बजट : संतुलन रखना जरूरी

Last Updated 31 Jan 2019 07:00:56 AM IST

चुनावी बेला की गहमागहमी के बीच लेखानुदान के नाम पर नियमित बजट जैसा कुछ पेश किए जाने की संभावना है।


बजट : संतुलन रखना जरूरी

नरेन्द्र मोदी-नीत राजग सरकार संभवत: नियमित कवायद से हटकर बजट पेश करे। संभव है कि मतदाताओें के लिए लुभावने उपाय करे। शायद ग्रामीण मतदाताओं और शहरी मध्यम वर्ग, जिनकी बजट से काफी अपेक्षाएं हैं, को खुश करने की गरज से कुछ घोषणाएं करे। ध्यान रखना होगा कि सरकार की वित्तीय प्रतिबद्धता के चलते वित्तीय नीति में शिथिलता की गुंजाइश कम ही है। गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए वित्तीय घाटा जीडीपी का 3.3 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य है। दूसरी तरफ, जीएसटी संग्रह कम रह जाने से लगता है कि इसे हासिल कर पाना आसान न होगा। सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान अस्सी हजार के लक्ष्य के विपरीत 35,134 करोड़ रुपये का आहरण किया। इसके कारण भी कमी आ सकती है। हमारा मानना है कि वित्तीय गिरावट कम होगी जिसे या तो परिव्यय नियंत्रण या सार्वजनिक उद्यमों से अधिक लाभांश लेकर संभाला जा सकता है।
कृषि क्षेत्र के लिए कुछ ठोस उपाय किए जाने आवश्यक हैं। ढांचागत सुधार करने होंगे ताकि कृषि क्षेत्र में सुधार आ सकें। लेकिन इन उपायों के नतीजे मिलने में कुछ समय लग सकता है। फिर भी, कुछ उपायों की घोषणा अवश्य होगी जिससे कि ग्रामीण मतदाताओं को लुभाया जा सके। प्रधानमंत्री ने किसानों की कर्ज माफी से इनकार किया है। लगता है कि सब्सिडी के स्थान पर नकद हस्तांतरण या डीबीटी जैसे उपाय किए जाएं। इसके अलावा, उम्मीद है कि आय में वृद्धि संबंधी उपायों की घोषणा होगी ताकि ग्रामीण मतदाता को अपने पक्ष में कुछ ठोस हुआ महसूस हो। फसल बीमा योजना में बदलाव और योजना के तहत ज्यादा फसलों को लाने आदि जैसे उपाय किसानों के लिए आगे चलकर फायदेमंद हो सकते हैं।

