वैश्विकी : गोलान पर तिरछा संग्राम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप घरेलू और विदेशी मोर्चे पर विवादास्पद फैसलों के लिए चर्चित रहे हैं।
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अपनी बे-लीक राजनीति के तहत उन्होंने विदेश नीति में भी ऐसे फैसले किये जो लंबे समय से चले आ रहे पेचीदा मामलों को हल करने के बजाय उसमें और जटिलता पैदा करने के कारण बन रहे हैं। हाल में उन्होंने इस्रइल और सीरिया के सीमा क्षेत्र में स्थित गोलान पहाड़ी क्षेत्र पर इस्रइल की संम्प्रभुता को मान्यता दे दी। गोलान वास्तव में 1967 और 1981 की सैन्य कार्रवाई के कारण इस्रइल के कब्जे में हैं। वहां इस्रइल की सेना तैनात है। लेकिन फिलिस्तीन की तरह गोलान को भी संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी कब्जे वाला इलाका मानती है। इस्रइल का शिकार सीरिया भी अपने क्षेत्र को दोबारा हासिल करने की स्थिति में न पहले था और न आज है। अरब देशों को यह आशा जरूर थी कि पश्चिम एशिया में यदि कभी शांति समझौता हुआ तो फिलिस्तीन और गोलान का मामला सुलझ जाएगा। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से अब ऐसे किसी शांति समझौते के रास्ते में और बाधा आएगी।
विशेषज्ञ यह विश्लेषण कर रहे हैं कि जब गोलान पर इस्रइल का पहले से कब्जा है तो उसे ट्रंप की ओर से औपचारिक मान्यता दिये जाने का क्या औचित्य है? कुछ लोग इसे ट्रंप द्वारा अपने मित्र बेंजामिन नेतन्याहू को दिया गया उपहार मान रहे हैं। नेतन्याहू इस समय आम चुनाव का सामना कर रहे हैं, जिसमें उन्हें विपक्ष की ओर से कड़ी टक्कर मिल रही है। वह भ्रष्टाचार के आरोपों से भी घिरे हैं। ऐसी स्थिति में डोनाल्ड ट्रंप की यह घोषणा इस्रइली नेता नेतन्याहू के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। गोलान के बारे में ट्रंप के फैसले का रूस, सीरिया, ईरान और तुर्की आदि विभिन्न देशों ने विरोध किया है। सीरिया के मौजूदा गृह युद्ध में इन देशों की सीधी दखल है। ईरान ने कहा है कि वह इस फैसले को बेअसर करने के लिए कार्रवाई करेगा। सीरिया में एक दशक से गृह युद्ध का सामना कर रहे बशर-अल-असद ने सरकार के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में कुछ हद तक स्थिरता कायम की है। यह काम वह रूस, ईरान और लेबनान के उग्रवादी संगठन हिज्बुलाह की मदद से कर पाए। असद का सत्ता में बने रहना और सीरिया में ईरान और हिज्बुलाह की मौजूदगी को इस्रइल अपने लिए खतरा मानता है। इस्रइल में सोच यह है कि गोलान पर उसकी संप्रभुता का अमेरिका द्वारा मान्यता दिये जाने से इस क्षेत्र में भविष्य में होने वाली सैन्य कार्रवाइयों में उसे मदद मिलेगी। गोलान पहाड़ी क्षेत्र ऊंचाई के कारण रणनीतिक महत्त्व का है और इससे सीरिया और लेबनान पर निगरानी रखी जा सकती है।
यूरोपीय संघ सहित पश्चिमी देशों ने ट्रंप के फैसले का समर्थन करने से इनकार कर दिया है। उनका मानना है कि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है तथा इससे मौजूदा विश्व व्यवस्था में व्यवधान पैदा होगा। खुद अमेरिका के लिए यह मुश्किल होगा कि वह क्रीमिया पर रूस के कब्जे का विरोध करे अथवा यदि भविष्य में चीन कभी ताइवान पर अधिकार के लिए कार्रवाई करे तो उसके विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई के लिए समर्थन जुटा सके। भारत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि वह फिलिस्तीन में इस्रइल की सैनिक कार्रवाई का विरोध करता रहा है। अमेरिका और उसके समर्थक अरब देश इन दिनों पश्चिम एशिया में शांति समझौते के लिए खाका तैयार कर रहे हैं। इस्रइल में आम चुनाव के बाद इस दिशा में ठोस प्रयास होने की आशा है। इसके पहले ही ट्रंप के फैसले और फिलिस्तीन के गाजापट्टी इलाके में संघर्ष की स्थिति दोबारा पैदा होने से वार्ता प्रक्रिया में नई रुकावट पैदा हुई है।
रणनीतिक महत्त्व के साथ-साथ गोलान इलाका आर्थिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। पानी की कमी का सामना करने वाले इस क्षेत्र के देशों के लिए उसका महत्त्व है। जोर्डन नदी गोलान की जीवन धारा है। यहां प्राकृतिक गैस और खनिज के भंडार भी हैं। इस्रइल इनका आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोग कर सकता है। चुनाव में यदि बेंजामिन विजयी होते हैं तो वह शांति समझौते के बारे में क्या रवैया अपनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। पर ट्रंप शायद ही इस मुददे पर लचीला रवैया अपनाएं। ट्रंप का मानना है कि गोलान पर कब्जा इस्रइल की सुरक्षा की गारंटी है। सुरक्षा की गारंटी मिलने पर इस्रइल फिलिस्तीन को कोई रियायत देगा,यह सोचना अतिआशावादिता ही कही जाएगी।
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