पुलवामा : देश-रक्षा का दायित्व
यह भारत देश है जहां ऐसी पीड़ा और क्षोभ पैदा करने वाली घटना में भी कुछ लोगों को राजनीति नजर आ रही है।
पुलवामा : देश-रक्षा का दायित्व |
कुछ लोग मीडिया द्वारा शहीदों के शवों के अंतिम संस्कारों से लेकर लोगों के आक्रोश प्रकटीकरण की कवरेज को अंधराष्ट्रवाद या उन्माद पैदा करने वाला कारनामा साबित करने पर तुले हैं। ‘भारत माता की जय’ तथा ‘वंदे मातरम्’ का सामूहिक नारा भी इन्हें अंधराष्ट्रवाद लग रहा है। क्या यह अंधराष्ट्रवाद है? अंधराष्ट्रवाद पश्चिम द्वारा दिए गए शब्द जिंगोइज्म का हिन्दी अनुवाद है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है जैसा बताया जा रहा है। अंधराष्ट्रवाद के अंदर बिना किसी कारण के अपने देश को सबसे बेहतर मानने का गुमान तथा दूसरे राष्ट्रों से घृणा,उनका विरोध तथा उन पर हमला करने तक विस्तारित होता है। उसका एक स्वरूप फासीवाद, साम्राज्यवाद भी है। ऐसे महाज्ञाता लोग जो देश की मानसिकता को प्रदूषित करने की भूमिका निभा रहे हैं, वह पुलवामा में आतंकवादियों की वारदात से छोटा अपराध नहीं है। आखिर ये चाहते क्या हैं? हमारे यहां पड़ोसी आतंकवादियों को भेजकर हमला कराए, एक साथ इतने जवानों को शहीद कर दे और देश इसलिए चुप रहें कि वे अगर गुस्सा प्रकट करेंगे तो लोग उन्हें जिंगोइस्ट, फासिस्ट आदि शब्दों से गालियां देंगे?
इसका साफ उत्तर है, नहीं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो पाकिस्तान के पिट्ठू और देश को तोड़ने की खुलेआम बात करने वाले, भारत का खाते हुए स्वयं को भारत का नागरिक न मानने वाले, स्वयं को पाकिस्तानी कहने वाले हुर्रियत नेताओं से जाकर गले मिलते हैं, संभव होने पर उनको अपने बुद्धि विलास कार्यक्रम में बुलाकर सम्मान करते हैं..। यह बात अलग है कि भारत के आम समाज में इन्हें कभी स्वीकृति नहीं मिलती। किंतु इन्होंने भी अपना एक समुदाय सृजित कर लिया है जिसकी ताकत हर प्रकार की सत्ता में है। साहित्य, पत्रकारिता, कला, अकादमी, एक्टिविज्म, एनजीओ से लेकर सत्ता के दूसरे अंगों और यहां तक कि विदेशों तक इनका प्रभाव है। हां, ये कभी समाज के मुख्यधारा के अंग नहीं हैं, लेकिन वे पत्रकारों, लेखकों यहां तक कि नेताओं और नौकरशाहों तक पर स्थायी मनोवैज्ञानिक दबाव निर्मिंत करने में काफी हद तक सफल रहते हैं। दुनिया में ऐसा शायद ही कोई देश होगा जहां आतंकवाद और देश की सुरक्षा के मुद्दे पर इस तरह की गलीज सोच रखने वाला प्रभावी समुदाय होगा।
यह कितनी अजीब स्थिति है। एक ओर दुनिया के बड़े-छोटे देश भारत के प्रति संवेदना और सहयोग का वक्तव्य दे रहे हैं। अमेरिका ने तो पाकिस्तान को सीधी चेतावनी दी है। दूसरी ओर यह वर्ग है जो मानने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारण देश में इस घटना के बाद से जिंगोइज्म पैदा हो रहा है जो एक दिन हमें बर्बाद कर देगा। कैसी शर्मनाक सोच है। आखिर भारत में इस समय पाकिस्तान के अलावा किसी देश के खिलाफ वातावरण है? भारत के लोग जिंगोइस्ट होते तो वे कितने देशों से नफरत तथा गुस्सा पालते और प्रकट करते। इसका विस्तार से चर्चा इसलिए जरूरी है कि कल अगर पाकिस्तान के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई होती है तो इनके शब्दवाण ज्यादा तीखे होंगे। ये सरकार पर आरोप लगाएंगे कि जिंगोइज्म पैदा कर इसका राजनीतिक लाभ लेने की नीति पर काम हो रहा है। नरेन्द्र मोदी इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं।
