अवैध खनन : दांव पर जिंदगी और पर्यावरण

Last Updated 31 Jan 2019 06:57:59 AM IST

भले गलत तरीके से कोयला खनन पर एनजीटी और सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी हो, मगर अभी भी बहुत ही सुनियोजित तरीके से इसे अंजाम दिया जा रहा है।


अवैध खनन : दांव पर जिंदगी और पर्यावरण

मेघालय के कोयला खदानों में 15 मजदूरों के फंसने और 40 दिन बाद दो शव बरामद होने से इसकी गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। अवैध खनन एक फलता-फूलता व्यवसाय बना हुआ है। और यह खेल सालों से यहां अंजाम दिया जा रहा है। वह भी गरीब, अनपढ़ और दूरदराज के राज्यों से दो जून का निवाला पाने के वास्ते आए मजदूरों की जिंदगी के दम पर। जबकि पेशेवर तरीके से खनन करने के लिए सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है और सुरक्षा नियमों का पालन होना निहायत जरूरी होता है।
मेघालय ही नहीं झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में नियम-कायदों को ठेंगा दिखाते हुए किस तरह कोयला निकाला जाता रहा है, यह न तो सरकार की नजरों से छुपा हुआ है और न ही प्रशासन के। अनियमितता और अवैध काम दिखता है तो सिर्फ अदालतों को और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को। मगर इनकी सुनता कौन है? इनकी चिंताओं से सरकार को लगता ही नहीं कि कोई सरोकार है। अगर ऐसा होता तो न मेघालय के कोयला खदानों में मजदूरों की मौत होती न झारखंड के खदानों में। इस हकीकत से आंखें नहीं मूंदीं जा सकतीं कि गैरकानूनी तरीके से खनन करने से पर्यावरण को किस कदर नुकसान पहुंचता है। चूंकि खनन का काम बेहद तकनीकी और सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर होता है किंतु अवैध खनन करने वालों के लिए ये सारी बातें बेमानी हैं। यही वजह है कि कई बार मजदूर दबाव में ज्वलनशील गैसों से भरी खदानों में मोमबत्ती या लालटेन लेकर चले जाते हैं, जिससे हालात और खराब हो जाते हैं। इसके नतीजे भयावह होते हैं। आग की वजह से पर्यावरण और स्वास्थ दोनों के लिए समस्याएं खड़ी होती हैं।

इससे पानी, हवा और जमीन तीनों प्रदूषित होते हैं, सो अलग। और उन ज्यादातर जगहों की वनस्पतियां और पेड़ मरते जा रहे हैं। इसके पीछे के नेक्सस को जानकर वाकई लोगों के सिर चकरा जाएंगे। इसकी बानगी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान देखने को मिली। जब मेघालय में अवैध खनन के मामले में एमिकस क्यूरी बनाए गए वरिष्ठ एडवोकेट कोलिन गोनसाल्वेस ने एक रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट में बताया गया था कि मेघालय में करीब 24 हजार खानें हैं, जिनमें से अधिकतर अवैध हैं। यह सिर्फ मेघालय तक ही सीमित नहीं है। राजस्थान में पत्थर और खनिज के अवैध खनन को लेकर भी राजस्थान उच्च न्यायालय की टिप्पणी गौर करने लायक है। हाईकोर्ट ने सीधे खनन विभाग और राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि ‘वे लोक कल्याणकारी राज्य बनने के बजाय राष्ट्रीय संपत्ति और मानव जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।’ अपनी सख्त टिप्णणी में न्यायालय ने कहा कि ‘अगर इसे रोका न गया तो ये लोग हाईकोर्ट को भी खोद डालेंगे।’
सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है। समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए न्यायालय ने कहा कि ‘समय के साथ हमने महसूस किया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है।’ शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी से अवैध खनन के पूरे मकड़जाल और धूर्तता को सहजता से समझा जा सकता है। सब कुछ खम ठोककर और ठसक के साथ अंजाम दिया जा रहा है और प्रशासन मूकदर्शक की भूमिका में है। न तो हरित प्राधिकरण की चिंताओं को सलीके से समझा जा रहा है और न सर्वोच्च अदालत की सख्ती से किसी को भय है। पर्यावरण की चिंता तो खैर बहुत दूर की बात है।
तो क्या ऐसा ही चलता रहेगा? रोजगार दिलाने के बहाने या गरीबों को रोजी-रोटी मुहैया कराने का भ्रम फैलाकर देश की पारिस्थितिकी से कब तक खिलवाड़ किया जाता रहेगा? सरकार को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सोचना ही होगा। तत्काल अवैध खदानों को सीज करने की कार्रवाई होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में अवैध खनन होता है, वहां नियमित रूप से निरीक्षण टीम की तैनाती होनी चाहिए। अवैध खनन क्षेत्रों में खदान से निकलने वाले रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और उनकी समय-समय पर जांच हो। सामाजिक दायित्वों का भी बोध जरूरी है। बिना ये उपाय किए सुधार की बात बेमानी ही कही जाएगी। लिहाजा ऐसे मामलों में लापरवाही ठीक नहीं।

राजीव मंडल


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