भ्रष्टाचार : इतराने की अभी वजह नहीं

Last Updated 01 Feb 2019 04:25:27 AM IST

भ्रष्टाचार ऐसी चीज है, जिसे भारतीय एक प्रकार का जुगाड़ समझते हैं। सरकार भले कालाधन व भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हो, लेकिन देश में भ्रष्टाचार की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।


भ्रष्टाचार : इतराने की अभी वजह नहीं

हालांकि वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक 2018 में भारत ने अपनी स्थिति में सुधार करते हुए पिछले साल के मुकाबले तीन पायदान ऊपर चढ़ा है। यह खुलासा भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में हुआ है। फिर भी भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा करप्शन खत्म करने के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2018में भारत को 78वां स्थान मिला है, जबकि 2017 में भारत 81वें स्थान पर था। इससे पहले 2016 में भारत इस सूचकांक में 79वें स्थान पर था। खैर, भारत की रैंकिंग में जहां सुधार हुआ है, वहीं चीन और पाकिस्तान की स्थिति काफी खराब है। चीन जहां 87वें पायदान पर है तो पाकिस्तान 117वें स्थान पर। वहीं इस सूची में सबसे बेहतर देश डेनमार्क है। उसके बाद न्यूजीलैंड, फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्जरलैंड का नंबर आता है। दूसरी तरफ, भ्रष्टाचार के मामले में सबसे खराब हालत सोमालिया, सीरिया और सूडान की है।
बता दें कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्था है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारों को एक सख्त संदेश देने के उद्देश्य से 1995 में शुरू किए गए इस सूचकांक में 180 देशों की स्थिति का आकलन किया गया है। यह सूचकांक विश्लेषकों, कारोबारियों और विशेषज्ञों के आकलन और अनुभवों पर आधारित बताया जाता है।

इसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के लिए काम की आजादी जैसी कसौटियां भी अपनाई जाती हैं। सूचकांक तैयार करने के लिए देशों को विभिन्न कसौटियों पर 0 से 100 अंक के बीच अंक दिए जाते हैं। सबसे कम अंक सबसे अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त होने का संकेत माना जाता है। बहरहाल, आज पूरी दुनिया में सार्वजनिक क्षेत्र खासकर राजनीतिक दलों, पुलिस और न्यायिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। दुनिया में सत्ता का दुरुपयोग, गोपनीय सौदेबाजी और रितखोरी बढ़ती जा रही है। भारत भी इसे अछूता नहीं है। यहां सरकार द्वारा चलाई गई अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुंच पाता है। इसके लिए सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है। आजादी के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था, ‘सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है, उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।’ यदि भारत के राजनीतिक-सामाजिक माहौल की बात करें तो भ्रष्टाचार के विरोध में समाज का हर तबका खड़ा दिखाई तो देता है मगर विरोध हर बार भ्रष्टाचार के आगे दम तोड़ देता है। दूसरी तरफ यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के संबंध में अपने विचार प्रकट करना एक बात है और इसको हटाने के लिए वास्तव में कुछ करना अलग बात है।
कानूनी कमजोरियां और सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और इस वजह से भ्रष्टों के बच निकलने मौका भी मिलता है। कहीं न कहीं सरकार से जुड़े लोग भ्रष्टाचार में सबसे अहम भूमिका अदा करते हैं। काफी समय से देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी राज कर रहे हैं। अब भ्रष्टाचार रोकने के लिए सच्चे, दूरगामी और वास्तविक उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
सारे सरकारी नियम और संहिताएं कोई अमृत से नहीं लिखी गई हैं, जिन्हें मिटाया नहीं जा सके। जरूरत है तो सिर्फ  इस बात की कि समाज और प्रतिष्ठान भ्रष्टाचार के तत्वों को पहचानें और पहचान कर इस पाप से मुक्ति पाने का इंतजाम करे। हालांकि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर भी तमाम दावे कर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है, लेकिन नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’ ही रहता है। समस्या यह है कि अब भ्रष्टाचार हमारी आदत में शामिल हो गया है। यह अपवाद नहीं, सच बन गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भारत के बारे में हर साल कहती है कि देश के आधे से ज्यादा लोग यह जानते हैं कि भ्रष्टाचार क्या होता है और कैसे किया जाता है? खैर, कलंक हमारा है और मुक्त करने का तरीका भी हमें ही खोजना है।

रविशंकर


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