बजट : खेती को दीजिए ताकत
कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में सतत सुधार और ज्यादा आमदनी के साथ ही मध्यम वर्ग की प्रत्यक्ष करों को युक्तिसंगत बनाए जाने से अर्जित आय में बढ़ोतरी से देश की समग्र आर्थिक वृद्धि में सुधार होगा।
![]() बजट : खेती को दीजिए ताकत |
अपने पिछले पांच बजटों में इस सरकार ने अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया। सरकार की नीयत रही कि भारत के प्रत्येक नागरिक जीवन बेहतर से बेहतर हो। आने वाले बजट से भी उम्मीद है कि सरकार के प्रयासों और सुधारों की गति जारी रहेगी।
परोक्ष कर राजस्व में लगातार बढ़ोतरी के साथ ही सरकार द्वारा जीएसटी दरों में कटौती किए जाने से संकेत मिलता है कि कराधार बढ़ रहा है, और भारत में आर्थिक गतिविधियों में तेजी से विस्तार हो रहा है। इस स्थिति में अर्थव्यवस्था में साहसी कदम उठाने तथा मांग में वृद्धि किए जाने जरूरी हैं। समय आ गया है कि प्रत्यक्ष करों को तार्किक बनाया जाए। सभी कॉरपोरेट करदाताओं के लिए कॉरपोरेट कर में 25% की कमी हो। भले ही कारोबार की मात्रा कितनी भी रही हो। साढ़े तीन लाख रुपये तक आय पर कर से छूट देने पर विचार हो। अभी यह सीमा ढाई लाख रुपये है। अधिकतम व्यक्तिगत आयकर कर की दर 25%की तरफ उन्मुख हो ताकि लोगों की अर्जित आय बढ़ सके। इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। अधिकतम मार्जिनल स्लैब मौजूदा 10 से बढ़ाकर 15 लाख रुपये की जानी चाहिए। राजग-एक के कार्यकाल में कर उपायों का आकलन उपयोगी रहेगा और इसे 2004 से 2014 के बीच मुद्रास्फीति के लिए सूचकांकित किया जाना फायदेमंद होगा। इससे अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्रों में मांग में इजाफा करने में मदद मिलेगी। सिद्धांतत: कर दरों में कटौती से कराधार बढ़ता है, और कर भुगतान की अनुपालना को इससे प्रोत्साहन मिलता है।
जैसा कि अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से पता चलता है कि ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में स्टार्ट-अप प्रमुख रोजगार सृजक हैं। भारत में भी स्टार्ट-अप ने नया कारोबारी माहौल तैयार करने में अच्छी भूमिका निभाई है। सरकार को कर छूट देकर स्टार्ट-अप आरंभ करने के लिए नये उद्यमियों को आकषिर्त करने का आधार तैयार करना चाहिए। आज के बेहद अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल के बीच जिस प्रकार से वृहद्-आर्थिक स्थिरता को भारत में बनाए रखा जा सका है, उसके लिए सरकार की सराहना करनी होगी। हमारे लिए गर्व का विषय है कि विश्व आर्थिक व्यवस्था में भारतीय सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। यकीनन इसका श्रेय प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को जाता है। वृहद्-आर्थिक माहौल में बीते चार सालों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। मुद्रास्फीति पर खासा अंकुश लगाया गया है, वित्तीय समावेशन सही दिशा में है। साल दर साल विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ने पर है। बीते पांच सालों में अपने प्रदर्शन से भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व पटल पर बेहद आकषर्क दिखलाई पड़ रही है। 2019 में कारोबारी सुगमता की सूची में भारत 142वें स्थान से छलांग लगाकर 77वें स्थान पर जा पहुंचा। इस उपलब्धि के पीछे कारोबारी सुगमता में सुधार के लिए सरकार द्वारा किए गए डिजिटल प्रयासों को श्रेय दिया जा सकता है।