कुछ ऐसा ही करीब 20 वर्ष पूर्व करगिल युद्ध के समय था। भारत की सीमा में पाकिस्तानी घुसपैठियों के जगह जमा लेने की सूचना पर पूरे देश में उबाल था। सरकार ने पाकिस्तान को पहले चेतावनी दी और न मानने पर फिर सैनिक कार्रवाई आरंभ हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयं मोर्चा संभाला एवं रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडिस उनके सक्रिय सहायक के नाते भूमिका निभाते रहे। देश का बहुमत उस युद्ध में एकजुट था। किंतु उस समय के समाचार पत्र या टीवी के फुटेज निकाल लीजिए। ये लोग उस समय भी सरकार के खिलाफ विषवमन करते रहे। जार्ज फर्नाडिस जब युद्धसीमा पर जाकर सैनिकों के साथ ‘वंदे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते तो ये उन्हें फासिस्ट घोषित करते थे। जब उन्होंने निर्णय किया कि परंपरा तोड़कर युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के शव उनके घर भेजा जाए तो इसे भी जिंगोइज्म पैदा करने का कदम घोषित किया गया। सैनिकों के शव का दर्शन करने भीड़ उमड़ने लगी, राष्ट्रवाद की लहर पैदा हुई और दूसरी ओर ये छाती पीटकर स्यापा करते रहे। संयोग से उस समय सरकार का लोक सभा में पतन हो चुका था तथा चुनाव की घोषणा कभी भी होने वाली थी। इसे वाजपेयी द्वारा लोगों की भावनाएं भड़काकर चुनावी लाभ लेने की चाल साबित की जाती रही। और कुछ नहीं मिला तो जार्ज फर्नाडिस को कफनचोर बोला गया। जो ताबूत मंगाए गए थे, उसमें भ्रष्टाचार की बात उठाई गई। यह बात अलग है कि उसके काफी सालों बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस आरोप का निराधार करार दे दिया।
कहने का तात्पर्य यह कि ये तत्व हमेशा रहे हैं आमलोगों से लेकर कई बार नीति-निर्माताओं तक को भ्रमित कर देते हैं। एक युद्ध हमें आतंकवादी और बाहरी दुश्मन से लड़ना होता है तो दूसरा अपने अंदर के इन कुंठित महाज्ञानियों से। जैसे-जैसे भारत कार्रवाई की ओर बढ़ेगा इनके स्वर ज्यादा प्रबल और तीखे होंगे। सीआरपीएफ के उतने बड़े काफिले पर आतंकवादी हमला करने में सफल हुआ तो यह हमारी सुरक्षा व्यवस्था में चूक है। इसकी जांच करानी चाहिए। पर हम ऐसी स्थिति तो बनाए नहीं रख सकते कि हमारे जवानों के लिए भी सड़कों से गुजरने में जान का जोखिम बना रहे। अपने को सुरक्षित करने के लिए की जाने वाले सैन्य कार्रवाई या परोक्ष युद्ध की रणनीति को परास्त करने के लिए किया गया हमला या आतंकवादियों तथा उनको पालने पोसने वालों का विनाश करना जिंगोइज्म की श्रेणी में नहीं आता। एक देश के नाते अपने को सुरक्षित करना तथा सम्पूर्ण मानवता को भयमुक्त करने का पुण्यकार्य है। जिंगोइज्म रटने वालों के लिए तो पाप-पुण्य शब्द ही लोगों को भ्रमित करने वाले हैं। तो इनके शब्दजाल से भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। इसमें किसे राजनीतिक लाभ मिलेगा किसे नहीं मिलेगा, यह विचार का विषय होना ही नहीं चाहिए।
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