बतंगड़ बेतुक : चिपके वोटर से मामूली मुलाकात

Last Updated 31 Mar 2019 02:00:05 AM IST

चुनाव के मौसम में आदमी आदमी नहीं रहता वोटर हो जाता है। कभी वह मतदाता हुआ करता था। मतपेटी में अपने मत का दान करके आता था। अंग्रेजी की परिव्याप्ति और हिंदी वालों की शर्मिंदगी भरी उपेक्षा से उद्विकसित होकर वह वोटर हो गया।


बतंगड़ बेतुक : चिपके वोटर से मामूली मुलाकात

वोटर होते-होते वह थोड़ा चतुर-चालाक भी हो गया, थोड़ा मस्त-मलंग भी हो गया। मतदाता मंदिर में गंगाजली उठाकर इस या उस को मत देने के लिए बंध जाता था, मगर वोटर होते ही वह कभी दारू से बंधने लगा तो कभी नोट से बंधने लगा। वादा इससे करने लगा वोट उसे देने लगा। फिर उसकी समझदारी और बढ़ी तो उसके वोट की कीमत भी और बढ़ गयी। वोट के साथ उसकी जाति जुड़ गयी, उसका धर्म-मजहब जुड़ गया, गुंडई-दबंगई जुड़ गयी, उसके सीधे-उल्टे लोभ-लालच जुड़ गये और वोट के जरिए हराने-जिताने, सत्ता छीनने-दिलाने का सुख जुड़ गया। चुनाव का मौसम वोटर का सुखकाल होता है। और इस समय जबर्दस्त सुखकाल चल रहा है।
सुखकाल में दो तरह के आम वोटर बेहद खास हो जाते हैं-एक होता है चिपका वोटर और दूसरा होता है छिटका वोटर। चिपका वोटर एक बार किसी नेता से, किसी दल से, किसी पार्टी से जुड़ जाता है तो उससे चिपक कर रह जाता है, छिटकाए नहीं छिटकता। छिटका वोटर कभी इससे छिटक जाता है कभी उससे, स्थायी तौर पर न किसी नेता से जुड़ता है, न किसी पार्टी से, न किसी विचार से और यह किसी से चिपकाए नहीं चिपकता। चिपका वोटर नेताओं को आस्त करता है तो छिटका वोटर उनकी नींद उड़ाता है। नेताओं का हर भाषण-बयान, हर वादा-आश्वासन, हर युद्ध-संग्राम चिपका और छिटका के बीच की जमीन पर होता है। हर नेता चाहता है कि उसका चिपका उससे चिपका रहे, छिटक न जाये और दूसरे का चिपका चिपका न रहे छिटक कर उससे चिपक जाये। चुनावकाल में मीडिया बाकी सब रोक देता है और चिपका-छिटका का मन मापने में पूरी ताकत झोंक देता है। उसके सारे आकलन, सर्वेक्षण, भविष्यवाणियां और लंतरानियां चिपका-छिटका की जेब से ही निकलती हैं। किसी छिटके का चिपकना और किसी चिपके का छिटकना उनके लिए सिरपंक्ति होती है इसलिए सिरपंक्तियों के लिए मीडिया के उछल-बच्चे कभी किसी चिपका के मुंह पर माइक रख देते हैं तो कभी किसी छिटका के मुंह पर।

कभी-कभी हमें भी कुछ याद आ जाता है और मीडिया हमारे अंदर भी गुलाट मार जाता है। सोचा, अपने बगल-बैठे वोटर से बात की जाये, उसके मन की थोड़ी थाह ली जाये। पूछ लिया-‘भैया, अब की बार किसकी सरकार?’ भैया तड़क कर बोला-‘न इसकी सरकार न उसकी सरकार। हमारी सरकार, हमारी जाति की सरकार, हमारी पार्टी की सरकार, हमारे नेता की सरकार।’ हम समझ गये कि चिपका से जा टकराए हैं, कहा-‘पर भैया, तेरी जाति, तेरी पार्टी और तेरा नेता सब प्रदेश तक सीमित हैं, उनकी प्रदेश में चलनी है, उधर सरकार दिल्ली में बननी है।’ चिपका बोला-‘दिल्ली में बने चाहे लंदन में, सरकार हम ही बनाएंगे, अपने नेता को जिताएंगे, कंधे पर उठाएंगे और सीधे दिल्ली ले जाएंगे।’ हमने शंका प्रकट की-‘भैया, आप तो कंधे पर उठाकर दिल्ली ले जाएंगे, मगर दूसरे अपने बहुमत के कंधे नहीं लगाएंगे, आपके नेता के नाम पर समर्थन का ठप्पा नहीं लगाएंगे तो आपके नेताजी सरकार कैसे बनाएंगे?’ चिपका चहक कर बोला-‘बनाएंगे, जरूर बनाएंगे। हम बनवाएंगे। बहुमत हो न हो, ठप्पा अपने नेता पर ही लगवाएंगे।’
हम बोले-‘वोटर जी, देश में बहुत से नेता आपके नेता से भी बड़े हैं, वे पहले से ही प्रधान बनने की लाइन में खड़े हैं, और अपने वर्तमान प्रधान सेवक भविष्य में भी प्रधान सेवक रहने पर अड़े हैं।’ चिपका बोला-अब कोई खड़ा रहे या अड़ा रहे, हम अपना चिपका धर्म निभाएंगे। प्रधान सेवक से उसकी सेवकाई छिनवाएंगे, अपने नेता का नाम आगे बढ़ाएंगे, उसके नाम का झंडा उठाएंगे, जो सामने आएगा उसे अपने नेता के नाम पर राजी करवाएंगे, अपने नेता को प्रधान बनवाएंगे, अपनी कौम का परचम लहराएंगे और जीत का जयकारा लगाएंगे।’ हमने अपनी शंका आगे बढ़ाई-‘मगर भैया, यह तो दूर की कौड़ी है, हलवा-पूरी थोड़ी है कि लपक लिये और गपक लिये। और भी तो अपने नेता का नाम आगे बढ़ाएंगे, उनका झंडा उठाएंगे, उनका जयकारा लगाएंगे।’ चिपका गुस्से से बोला-‘तब हम इतनी जोर से चिल्लाएंगे कि सबके मुंह बंद हो जाएंगे। हम अपना झंडा इतना ऊंचा फहराएंगे कि सबके झंडे लहरा कर उसके नीचे आ जाएंगे।’ हमने कहा-‘किंतु चिपकाधिराज जी, इसमें बहुमत का निरादर है, लोकतंत्र का अपमान है, देश का अहित है।’ चिपका हंसा-‘देख भई, जो बहुमत हमारा आदर नहीं करता वह बहुमत नहीं, जो लोकतंत्र हमारा मान नहीं रखता, वह लोकतंत्र नहीं और जो देश हमारा हित नहीं देखता, वह देश नहीं। इसलिए बहुमत, लोकतंत्र और देश की खातिर सबको हमारे झंडे तले आना होगा और हमारे नेता को ही प्रधान बनाना होगा।’
अपनी बात पूरी करके चिपका उठ लिया और इस मामूली मुलाकात के बाद हम किसी छिटका से मिलने की उम्मीद में उठ लिये।

विभांशु दिव्याल


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