उम्मीद है कि कृषि ऋण प्रवाह और ग्रामीण क्षेत्र में ढांचागत सुविधाओं पर परिव्यय बढ़ाया जा सकता क्योंकि आने वाले आम चुनाव में सरकार को ग्रामीण मतदाताओं के समर्थन की बहुत जरूरत होगी। सरकार गरीबों के लिए बहुचर्चित न्यूनतम आय की गारंटी (यूनिवर्सल बेसिक इन्कम) की रूपरेखा पेश कर सकती है। लेकिन समय इतना कम बचा है कि इस वर्ष इसका कार्यान्वयन संभव नहीं लगता। अलबत्ता, इसका बजट में उल्लेख जरूर किया जा सकता है, और संभव है कि भाजपा के घोषणा पत्र (अन्य पार्टियों के घोषणा पत्रों में भी) में इसका उल्लेख हो। प्रत्यक्ष करों की समग्र समीक्षा लंबित पड़ी है, और हो सकता है कि अभी इसमें और समय लगे। लेकिन सरकार मौजूदा स्लैबों में कुछ बदलाव कर सकती है ताकि शहरी मध्यम वर्ग, जो प्रत्यक्ष करों में सर्वाधिक योगदान करता है, को खुश किया जा सके। सर्वाधिक संभावना है कि न्यूनतम कर स्लैब को ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख रुपये किया जाए। साथ ही, वरिष्ठ नागरिकों के लिए छूट में इजाफा हो सकता है। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80-सी के तहत प्राप्त छूट में इजाफा किया जा सकता है। हो सकता है कि इसे डेढ़ लाख से बढ़कार ढाई लाख रुपये कर दिया जाए।
सरकार यह सब करती है तो यकीनन मध्यम वर्ग में अपनी पैठ मजबूत कर लेगी। आम चुनाव में इन उपायों से भाजपा को मजबूत होने में मदद मिलेगी। हमारा मानना है कि बीते वर्ष लागू किए गए दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर कर को लेकर फिर से विचार किया जाना चाहिए। भारत को दरकार है कि दीर्घकालिक इक्विटी पूंजी उसकी घरेलू बचत दर के साथ बढ़े ताकि वह जरूरी पूंजी का अपने से वित्त-पोषित कर सके। आम तौर पर कंपनियों द्वारा जुटाई जाने वाली पूंजी ऋण के रूप में होती है, जबकि वृद्धि पूंजी दीर्घकालिक प्रकृति की होनी जरूरी है। कंपनियां इक्विटी, ऋण या अन्य मिश्रित माध्यमों से वित्त पोषण कर सकती हैं। हमें लगता है कि देश में इक्विटी संस्कृति को एलटीसीजी का अच्छे से इस्तेमाल करके बढ़ावा दिया जाए। इससे इक्विटी माध्यमों को प्रोत्साहन मिल सकता है। इक्विटी बाजार में अभी दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर कर तथा सिक्यूरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी), दोनों देय हैं, हम चाहेंगे कि यह एकरूपता या तो एसटीटी के उन्मूलन से समाप्त हो या पूंजीगत लाभ पर कर के आकलन के समय एसटीटी का भुगतान ऋण मुहैया कराके किया जाए। मौजूदा कर नीति से लाभांश पर दोहरे/तिहरे कराधान का बोझ पड़ता है, और कुछ तार्किक उपाय किए जाने का निवेश क्षेत्र में स्वागत ही होगा। दीर्घकालिक पूंजी वर्धन के लिए इक्विटी सवरेत्तम जरिया है, जिससे मुद्रास्फीति के असर से बचे रहने के साथ ही सेवानिवृत्ति बाद बचत का लाभ मिल सकता है।
आज जब ‘इक्विटी संस्कृति’ को प्रोत्साहन की जरूरत है, तो दीर्घकालिक पूंजीगत लाभों पर कर उचित नहीं। दीर्घकालिक पूंजीगत लाभों पर कर में छूट दी जा सकती है बशत्रे ऋण माध्यमों को तीन साल या उससे ज्यादा अवधि का रखा जाए। इससे इक्विटी में बचत को बढ़ावा मिलेगा। अभी आयकर अधिनियम की धारा 54 ईसी दीर्घकालिक पूंजी परिसंपत्ति के हस्तांतरण से होने वाले पचास लाख रुपये तक के पूंजीगत लाभ पर करदाताओं को राहत देती है। शर्त यह है कि करदाता प्राप्त धन को बिक्री संबंधी लेन देने होने के छह माह के भीतर कुछ नियत बांडों में निवेशित कर दे। जहां तक कॉरपोरेट कर की बात है, तो 25 प्रतिशत कर की सीमा को बढ़ाया जा सकता है। अभी यह कर 250 करोड़ रुपये से कम राजस्व अर्जित करने वाली फर्मो पर लागू होता है। इसे बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये किया जा सकता है। जहां तक ढांचागत क्षेत्र की बात है, तो हमें उम्मीद है कि पिछले बजट में इस मद पर जो आवंटन किया गया था यानी 5.97 ट्रिलियन रुपये के आवंटन में इजाफा किया जाएगा। भारतमाला, सागरमाला, आवासन, स्वच्छता और जल संबंधी जरूरतों जैसी महत्त्वाकांक्षी पहलों पर ज्यादा तवज्जो देने के लिए बजट में उपाय होंगे।
उम्मीद है कि रेलों के आधुनिकीकरण, विद्युतीकरण और सुरक्षा जैसे कार्यों के लिए  आवंटन बढ़ेगा। पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में शुल्क ढांचा युक्तिसंगत बनाया जाएगा ताकि घरेलू उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनने में मदद मिल सके। कहना यह कि लेखानुदान विकास में सहायक होने वाला होने के साथ ही लोकलुभावन भी होगा जिसमें किसानों और शहरी मध्यम वर्ग की चिंता ज्यादा झलकेगी। लेकिन हम यह नहीं कहते कि सरकार खजाना लुटा दे। सरकार को राजस्व भी बढ़ाना होगा और आने वाले वर्ष में विनिवेश को भी गति देनी है यानी एक संतुलन बनाए रखना है।

राजीव सिंह


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment