होलसेल : किराना स्टोर का मेकओवर

Last Updated 18 Feb 2019 02:04:18 AM IST

प्रौद्योगिकी विकास के मौजूदा दौर में महानगरों से लेकर कस्वाई शहरों तक मॉल खुल गए हैं, जहां एक ही छत के नीचे उपभोक्ताओं की तमाम जरूरतों की चीजें आसानी से मिल जाती हैं।


होलसेल : किराना स्टोर का मेकओवर

यहां तक कि गांवों में भी इसी तर्ज पर बड़े किराना स्टोर व मार्ट खुलने लगे हैं। इससे लोगों को रोजमर्रा की वस्तुएं खरीदने के लिए शहर जाने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार उनको समय की बचत के साथ-साथ सहूलियत भी हो रही है और रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं। यह देश के विकास का परिचायक है, जिसमें आवागमन के साधनों के विकास से लेकर सेवा व लॉजिस्टिक्सि के क्षेत्र में हो रहे विस्तार का अहम योगदान है।
हाल के दिनों में ग्रॉसरी के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों के उतरने के बाद कृषि बाजार में बिचैलिए की भूमिका कम होती जा रही है, क्योंकि बड़ी कंपनियां सीधे किसानों से उनकी उपज खरीद करने लगी हैं। जहां पहले बिचैलिये या आढ़ती यानी कमीशन एजेंट हुआ करते वहां अब बी-2-बी का फॉर्मूला आ गया है। किराना थोक बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियां आ गई हैं। मसलन, वालमार्ट इंडिया का मेरा किराना, थाइलैंड की कंपनी सियाम मैक्रो का लॉट्स स्टोर व अन्य। बी-2-बी होलसेल से किराना बाजार क्षेत्र में दो बड़ी उपलिब्ध देखी जा सकती है। पहला, यह कि छोटी खोली में चलने वाली दुकानों की जगह बड़े किराना स्टोर खुलने लगे हैं। खास बात यह है कि ऐसे कई स्टोर का संचालन महिला कारोबारियों के हाथ में है, क्योंकि उनको सामान लाने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है। बल्कि ये कंपनियां सारी चीजें इन दुकानों तक पहुंचाती हैं। पढ़ी-लिखी महिलाएं बिजनेस संभाल रही हैं, जिनके कंप्यूटर पर दुकान में आने वाली वस्तुओं से लेकर बिकने वाली वस्तुओं का लेखा-जोखा सब फीड होता रहता है।

एक तरह से पुराने परचून की दुकानों का मेकओवर होने लगा है, जिसमें कंप्यूटर साक्षर युवाओं को नौकरियां मिलने लगी हैं। लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का विस्तार होने से उसमें भी नई नौकरियां मिलने लगी हैं। यह कहावत सुनी जाती है कि बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को खा जाती हैं लेकिन वर्तमान दौर में यह कहावत अप्रासंगिक दिख रही है क्योंकि बड़ी कंपनियां छोटे कारोबारियों को उठाने में मदद को आगे आ रही हैं। यह खासतौर से ग्रॉसरी के क्षेत्र में काफी सफल साबित हो रही है। कुछ साल पहले सरकार ने जब मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में 51 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी प्रदान की थी तो इस बात का अंदेशा जताया जाने लगा कि वालमार्ट, अमेजन जैसे बहुराष्ट्रीय दिग्गज कंपनियों के खुदरा कारोबार में पैर पसारने से छोटे किराना स्टोर समाप्त हो जाएंगे और छोटे कारोबारियों का रोजगार समाप्त हो जाएगा। हालांकि एफडीआई की अनुमति के साथ कुछ शर्तें भी लगाई गई थीं मसलन एफडीआई की सीमा कम से कम 10 करोड़ डॉलर हो, निवेश की आधी रकम कोल्ड स्टोर चेन और वेयरहाउस जैसे बुनियादी ढांचों में लगाया जाए, कम से कम 30 फीसद वस्तुएं स्थानीय उत्पादकों द्वारा उत्पादित हो आदि। कोल्ड स्टोरेज चेन और वेयरहाउस की तादाद में विगत वर्षो में इजाफा हुआ है, जिससे किसानों की खराब होने वाली फसलों का संरक्षण व अनुरक्षण होने से उनको उचित भाव दिलाने में मदद मिली है। घरेलू व विदेशी कंपनियों के ग्रॉसरी कारोबार में उतरने से किसानों से सीधी खरीद को प्रोत्साहन मिला है और छोटे किराना स्टोर को आसानी से वस्तुओं की आपूर्ति होने लगी है।
वालमार्ट इंडिया विगत चार साल से अपने बी-2-बी थोक कारोबार के तहत मेरा किराना कार्यक्रम चला रही है, जिसमें मॉम एंड पॉप स्टोर मालिकों के लिए आधुनिक किराना स्टोर का डिजाइन तैयार किया गया है। कंपनी इस कार्यक्रम के तहत अपनी टीम को किराना स्टोर भेजकर उसका मेकओवर करने में मदद करती है। इस तरह बी-2-बी होलसेल से इस क्षेत्र में महिला कारोबारियों को प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि उन्हें अपने स्टोर में सामान की आपूर्ति के लिए कहीं भाग-दौड़ करने की जरूरत नहीं होती है, बल्कि एक फोन पर सारे सामान की आपूर्ति करवा दी जाती है। चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में तकरीबन 600 अरब डॉलर का खुदरा कारोबार है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। निस्संदेह भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा सरकार द्वारा विगत दिनों किए गए उपायों से अधिक औपचारिक बनती जा रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र आज भी ऐसे हैं, जो असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। इसलिए खुदरा कारोबार में असंगठित क्षेत्र का वजूद समाप्त नहीं होगा बल्कि संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र के कारोबारी खुदरा किराना कारोबार में एक दूसरे के पूरक बने रहे रहेंगे।

प्रमोद झा


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