मीडिया : मीडिया क्यों नरभसाया
सत्ताईस मार्च की सुबह पीएम नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया :‘मेरे प्यारे देशवासियो! आज सवेरे लगभग 11.45-12.00 बजे एक महत्त्वपूर्ण संदेश लेकर आपके बीच आउंगा..और देखते-देखते अपना मीडिया त्राहि-त्राहि करने लगा!
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हम तो अपने मीडिया पर इतराते थे कि अपना मीडिया किसी से नहीं डरता। कुछ शूरवीर एंकरों को देख ऐसा लगता था कि जब तक अपने पास देशभक्त मीडिया है और उसके रणबांकुरे एंकर /रिपोर्टर हैं, तब तक पाकिस्तान तो क्या अमेरिका-चीन अपना कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
लेकिन हमें क्या मालूम था कि एक सुबह हमारे मीडिया वीर एक मामूली से ‘ट्वीट’ देखते ही भयातुर हो बड़बड़ाने लगेंगे कि पता नहीं मोदी जी क्या करने वाले हैं? कहीं पाकिस्तान से जंग तो नहीं होने जा रही? कहीं कोई बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक तो नहीं कर दी? कहीं कोई विस्फोट तो नहीं कर दिया?
उस सुबह, देर तक हमारे चैनल सिर्फ एक बदहवासी प्रसारित करते रहे। वे अनाहूत भय की सर्जना करते रहे और जनता को डराते रहे। जब डीआरडीओ की मिसाइल ने अपनी ही एक पुरानी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में मार कर नष्ट कर दिया। जब पीएम मोदी ने इस सफल मिशन के लिए देश को बधाई दी तब एंकरों को होश आया। उन्होंने तुरंत अपना सुर बदला और भारत को चौथे नंबर की ‘विश्व शक्ति’ कहकर फिर अपनी ताल ठोकने लगे। कुछ देर पहले जो वीर बहादुर एक अनबूझ डर से डरकर, सबको डर बेच रहे थे, अचानक अपनी बगलें बजाने लगे मानों मिसाइल इन्होंने ही मारी हो। सभी अपनी पुरानी ‘चारण परंपरा’ में लौट आए कि जय जय हो कि सरकार ने कठोर फैसला लिया, कि धिक्कार है कांग्रेस को जिसने इस तरह के फैसले को बराबर टाला। ऐसे फैसले लेने के लिए हिम्मत चाहिए सो अपने पास इन दिनों खूब है.कुछ एंकर बगलें बजाने लगे कि नए भारत की जय हो, जय हो उस मिसाइल की और जय हो उस सैटेलाइट की भी जिसने हमारी मिसाइल के आगे चुपचाप आत्मसमर्पण कर दिया..।
हमारी चिंता यह नहीं है कि मिसाइल का श्रेय किसे मिले? जिसे श्रेय लेना हो ले। हमारी चिंता तो अपने मीडिया के उस कमजोर हो चले ‘नर्वस सिस्टम’ को लेकर है, जो बताता है कि ऊपर से चाहे कितना भी रौब-रुतबे वाला लगे, इन दिनों अपने मीडिया की ‘तबियत’ एकदम ठीक नहीं है। उसका ‘नर्वस सिस्टम’ इतना कमजोर हो चुका है कि एक ट्वीट मात्रा से उसके पसीने छूट गए। वह एक नए प्रकार के सत्ता के‘डर’ से डरकर, उसी ‘डर’ को टीवी दर्शकों-जनता के बीच बेचने लगा और इस तरह जनता को डरने का अभ्यास कराने लगा।
उस एक घंटे से भी कम समय के दौरान मीडिया के तीन चेहरे सामने आए। एक ‘ट्वीट’ से पहले वाला ‘देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाला’ चेहरा जो पिछले पांच साल में बना, दूसरा ‘ट्वीट’ के डर से थर-थर कांपने वाला और सत्ता के डर को जनता के बीच प्रसारित करने वाला चेहरा और तीसरा मिसाइल की मार के बाद फिर वीरता से चहकने और अपनी ताल ठोकने वाला चेहरा! इस पूरे प्रकरण के दौरान,सत्ता का ‘डर’मीडिया के सिर चढ़कर बोला और इस चक्कर में पिछले पांच साल के दौरान उसके ऊपर पर पड़े प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दबावों के निशान, उसकी ‘थरथराहट’ के जरिए सामने आ गए। इस ‘थरथराहट’ ने यह भी साफ किया कि उसकी नजर में सत्ता एकदम ‘अप्रत्याशित’ है और वह इतनी ताकतवर है कि कुछ भी कर सकती है। अगर मीडिया ने उसका ‘डर’ नहीं महसूस किया और उसे जनता में नहीं फैलाया तो उसकी खैर नहीं। उसका स्नायुतंत्र इस कदर कमजोर रहा कि जरा सी बात पर इतना ‘डर गया’ कि जनता को भी अपने डर का हिस्सेदार बनाने लगा ताकि जनता भी सत्ता से डरने की आदम डाल ले!
प्रकटत: देखें तो मोदी के ‘ट्वीट’ में ऐसा कुछ नहीं था जो इस कदर डराने वाला हो, लेकिन मीडिया ने उसको ‘अतिरिक्त डर के साथ’ पढ़ा और इस तरह उसे और अधिक ‘डरावने अर्थ’ दिए! अगर आप सत्ता के चौथे और स्वतंत्र पाए बनने की जगह और जनहित की बात करने की जगह, चौबीसों घंटे सत्ता के झंडाबरदार बनेंगे, कभी अपने को ‘देश’ कहकर जनता पर रौब मारेंगे, कभी ‘राष्ट्र’ कह कर अकड़ेंगे तब आपके साथ यही होगा कि सत्ता की हर लाइन को सत्तामूलक ‘डरावने अर्थ’ देंगे और इस तरह जनता को भी डरने का आदी बनाएंगे! याद करें, आपातकाल लगा तो सत्ता के आगे मीडिया ‘रेंगने’ लगा था, लेकिन इस बार तो एक ट्वीट से ही ‘त्राहिमाम्’ करने लगा!
ऐसे ‘द्वि-विभक्त’ मीडिया के चलते इस ‘जनतंत्र’ को सुरक्षित कैसे माना जा सकता है?
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