बस अब जरूरी यह है कि भारतीय कारोबारियों का सरकार के विभागों के साथ ज्यादा से ज्यादा तालमेल बढ़े। बीते चार साल के दौरान सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए लगातार प्रयास किए हैं। इसके चलते वित्तीय वर्ष 14 में औद्योगिक विकास जहां 3.8% था, वहीं वित्तीय वर्ष 18 में बढ़कर 5.5% हो गया। वित्तीय वर्ष 19 में इसके 7.8% का स्तर छू लेने की उम्मीद है। औद्योगिक विकास में और वृद्धि करने के लिए जरूरी है कि एमएसएमई क्षेत्र की भागीदारी विनिर्माण क्षेत्र में बढ़े। एमएसएमई क्षेत्र भारत में बढ़ते श्रमबल के लिए रोजगार सृजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भूमि सुधार जैसे कि लीज अवधि में बढ़ोतरी तथा उद्योग के लिए भूमि बैंक बनाने जैसे प्रयासों में तेजी लाई जानी चाहिए। श्रम कानूनों में सुधार किए जाने चाहिए। श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास तेज हों ताकि विनिर्माण फर्मो को प्रतिस्पर्धी बनने में मदद मिले। हालांकि ‘टेन्योर इंप्लॉयमेंट’ एक बेहतर कदम है। आवासन तथा निर्माण क्षेत्र में लगातार सुधारों से यकीनन लाखों दक्ष, अर्ध-दक्ष और अदक्ष लोगों को रोजगार अवसर मिल सकेंगे। ध्यान देना होगा कि शहरीकरण में कृषि क्षेत्र में पछ्रन्न बेरोजगारी को निर्माण गतिविधियों में खपाने की क्षमता है।
इस सरकार कृषि निर्यात नीति खासी प्रोत्साहक है, और इससे कृषि निर्यात को मौजूदा 30 से कुछ ज्यादा बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर दोगुना यानी 60 से कुछ ज्यादा बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर तक ले जाया जा सकता है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्र में साजोसामान के लाने ले जाने के लिए संरचनात्मक सुविधाओं और शीत ग्रहों का निर्माण किए जाने से खाद्य प्रसंस्करण तथा ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे वैश्विक कृषि एवं खाद्य निर्यात में लोगों की भागीदारी बढ़ेगी। कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ने से शीत ग्रहों, गोदामों तथा कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण में निजी निवेश बढ़ेगा। इससे खाद्य की बर्बादी कम होगी और शहरी नागरिकों को वाजिब दाम पर खाद्य उपलब्ध हो सकेगा। इससे कृषकों की आय में भी इजाफा होगा। अभी तो स्थिति यह है कि खाद्य की बर्बादी 25% से ज्यादा है, जबकि इसे कम करके 10% से कम के स्तर पर लाया जाना जरूरी है। छोटे और सीमांत किसानों को ऋण मुहैया कराने से उन्हें नई कृषि तकनीक अपनाने में सहायता मिलेगी। फसल विविधीकरण तथा उपज के तौर-तरीके बदलने में सहायता होगी। इस प्रकार कृषि उत्पादकता बढ़ेगी। ढांचागत क्षेत्र की क्षमता का अभी तक पूरा दोहन नहीं किया जा सका है। इस क्षेत्र पर ध्यान देने से आर्थिक वृद्धि को दोहरे अंक में पहुंचने में सहायता मिलेगी।
पर्यटन क्षेत्र भी राज्यों तथा केंद्र सरकारों के लिए ऐसा क्षेत्र है, जिसका दोहन किए जाने से आर्थिक वृद्धि में सहायता मिलेगी। उत्तम शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से भी हमें आर्थिक विकास की डगर पर बढ़ने में सहायता मिलेगी। आज भले ही स्कूलों की संख्या बढ़ रही हो लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता चिंतनीय है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी तवज्जो दिए जाने की जरूरत है। इन तमाम क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए भारत के लिए जरूरी है कि करों की अनुपालना बढ़े। इसके लिए जरूरी है यह सुनिश्चित किया जाना कि सभी करदाता करों का भुगतान करें। लेकिन इस मामले में लालफीताशाही और कर-आतंकवाद से बचना होगा। बहरहाल, आइए उम्मीद करें कि एक फरवरी, 2019 को पेश किए जाने वाला बजट समावेशी होगा।
| Tweet![]() |