्च में कमी आई है, उससे सरकारी बैंकों की हालत में सुधार आया है। उल्लेखनीय है कि एक अप्रैल को बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक के विलय के बाद भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बैंक ऑफ बड़ौदा दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया है। इसके साथ ही एक अप्रैल से देना बैंक और विजया बैंक  की सभी शाखाएं बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा के रूप में कार्य करने लग गई हैं। अब इस एकीकरण के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा के पास 9500 से अधिक शाखाएं, 13400 से अधिक एटीएम हो गए हैं। इस एकीकरण के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा 120 मिलियन से अधिक ग्राहकों को सेवाएं प्रदान कर रहा है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के पास 15 लाख करोड़ से अधिक मिश्रित कारोबार हो गया है। इस एकीकरण के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा का महाराष्ट्र, गुजरात, केरल तमिलनाडू, कनार्टक एवं आंध्र प्रदेश में पूरक शाखाओं का नेटवर्क बढ़ गया है। गौरतलब है कि बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक के विलय के बाद देश और दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ इसे बड़े एवं मजबूत सरकारी बैंक के रूप में एक लाभप्रद कदम बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। पिछले दो वर्षो से मजबूत सरकारी बैंकों के लिए लगातार प्रयास आगे बढ़ते रहे हैं। तेइस अगस्त, 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण में तेजी लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। पिछले वर्ष 24 जुलाई को केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से उन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के बारे में राय मांगी है, जिनका विलय किया जा सकता है।

बैंकिंग सेक्टर में दो तिहाई से ज्यादा हिस्सेदारी सरकारी बैंकों की है। सरकार की रणनीति अगले तीन वर्षो में सरकारी बैंकों की संख्या घटाकर दस-बारह करने की है। उल्लेखनीय है कि छोटे बैंकों को बड़े बैंक में मिलाने का फार्मूला केंद्र सरकार पहले भी अपना चुकी है। कोई दो वर्ष पहले एक अप्रैल, 2017 को  एसबीआई  के पांच सहायक बैंकों और भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) का एसबीआई में विलय किया गया है। भारत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जैसे बड़े बैंकों में सहायक बैंकों के विलय से उद्योग कारोबार एवं विभिन्न वगरे की कर्ज की बड़ी जरूरत पूरी हुई हैं।  
यह बात महत्त्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा बैंकिंग सुधारों के लिए जो कदम उठाए गए हैं, उनसे भी सरकारी बैंकों की स्थिति में सुधार आ रहा है। निश्चित रूप से पिछले वर्ष 22 नवम्बर को केंद्र सरकार द्वारा बैंकों में आर्थिक अनियमितता और धोखाधड़ी करद्मके विदेश भागने की संभावनाओं पर तत्काल रोक लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशकों तथा मुख्य कार्याधिकारियों को अधिकार संपन्न बनाया गया है। वे प्रत्यक्ष कर्ज चुकाने में जान-बूझ कर चूक करने वाले ऐसे कर्जदारों, जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, के लिए लुकआउट नोटिस जारी करने का आग्रह स्वयं केंद्रीय गृह मंत्रालय से कर सकेंगे। इस अधिकार का उद्देश्य बैंकों के कर्जदारों को बैंकों के साथ धोखाधड़ी करके देश छोड़ कर भागने से रोकना है। इस कदम से बैंक कर्ज संबंधी वित्तीय घोटले और कर्ज डूबाने वाले कारोबारी देश छोड़ कर नहीं भाग सकेंगे और उनके प्रत्यर्पण यानी देश वापस लाने संबंधी मुश्किलों से बचा जा सकेगा।चूंकि सरकार की जनहित की योजनाएं सरकारी बैंकों पर आधारित हैं, ऐसे में मजबूत सरकारी बैंकों की जरूरत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देश भर में चल रही विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिए धन की व्यवस्था करने और उन्हें बांटने की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंप दी गई है। सरकारी बैंकों द्वारा एक ओर मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है । विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2018 तक जन धन योजना के तहत 31.44 करोड़ खाते हैं। 2014 से 2017 के बीच दुनिया में 51 करोड़ खाते खुले। इनमें से 26 करोड़ खाते केवल भारत में जन धन योजना के अंतर्गत हैं। भारत में इस अवधि में 26 हजार नई बैंक शाखाएं भी खुली हैं। ऐसे में भारत की नई बैंकिंग जिम्मेदारी बैंकों के निजीकरण से संभव नहीं है। अतएव ऐसी जिम्मेदारी मजबूत सरकारी बैंक द्वारा ही निभाई जा सकती है।
निस्संदेह सार्वजनिक क्षेत्र के छोटे और कमजोर बैंकों का एकीकरण देश के नये बैंकिंग दौर की जरूरत है। इस समय जहां देश के बैंकिंग क्षेत्र में नये बड़े आकार के बैंकों की जरूरत है। वहीं जरूरी है कि सरकार बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के कार्य पर उपयुक्त निगरानी और उपयुक्त नियंत्रण रखे। बैंकों को दी गई भारी-भरकम नई पूंजी के आवंटन की उपयोगिता और प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि बैंक इसका इस्तेमाल कितने प्रभावी ढंग से करेंगे और फंसे हुए कर्ज से कैसे निपटेंगे। साथ ही, बैंकों के पुनर्पूजीकरण से देश की दोहरी बैलेंस शीट की समस्या कितनी हल होगी। बैंकों के पुनपरूजीकरण के साथ-साथ बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों को आकार देने की उपयुक्त रणनीति भी लाभप्रद होगी। ऐसा होने पर ही बैंकों  में नये निवेश से सभी प्रकार के छोटे-बड़े उद्योग कारोबार के साथ-साथ आम आदमी भी लाभान्वित होंगे। साथ ही, सार्वजनिक बैंक  मजबूत बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील कर सकेंगे। हम आशा करें कि एक अप्रैल, 2019 को बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक के विलय से जिस बड़े आकार के मजबूत बैंक ने आकार ग्रहण किया है, उससे बैंक की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी, ग्राहक सेवा बेहतर होगी और डूबत ऋण नहीं बढ़ेंगे।
हम आशा करें कि सरकार कमजोर और मजबूत सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण की डगर को आगे भी जारी रखेगी ताकि बैंकिंग सुधारों को दिशा दी जा सके। हम आशा करें कि देश के सरकारी बैंकों द्वारा नई तकनीकी क्षमताओं के साथ खर्च में कमी की जाएगी। बैंक डिजिटल भुगतान के लिए इस्तेमाल की जा रही पुरानी पड़ गई पाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों को बदल कर परिष्कृत पीओएस मशीनों का उपयोग करने की डगर पर आगे बढ़ेंगे।

जयंतीलाल भंडारी


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