आकलन : रणनीतिक बदलाव करे भारत

Last Updated 17 Feb 2019 07:32:08 AM IST

आतंकवाद के मुद्दे पर लगातार बढ़ रहे अंतरराष्ट्रीय दबावों, अर्थव्यवस्था की पतली होती हालत और आतंरिक सुरक्षा संबंधी कठिनाइयों के बावजूद पाकिस्तान और उसके सुरक्षा अधिष्ठान, जो विभिन्न आतंकी संगठनों को विदेश नीति के एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते चले आ रहे हैं, भारत के खिलाफ अपनी खूनी हरकतों से बाज़ आने का नाम नहीं ले रहे हैं।


आकलन : रणनीतिक बदलाव करे भारत

बीते 14 फरवरी को पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के एक काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया जिसमे सीआरपीएफ़ के 40 से अधिक जवानों की मौत हो गयी। अमेरिका और चीन समेत वि के कई देशों ने इस हमले की कड़ी र्भत्सना की है।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल से टेलीफोन पर बात करते हुए न केवल संवेदना व्यक्त की बल्कि सीमापार से जारी आतंकवाद के खिलाफ भारत के स्व-रक्षा के अधिकार का समर्थन करते हुए हर तरह के सहयोग देने का आश्वासन दिया।  दोनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने इस बात पर भी एकजुटता दिखाई कि पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ के संकल्पों के लिए उत्तरदायी बनाया जाएगा और जैश प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादियों की सूची में शामिल करने में आने वाली रु कावटों को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा जाएगा। चीन, जो अब तक इस काम में सबसे बड़ी बाधा रहा है, ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है।

कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
इस हमले के वास्तविक कारणों की तह तक जाने तथा भारत द्वारा उठाए गए कदम और संभावित रणनीति की चर्चा करने से पहले कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है। इस हमले को उस वक्त अंजाम दिया गया, जब देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बलों की 78 गाड़ियों का काफिला 2554 जवानों को जम्मू से कश्मीर ले जा रहा था। काफिला जम्मू-कश्मीर हाइवे पर श्रीनगर से लगभग 20 किलोमीटर दूर था, जब अवंतीपोरा के नजदीक लेथपोरा में तकरीबन 350 किलोग्राम विस्फोटकों से लदी एक कार को जैश-ए-मोहम्मद के फिदायीन आतंकी ने सुरक्षा बलों की एक बस के पास उड़ा दिया। वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले के बाद सुरक्षा बलों पर होने वाला अब तक का यह सबसे बड़ा हमला था। जम्मू-कश्मीर के भीतर सुरक्षा बलों के काफिले पर यह पहला फिदायीन हमला था जिसको जम्मू-कश्मीर राज्य के काकापोरा निवासी आदिल अहमद डार, जिसने पिछले साल ही जैश-ए-मोहम्मद की सदस्यता ली थी, ने अंजाम दिया। गौरतलब है कि जैश-ए-मोहम्मद ने हाल ही में सोशल मीडिया वेबसाइट पर एक वीडियो डाला था और चेतावनी दी थी कि वह भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ वैसा ही हमला कर सकती है। यहां यह बात गौर करने लायक है कि आदिल अहमद डार ने भी इस हमले को अंजाम देने से महज कुछ घंटे पहले एक वीडियो में ऐसा करने की खुली धमकी दी थी।
हमले के पीछे की मंशा
बीते छह महीनों के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों में दक्षिण कश्मीर में आतंकवदियों के खिलाफ काफी प्रभावी कार्यवाहियां की थीं, जिनके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए थे और पाकिस्तान द्वारा समर्थित गुटों की जान पर बन आई थी। इसके अतिरिक्त, लाख कोशिशों के बावजूद भारत ने पाकिस्तान से बातचीत के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके कारण पाकिस्तान की कुंठा बढ़ती चली जा रही थी और उसे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि यदि जल्द ही किसी बड़ी घटना को अंजाम न दिया गया को जम्मू-कश्मीर में उसके द्वारा फैलाए जा रहे झूठ का कोई खरीददार नहीं मिलेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि इसी कुंठा ने इस तरह के हमले की रणनीति को जन्म दिया है। इस हमले से पाकिस्तान एक तरफ तो कश्मीर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लाने में सफल हुआ है तो दूसरी तरफ कश्मीर के भीतर भारत-विरोधी आतंकी गुटों को कुछ ऑक्सीजन मुहैया कराया है।
भारतीय प्रतिक्रिया
इस हमले ने न केवल पूरे देश को आग-बबूला कर दिया है, बल्कि हर तबके को आतंकवाद के खिलाफ इस युद्ध में एकजुट भी कर दिया है। आज देश के हर कोने से इसके खिलाफ आवाज उठाई जा रही है और पाकिस्तान के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने के लिए सरकार और सुरक्षा अधिष्ठानों को पूरे सहयोग का आश्वासन भी दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस हमले की कड़ी निंदा करते स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान को इस बड़ी गलती का खमियाजा भुगतना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय सेना को कार्रवाई करने की पूरी छूट दे दी गयी है। विपक्षी राजनीतिक दल भी इस कठिन घड़ी में सरकार और सुरक्षा अधिष्ठानों के पक्ष में खुलकर सामने आ गए हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सरकार के साथ खड़े होकर इस चुनौती का सामना करने की बात कही है।
भारतीय रणनीति
इस हमले ने जमीनी हकीकत को कुछ इस तरह से प्रभावित किया है कि भारत को अपनी रणनीति में जरूरी परिवर्तन करने की महती आवश्यकता प्रतीत हो रही है। इसका तात्कालिक परिणाम तो यह हुआ है कि भारत ने पाकिस्तान को दिए गए एमएफएन स्टेटस को वापस लेने का फैसला कर लिया है। चूंकि पाकिस्तान ने भारत को एमएफ़एन स्टेटस नहीं दिया था, इसलिए समय-समय पर भारत में इस बात की मांग होती रहती थी कि भारत भी पाकिस्तान को एमएफ़एन से वंचित कर दे। इसकी अगली कड़ी में भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का भी निर्णय लिया है जो समय और परिस्थिति के हिसाब से जरूरी है। इस मुद्दे पर हमें अमेरिका सहित कई अन्य देशों का सहयोग मिलने की पूरी सम्भावना है। हालांकि हमें इस यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि जब तक चीन पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा होता रहेगा, उसे अलग-थलग करना आसान नहीं होगा। इसलिए इस बात की भी महती जरूरत है कि भारत पाकिस्तान के साथ-साथ चीन पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने का प्रयास करे।
वैसे तो भारत ने अपनी सेना को इस हमले पर जरूरी प्रतिक्रिया देने के लिए खुली छूट दे दी है, लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि हमारी जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों के साथ-साथ पाकिस्तान के सुरक्षा अधिष्ठानों को भी पर्याप्त नुकसान उठाना पड़े। जहां तक जम्मू-कश्मीर के अंदर रणनीति का प्रश्न है, एक तरफ तो हमें नौजवान कश्मीरियों को आतंक के रास्ते जाने से रोकने के लिए पर्याप्त प्रबंध करना पड़ेगा, तो दूसरी तरफ हमारे सुरक्षा बलों और इंटेलिजेंस एजेंसियों को अपनी रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा।

आशीष शुक्ला


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